आखिरकार भीषण गर्मी से परेशान राजधानी दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों को राहत देते हुए मंगलवार सुबह तेज बारिश हुई. साथ ही हिमाचल के धर्मशाला और कश्मीर के गांदरबल में बाढ़ जैसे हालात देखने को मिले.लेकिन यह तस्वीर पूरे भारत के लिये समान नहीं है. भारतीय मौसम विभाग (IMD) के लेटेस्ट डेटा के अनुसार 1 जून से 10 जुलाई के बीच वर्षा में 7% की कमी देखी गई और जून 21 से ही मॉनसूनी वर्षा नेगेटिव जोन में है.मॉनसून में देरी का असर कृषि क्षेत्र पर देखने को मिला है और उसपर से IMD के गलत अनुमानों ने किसानों के लिये मुश्किलों को और बढ़ा दिया है.
मॉनसून में देरी, मतलब खरीफ फसलों पर प्रभाव
भारत के करोड़ों किसान धान ,ऑयल सीड, दलहन फसल, बाजरा, गन्ना और कपास के लिए सीधे बारिश पर निर्भर हैं. भारत के कुल बुवाई क्षेत्र के 60% के पास सिंचाई की सुविधा नहीं है.भारत के 100 राष्ट्रीय महत्वपूर्ण रिजर्वॉयर अपने पीने योग्य पानी, पावर सप्लाई और सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर हैं.
लेकिन 10 जुलाई 2021 तक भी, कृषि आय का एक अहम हिस्सा, धान की फसल की बुवाई सामान्य स्तर से कम रही. मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 10 जुलाई 2021 तक 11 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में ही धान की बुवाई हुई है, जबकि सामान्य स्थिति में अब तक यह 11.6 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में होना चाहिए था.
इसके साथ-साथ ज्वार,बाजरा जैसे मोटे अनाजों की भी बुवाई मॉनसून में देरी के कारण प्रभावित हुई है. मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 10 जुलाई तक 7.3 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में ही मोटे अनाजों की बुवाई हुई है, जबकि सामान्य स्थिति में अब तक यह 8.7 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में हो जाना चाहिए था.
25 जून तक पिछले साल के इसी पीरियड की अपेक्षा 11% कम खेतों में खरीफ फसलों की बुवाई की गई थी.
भारतीय मौसम विभाग के लेटेस्ट डेटा के अनुसार 1 जून से 10 जुलाई के बीच वर्षा में 7% की कमी देखी गई. जून 21 से ही मॉनसूनी वर्षा नेगेटिव जोन में है. 30 जून को समाप्त हुए सप्ताह तक पूरे देश में 'लॉंग टर्म एवरेज', जिसे सामान्य स्तर भी कहते हैं, की अपेक्षा 30.2% कम वर्षा हुई थी.
1 जून से 9 जून के बीच देश में हुई वास्तविक कुल मॉनसूनी वर्षा, सामान्य स्तर 234.5 mm के मुकाबले 223 mm ही रही.
कृषि पर प्रभाव यानि इकनॉमी के लिए आफत
कोरोना की पहली लहर के समय अकेले कृषि क्षेत्र ने भारतीय अर्थव्यवस्था को सहारा दिया था.इसका सबसे बड़ा कारण था 2020 में अच्छी मॉनसूनी बारिश.2020 खरीफ सीजन में अच्छा और समय से आये मॉनसून के कारण ही जून 2020 तक खरीफ फसलों की बुवाई सामान्य स्तर को पार कर गई थी.
एशिया के तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, भारत की लगभग आधी जनसंख्या आमदनी के लिए अभी भी कृषि पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर है.
ऐसे में मॉनसून की देरी और उससे संबंधित IMD की भविष्यवाणी में चूक ना सिर्फ कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है, बल्कि साथ ही पूरे भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है.ऐसा इसलिए है क्योकि ग्रामीण क्षेत्र उपभोक्ता वस्तुओ का सबसे बड़ा ग्राहक है.अगर मॉनसून में देरी और IMD के गलत अनुमानों के कारण कृषि पर निर्भर परिवारों की आय में कमी आती है तो इसका प्रभाव पूरे अर्थव्यवस्था पर पड़ना निश्चित है.
एक तो मॉनसून लेट,ऊपर से IMD का अनुमान मटियामेट
आज भारत का किसान मौसम विभाग के मानसून संबंधी अनुमानों पर बहुत ज्यादा निर्भर है.रेडियो,स्मार्टफोन और टेलीविज़न के माध्यम से IMD के अनुमानों का प्रयोग किसान फसल संबंधी अपनी रणनीति बनाने के लिए करते हैं.लेकिन मौजूदा मॉनसून सीजन में IMD की भविष्यवाणी पर संदेह बढ़ा है, क्योंकि इसने अपने स्टैंड में बार-बार परिवर्तन किया.
इसे हम IMD कि दिल्ली के संदर्भ में मॉनसून के आने की भविष्यवाणी से समझ सकते हैं:
11 जून को IMD ने भविष्यवाणी की थी कि दिल्ली में 15 जून को मॉनसून आ जाएगा.
15 जून को मॉनसून तो नहीं आया, बल्कि राजधानी में गर्मी अपने चरम पर थी. 15 जून को IMD ने कहा कि बस कुछ दिनों का विलंब है.हालांकि 23 जून को फिर से इसने ने कहा कि जून अंत तक मॉनसून के आने की संभावना नहीं है.
1 जुलाई को IMD ने कहा कि 7 जुलाई के पहले दिल्ली में मॉनसून नहीं आएगा
6 जुलाई को IMD ने कहा कि 10 जुलाई को मॉनसून राजधानी में दस्तक देगा.
10 जुलाई को कहा कि बस 1 दिन का विलंब और, 11 जुलाई को मॉनसून आ जाएगा.
अंतिम दांव IMD ने 12 जुलाई पर लगाया था. आखिरकार 13 जुलाई को दिल्ली ने तेज बारिश का स्वागत किया.
अगर मॉनसून में देरी के साथ मौसम विभाग के अनुमानों में किसानों को सिर्फ "तारीख पर तारीख' मिलता रहा तो यह उनकी मुश्किलों को और बढ़ाएगा.
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