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महाराष्ट्र: ड्राप आउट छात्रों की संख्या बढ़ी, सरकार क्यों नहीं खोल रही स्कूल?

Corona Pandemic में निचले तबके के बच्चे शिक्षा से दूर जा रहे है

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मुंबई (Mumbai) के सीएसएमटी स्टेशन के सामने की फुटपाथ पर आसमा शेख अपने परिवार के साथ रहती हैं. महामारी (corona pandemic) के दौरान इसी फुटपाथ पर पढ़ाई करके आसमा ने 11वीं की परीक्षा पास की. वो पास में ही के.सी. कॉलेज से ऑनलाइन क्लासेस लेती हैं. आसमा बताती है, "कभी पुलिस भगाती है तो कभी बारिश में पब्लिक टॉयलेट की छत का सहारा लेना पड़ता है. अब बारहवीं कक्षा में पहुंची हूं. लेकिन इस तरह चलता रहा तो आगे पढ़ने की उम्मीद बहुत कम लग रही है."

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दरअसल शिक्षा विभाग ने फरवरी में 'मिशन जीरो ड्राप आउट' मुहिम शुरू की थी. इस मिशन के तहत स्कूल छोड़ने वाले बच्चों को फिर से शिक्षा से जोड़ने का कैंपेन चलाया था. इसके लिए शिक्षा विभाग के स्टाफ ने राज्यभर में सर्वे भी शुरू कर दिया था.

नाम न बताने की शर्त पर उनमें से एक टीचर ने बताया कि 'उनकी टीम ने मुंबई के रेलवे स्टेशनों के बाहर रहनेवाले गरीब बच्चों का सर्वे किया. उन्हें स्कूल में वापस लाने के प्रयास थे. उन्हें शिक्षा का साहित्य देकर लुभाने की कोशिश भी की. लेकिन ज्यादातर बच्चे वापसस स्कूल में एडमिशन नही लेना चाहते. कुछ बच्चे तो उन्हें देखकर लोकल ट्रेनों में बैठकर भाग रहे थे.'

इसी तरह महामारी में निचले तबके के बच्चे शिक्षा से दूर जा रहे है. जिसमें शहरी से ज्यादा ग्रामीण इलाकों के बच्चे प्रभावित हैं.

40% घरों में इंटरनेट नहीं

क्विंट हिंदी को मिली स्टेट काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (SCERT) की रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र में महामारी की वजह से बड़ी संख्या में छात्रों के स्कूल छूट गए है. शिक्षा विभाग के UNICEF इंडिया के साथ मिलकर किए गए सर्वेक्षण में सामने आया है कि लगभग 40% घरों में आज भी स्मार्टफोन्स और इंटरनेट सेवा नहीं पहुंची है. शहरी इलाकों में भी सिर्फ 65.6% लोग ऑनलाइन शिक्षा पद्धति का उपयोग कर पाते हैं. तो वहीं 95% माता-पिता अपने बच्चों को वापस स्कूल भेजने के समर्थन में हैं.

राज्य में 1 से 12वीं तक सरकारी और निजी स्कूलों में पढ़ने वाले तकरीबन ढाई करोड़ छात्र हैं. कुल 36 जिलों में औरंगाबाद, अमरावती, बुलढाणा समेत पुणे और नागपुर के कुछ हिस्सों में कोविड की वजह से सर्वेक्षण नहीं हो पाया. लेकिन अन्य जिलों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि अनियमित उपस्थिति के कारण स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या 17,397 है.
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तो वही अन्य कारणों से स्कूल से नाम कम होनेवालों की संख्या 23,704 है. इसके अलावा राज्य के बाहर स्थानांतरित हुए छात्रों की संख्या 14,084 है. साथ ही जिले और गांव-तालुका के स्थानांतरित छात्रों की कुल संख्या 52,656 है. यानी तकरीबन 1,07,841 छात्र आज स्कूल के सिस्टम से बाहर निकल चुके है.

महामारी के कारण शिक्षा पूरी तरह से ऑनलाइन पद्धति पर निर्भर हो गई है. रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि पिछले डेढ़ साल से ज्यादा समय तक 1 से 12वीं कक्षा के 74,30,184 छात्र स्कूल नही जा पाए हैं. जिसमे कक्षा 1 से 5वीं के 45,67,144; कक्षा 6 से 8वीं के 15,47,175; कक्षा 9 से 12वीं के 13,15,865 छात्र शामिल हैं.

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स्कूल शुरू करने पर उद्धव सरकार का यू-टर्न क्यों?

ऐसी स्थिति के बावजूद महाराष्ट्र सरकार ने 17 अगस्त से स्कूल शुरू करने के निर्णय को टाल दिया है. महाराष्ट्र में स्कूल खोलने को लेकर सरकार में असमंजस की स्थिति बनी हुई है. शिक्षा विभाग के ऑफलाइन स्कूल शुरू करने के निर्णय पर राज्य की पीडियाट्रिक कोविड टास्क फोर्स ने कैबिनेट बैठक में विरोध जताया था. जिसके बाद उद्धव सरकार ने रुख बदला और निर्णय टाल दिया.

उद्धव सरकार के इस यू-टर्न की वजह से लाखों छात्र और उनके अभिभावक परेशान हैं. साथ ही शिक्षा विभाग से जुड़े कई एक्सपर्ट्स सरकार के बीच असमन्वय को लेकर नाराजी जता रहे है. इतना ही नही बल्कि राज्य के कोविड टेक्निकल एडवाइजर सुभाष सालुंखे ने भी एहतियात बरतने के साथ स्कूलों को खोलने के पक्ष में अपना मत रखा है.

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"टास्क फोर्स में सिर्फ मेडिकल एक्सपर्ट्स है, न कि वायरोलॉजिस्ट, पब्लिक हेल्थ और सोशल एक्सपर्ट्स. स्कूल को पूरी तरह से बंद रखना मतलब भावी पीढ़ी से खिलवाड़ है. सभी बातों को ध्यान में लेते हुए चरणबद्ध तरीके से स्कूल खोलने की आवश्यकता है."
सुभाष सालुंखे, महाराष्ट्र के कोविड टेक्निकल एडवाइजर

शिक्षा मंत्री वर्षा गायकवाड़ ने पूरी तैयारी के साथ शासन आदेश जारी करते हुए ऑफलाइन स्कूल खोलने की योजना का ऐलान किया था. विशेष पैनल की मदद से देश भर के राज्यों का जायजा लेकर SOPs बनाए गए. जिसमे सेफ ट्रांसपोर्टेशन, आइसोलेशन रूम्स, कोविड प्रोटोकॉल समेत सभी नियमों का ध्यान रखा गया था. बावजूद उसके टास्क फोर्स का मानना है कि स्कूल शुरू करने की जल्दबाजी नही करनी चाहिए. क्योंकि स्कूल में जानेवाला वर्ग वैक्सिनेटेड नही है और तीसरी लहर में वो सबसे ज्यादा खतरा हो सकता है.

इसपर शिक्षा मंत्री गायकवाड़ ने सफाई दी कि 'सरकार में कोई मतभेद नही है. पहले से ही स्कूलों को खोलने का निर्णय स्थानीय स्थिति का जायजा लेकर जिला प्रशासन पर सौंपा गया था. बच्चों का स्वास्थ्य हमारे लिए प्राथमिकता है. अगले कुछ दिनों में शिक्षा विभाग और टास्क फोर्स मिलकर स्कूल खोलने के बारे में फैसला लेगा.'

इस बीच विपक्ष ने सरकार में समन्वय ना होने का आरोप लगाया है. जिसका नुकसान बच्चो और माता-पिता को झेलना पड़ रहा है."

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स्कूल बंद होने से बच्चों पर हो रहा मानसिक असर

हालांकि शिक्षा से जुड़ी कई संस्थाओं का कहना है कि स्कूल बंद रखने से बच्चों पर हो रहे मानसिक और सामाजिक परिणामों को भी ध्यान में लेना होगा. प्रथम एनजीओ की प्रमुख फरीदा लांबे बताती हैं कि 'हाशिये पर रहने वाले समाज को मेनस्ट्रीम से जोड़ने का शिक्षा ही एक जरिया है. शिक्षा के अभाव से कई बच्चे या तो बाल मजदूरी या फिर लड़कियां बालविवाह का शिकार हो रही हैं. गरीबो के घर ऑनलाइन शिक्षा का माध्यम उन्हें शिक्षा से ज्यादा समय तक जोड़े नही रख सकता.'

इसके अलावा ऑनलाइन शिक्षा से बच्चों पर मानसिक तनाव भी बढ़ रहा है. UNICEF का सर्वे बताता है कि 30% बच्चो में चिंता, डर, चिड़चिड़ापन और अकेलेपन के लक्षण देखे गए हैं. जबकि 16% बच्चे घर के बाहर काम कर रहे हैं.

गुजरात, मध्य प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे राज्यों ने स्कूल खोल दिए हैं. महाराष्ट्र में भी जुलाई से कोरोना केसे ज्यादा नही हैं. ऐसी जगहों पर स्कूल खोलने के निर्देश दिए थे. अब महाराष्ट्र में भी 5 से 8वीं तक ग्रामीण और 8 से 12वीं तक शहरी इलाकों में स्कूल खोलने की तैयारी हो गई थी. लेकिन पंजाब में स्कूली छात्र बड़े पैमाने पर संक्रमित होने की खबरों के बाद अब महाराष्ट्र सरकार भी फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है.

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