अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) की सीट के लिए भारत ने क्या खूब मुकाबला किया. नरेंद्र मोदी सरकार ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह ब्रिटेन के खिलाफ इस जंग को जीतना चाहती है.
जस्टिस दलवीर भंडारी का दोबारा चुना जाना भारतीय डिप्लोमेसी की जीत है. पहली बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का कोई स्थायी सदस्य आईसीजे के लिए गैर-सदस्य देश से मुकाबले में हारा है.
ब्रिटेन के उम्मीदवार क्रिस्टोफर ग्रीनवुड के पीछे हटने के बाद भंडारी को जीत मिली. दरअसल, जनरल असेंबली भंडारी के साथ थी, जिसे ब्रिटेन चुनौती नहीं दे पाया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भंडारी के आईसीजे में दोबारा चुने जाने पर उन्हें बधाई दी. पीएम मोदी ने कहा कि यह देश के लिए ‘गर्व का क्षण’ है. उन्होंने इसका श्रेय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और उनकी टीम को दिया. खबर है कि भंडारी की खातिर लॉबिंग के लिए सुषमा ने खुद पिछले कुछ दिनों में 60 देशों के विदेश मंत्रियों को फोन किया था. सुषमा और उनकी टीम की यह मेहनत बेकार नहीं गई.
यह जीत आसान नहीं थी. पहले 11 राउंड में जनरल असेंबली में भंडारी को दो तिहाई वोट मिले थे. इसके बावजूद ब्रिटेन ने हार नहीं मानी थी क्योंकि सुरक्षा परिषद के 9 सदस्य ग्रीनवुड के साथ थे, जबकि भंडारी को इनमें से 5 का समर्थन हासिल था.
ब्रिटेन की बड़ी हार
ऐसा भी कहा गया था कि ब्रिटेन ‘ज्वाइंट कॉन्फ्रेंस मैकेनिज्म’ के जरिये अपने कैंडिडेट को जीत दिलाने की कोशिश करेगा. लीगल एक्सपर्ट्स ने कहा था कि ऐसा करना गलत होगा. ब्रिटेन के यूरोप के सहयोगी देश भी ऐसा नहीं चाहते थे. यहां तक कि अमेरिका ने भी कहा था कि भंडारी के लिए बढ़ते समर्थन के चलते डेडलॉक की स्थिति बन सकती है.
बहरहाल, भंडारी को आखिर में पूर्ण बहुमत से जीत मिली. उन्होंने जनरल असेंबली के 193 में से 183 वोट हासिल किए और सुरक्षा परिषद के सभी 15 वोट भी उन्हें मिले.
न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में जनरल असेंबली और सुरक्षा परिषद में इसके लिए एक साथ चुनाव हुए थे.
ब्रिटेन के लिए यह बड़ी हार है. 71 साल में ऐसा पहली बार होगा, जब आईसीजे में उसका कोई जज नहीं होगा. ब्रेग्जिट के बाद ब्रिटेन का अंतरराष्ट्रीय कद घटा है. वह आज जिस तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है, उसे देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि ब्रिटेन अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में पहले वाला रसूख हासिल कर पाएगा.
पावर शिफ्ट
ब्रिटेन के विदेश सचिव बोरिस जॉनसन ने कहा कि ग्रीनवुड की हार ब्रिटिश लोकतंत्र की हार नहीं है. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में भारत लंबे समय से भारत का समर्थन करता आया है. वहीं, संयुक्त राष्ट्र में वहां के स्थायी प्रतिनिधि मैथ्यू रेक्रॉफ्ट ने भी कहा, ‘ब्रिटेन भले ही इस चुनाव में हार गया, लेकिन हम इससे खुश हैं कि भारत जैसे करीबी देश को इसमें जीत मिली है.
हम संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के साथ मिलकर काम करते रहेंगे.’ हालांकि, इसमें कोई शक नहीं है कि भारत की यह जीत अंतरराष्ट्रीय जगत में पावर शिफ्ट का संकेत है.
भारत के लिए जश्न मनाने का वक्त
अधिकतर अंतरराष्ट्रीय संस्थान द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्थापित किए गए थे और वे आज के पावर स्ट्रक्चर का आईना हैं. इसी वजह से भारत इन संस्थानों में बदलाव की मांग कर रहा है. वह लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता हासिल करने की भी कोशिश कर रहा है. कुछ लोग कह रहे हैं कि आईसीजे की जीत से यह दावा मजबूत हुआ है.हालांकि, इस मामले में सावधानी बरतनी होगी.
सुरक्षा परिषद का ढांचा बिल्कुल अलग है. उसके पांच स्थायी सदस्यों के पास सुरक्षा परिषद का भविष्य तय करने का अधिकार है.इसमें भारत की एंट्री में चीन सबसे बड़ी बाधा है, जबकि दूसरे सदस्य देश उसकी दावेदारी को लेकर सकारात्मक रवैया रखते हैं. फिलहाल तो हमें आईसीजे में जीत का जश्न मनाना चाहिए. यह सिर्फ भारत की सफलता नहीं है, यह नए वर्ल्ड ऑर्डर का संकेत भी है.
(हर्ष वी पंत, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में स्ट्रेटेजिक स्टडीज के हेड हैं. इस आर्टिकल में लेखक की अपनी राय है. क्विंट न ही इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए उत्तरदायी है.)
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