दिल्ली की लग्जरी टेक्सटाइल कंपनी शेड्स ऑफ इंडिया पिछले 25 साल से अमेरिका और खाड़ी देशों को अपनी बेहतरीन क्वालिटी के कपड़े और होम फर्नीशिंग्स का सामना एक्सपोर्ट कर रही है. कंपनी की अपने ग्राहकों के बीच काफी साख है. लेकिन 24 मार्च को इस कंपनी के लिए रातोंरात बहुत कुछ बदल गया. देश में कोरोनावायरस संक्रमण को रोकने के लिए अचानक किए गए लॉकडाउन की वजह से यह अमेरिकी कस्टमर्स की ओर से मिला एक बड़ा ऑर्डर पूरा नहीं कर पाई. कंपनी के पास कैश नहीं है और इसे अपने सैकड़ों हाई ट्रेंड कारीगरों को सैलरी देनी है.
एक्सपोर्ट सेक्टर के 5 करोड़ लोगों का भविष्य डांवाडोल
कंपनी के अमेरिकी कस्टमर्स इसका बकाया पैसा नहीं दे पा रहे हैं.वहां के जो स्टोर्स और कंपनियां इसका सामान खरीदती थीं, वे लॉकडाउन की वजह से बंद हैं. स्टाफ घर से काम कर रहा है. अब यह तय नहीं है कि ये खरीदार ऑर्डर उठाना भी चाहेंगे या नहीं.
यह सिर्फ एक कंपनी की कहानी नहीं है. भारत में लॉकडाउन ने टेक्सटाइल,ज्वैलरी, स्पोर्ट्स गुड्स, कारपेट और दूसरे कंज्यूमर आइटम एक्सपोर्ट करने वाली कंपनियों को सिर के बल खड़ा कर दिया है. इससे इन उद्योगों में काम करने वाले 5 करोड़ लोगों का भविष्य डांवाडोल हो गया है.
लॉकडाउन की सबसे पहली मार सप्लाई चेन से जुड़ी कंपनियों पर पड़ी है. और इसकी सबसे ज्यादा शिकार हुए हैं मैन्यूफैक्चरर्स और इसके कर्मचारी. फैक्टरियों में काम रुका पड़ा है, लॉजिस्टिक्स चेन के पहिये थम गए हैं. वर्कर्स घरों में बंद हैं. तैयार ऑर्डर उठेंगे या नहीं, इस पर अनिश्चय के बादल मंडरा रहे हैं.
‘भविष्य पर मंडराती काली छाया’
तस्वीर बेहद डराने वाली है. तमाम एजेंसियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़े झटके लगने की आशंका जताई है. वर्ल्ड बैंक से लेकर मूडीज इनवेस्टर सर्विसेज और एडीबी से लेकर स्टैंडर्ड एंड पुअर्स तक ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए ग्रोथ रेट का जो अनुमान पेश किया था, उसमें भारी कटौती की है. खुद रिजर्व बैंक ने कहा कि कोरोनावायरस हमारे भविष्य पर काली छाया की तरह मंडरा रहा है.
दुनिया भर की तमाम एजेंसियों ने कहा है कि COVID-19 की वजह से धंधे चौपट होंगे, बेरोजगारी चरम पर होगी और नौकरियां जाएंगीं. आईएमएफ समेत कई एजेंसियों ने 1930 के बाद सबसे बड़ी मंदी की चेतावनी दी है.आईएमएफ चीफ क्रिस्टलिना जॉर्जिवा ने चेतावनी दी है कि दुनिया के 170 देशों में प्रति व्यक्ति आय में गिरावट आएगी. 1930 की महामंदी को दुनिया की अर्थव्यवस्था के सबसे बुरे दौर के तौर पर माना जाता है. यह मंदी दस साल तक चली थी.
असंगठित क्षेत्र के कामगार होंगे सबसे बड़े शिकार
भारत में सबसे ज्यादा मार पड़ेगी असंगठित क्षेत्र के कामगारों पर. नोटबंदी और जीएसटी से इसी सेक्टर के कामगारों पर सबसे ज्यादा मार पड़ी थी. असंगठित क्षेत्र अभी भी इसकी मार से कराह रहा है. एक और तबाही यह बर्दाश्त नहीं कर पाएगा.
भारत में 13.6 करोड़ श्रमिक या कुल श्रमिकों के आधे लोग गैर कृषि क्षेत्रों में रोजगार करते हैं जिनके पास कोई कॉन्ट्रेक्ट नहीं होता और यही वर्ग कोरोना लॉकडाउन के बाद के दौर का सबसे बड़ा शिकार है. तकरीबन सभी दैनिक मजदूर हैं. सीएमआईई की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक इस क्षेत्र में बेरोजगारी 30 फीसदी से थोड़ा ज्यादा है या फिर तकरीबन 40 लाख से 5 करोड़ लोगों को कम मजदूरी मिलती है. दैनिक मजदूरी से एक गरीब परिवार की बमुश्किल बुनियादी दैनिक भोजन की जरूरत पूरी होती है.
आईएलओ की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में भारत में कोरोना वायरस संक्रमण असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ लोगों को और गरीबी में धकेल देगा. ऑक्सफैम की रिपोर्ट के मुताबिक कोरोनावायरस संक्रमण की वजह से आई मंदी से दुनिया के 50 करोड़ लोग और गरीबी के गर्त में चले जाएंगे. इनमें से बड़ी तादाद भारतीयों की होगी.
भारत का हिचकिचाहट भरा कदम
भारत के ग्रोथ के बारे में तमाम अर्थशास्त्रियों ने नकारात्मक राय जाहिर की है. रघुराम राजन ने कहा है कि ये मंदी इससे पहले 2008-09 आई मंदी से भी खतरनाक है, क्योंकि उस समय सब कुछ चल रहा था, कुछ ठप नहीं हुआ था. कंपनियां चल रही थीं, देश चल रहा है, फाइनेंशियल सिस्टम हेल्दी था, लेकिन इस बार हर चीज की हालत खस्ता है. ऐसे में आप सोच सकते हैं कि इकनॉमी का क्या हाल होने वाला है.
रिजर्व बैंक के एक और पूर्व गवर्नर विमल जालान ने भी कहा है कि भारतीय इकनॉमी का हाल पहले से ही अच्छा नहीं था लेकिन अब कोरोनावायरस से और बड़ा संकट खड़ा हो गया है. यह संकट नौकरियों के संकट को और बढ़ाएगा. पूर्व आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल, आईएमएफ की चीफ इकनॉमिस्ट गीता गोपीनाथ और इकनॉमिस्ट अजय शाह भारतीय अर्थव्यवस्था के बुरी तरह लड़खड़ाने की आशंका जता चुके हैं.
लेकिन एक बड़ा सवाल यह है मोदी सरकार अर्थव्यवस्था में आए इस भीषण संकट को टालने के लिए क्या करने जा रही है और अब तक इसने क्या किया है. देखा जाए तो कोरोना वायरस संकट से जूझ रहे दूसरे देशों की तुलना में भारत ने बेहद झिझकता हुआ और कमजोर कदम उठाया है.
अमेरिका ने अपनी जीडीपी का लगभग दस फीसदी राहत पैकेज के तौर पर दे दिया है. ट्रंप प्रशासन ने 2 ट्रिलियन डॉलर का पैकेज कोरोनावायरस के शुरुआती संक्रमण के दौरान ही जारी कर दिया था. जर्मनी ने 20, ब्रिटेन ने 15 और कनाडा ने अपनी जीडीपी का लगभग साढ़े चार फीसदी स्टिम्युलस पैकेज के तौर पर जारी कर दिया है. जबकि इसकी तुलना में भारत ने 1,70,000 करोड़ रुपये का पैकेज जारी किया है, जो इसकी जीडीपी का सिर्फ 0.71 फीसदी है. इसे सीधे राहत पैकेज भी नहीं कहा जा सकता है. यह पेंशन,जन धन खाता के जरिये लोगों तक पहुंचेगा और तब फिर इकनॉमी में आएगा और इसमें देर होगी.
साफ है कि भारत को अपनी इकनॉमी को और दुर्दशा में जाने से रोकने के लिए बड़े भारी पैकेज देने की जरूरत है. उसे युद्धस्तर पर नई पॉलिसी लाने और उन्हें उतनी ही तत्परता से लागू भी करना होगा.
कब होगा अंधेरा दूर ?
आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक, यूएन, एडीबी और डब्ल्यूटीओ की वर्ल्ड और इंडिया की इकनॉमी को लेकर घटाटोप आशंकाओं के बीच कुछ आशावादी अर्थशास्त्रियों ने कहना शुरू किया है कि कोरोनावायरस से जिस तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं वैसा नहीं होगा. रिसर्चर जेसन ब्रैम और रिचर्ड डीज ने कहा है कि कोरोनावायरस ने अचानक चक्रवात की तरह इकनॉमी पर चोट की है. और चक्रवात की तरह ही इसने सबसे पहले टूर और ट्रैवल इंडस्ट्री को बरबाद किया है. लेकिन प्राकृतिक आपदाओं के उलट इससे भौगोलिक नुकसान नहीं हुआ है. इसने मकान नहीं तोड़े हैं. बांधों को नुकसान नहीं पहुंचाया है. ट्रेन की पटरियां नहीं उखाड़ी हैं. इसलिए रिकवरी तेज होगी.
दोनों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 2021 के दौरान 7.2 फीसदी की तेज ग्रोथ का अनुमान लगाया है. अगर ऐसा होता है तो यह उम्मीद की नई राह होगी. लेकिन इस राह पर आने में अभी काफी वक्त लगेगा. खास कर भारतीय इकनॉमी को, जो नोटबंदी और जीएसटी जैसे दो बड़े झटकों से अब तक नहीं उबर नहीं पाई है.
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