Delhi Metro Accident: 14 दिसंबर की सर्द दोपहर के लगभग 1 बजे थे. नई दिल्ली के इंद्रलोक स्टेशन पर भीड़ के बीच मेट्रो ट्रेन में चढ़ने की कोशिश करते समय 11 साल के हितेन ने अपनी मां रीना का हाथ कसकर थाम रखा था. वो अपनी मां को स्कूल में दिन कैसा बीता, यही बता रहा था.
करीब पांच मिनट बाद ही, 35 साल की रीना की साड़ी मेट्रो के दरवाजे में फंस गई. जैसे ही ट्रेन चली, वो प्लेटफॉर्म पर 25 मीटर तक घसीटती चली गई, उसका सिर ट्रैक एक्सेस गेट से टकराया और वह पटरी पर गिर गई.
दो दिन बाद 16 दिसंबर को पश्चिमी दिल्ली के नांगलोई की रहने वाली सब्जी विक्रेता रीना ने सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ दिया. इस दुखद घटना में उनके सिर और सीने में गंभीर चोटें आईं थी.
कक्षा 6 के छात्र हितेन ने हादसे को लेकर द क्विंट को बताया...
"यह सब बहुत जल्दी हुआ. एक मिनट मैं उनसे बात कर रहा था और दूसरे मिनट मैंने मां को मदद के लिए चिल्लाते हुए सुना. मैंने उन्हें घसीटते हुए देखा और बचाने के लिए उनके पीछे भागने लगा. मैं भी मदद के लिए चिल्लाया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. मैंने देखा कि उनके सिर पर चोट लगी और वे गिर गईं. मैं बेहद डर गया और सदमे में था."
दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने सोमवार, 18 दिसंबर को दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (DMRC) को घटना पर एक विस्तृत रिपोर्ट साझा करने का निर्देश दिया. इधर, क्विंट ने रीना के परिवार से इस दुखद घटना को लेकर बातचीत की.
14 दिसंबर को आखिर हुआ क्या?
2014 में रीना के पति का निधन हो गया था. परिवार में रीना ही कमानेवाली एकमात्र सदस्य थी. अब उनकी मौत के बाद 13 साल की बेटी रिया और बेटा हितेन अनाथ हो गए हैं.
रिया के अनुसार, 14 दिसंबर को रीना हितेन को लेकर दोपहर करीब 12:30 बजे अपने होम टाउन मेरठ जाने के लिए घर से निकली थी. वो अपने भतीजे की शादी में शामिल होने के लिए जा रही थी.
रिया ने आगे बताया कि दोनों को बस स्टैंड जाना था, इसके लिए वे मेट्रो में चढे.
रोते हुए रिया ने द क्विंट को बताया...
"मैंने उनसे (अपनी मां से) आखिरी बार गुरुवार सुबह बात की थी. वे घर जाने और अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए बेहद उत्साहित थीं. उन्होंने कहा कि वो दो दिन में वापस आ जाएंगी और मुझे घर की देखभाल करने के लिए कहा लेकिन वह कभी वापस नहीं आईं."
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, रीना रेड लाइन इंद्रलोक मेट्रो स्टेशन पर ट्रेन के जनरल डिब्बे में चढ़ने की कोशिश कर रही थी. उन्होंने कहा, रीना ट्रेन के अंदर जाने में कामयाब रही, लेकिन हितेन बाहर रह गया और उसे ढूंढने के लिए उसे बाहर निकलना पड़ा.
दिल्ली पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर द क्विंट को बताया...“हितेन को अंदर लाने के लिए बाहर निकलने की कोशिश करते समय उसकी साड़ी मेट्रो के दरवाजे में फंस गई. इसके बाद ट्रेन चल पड़ी और दुर्भाग्य से महिला प्लेटफॉर्म पर करीब 25 मीटर तक घसीटती चली गई. इसके बाद वह प्लेटफॉर्म ट्रैक एक्सेस गेट से टकरा गई."
हितेन ने क्विंट को बताया कि जब उसने अपनी मां को ट्रैक पर खून से लथपथ पड़ा देखा तो वह मदद के लिए चिल्लाने लगा.
"तीन-चार लोग मेरी मदद के लिए दौड़े. उन्होंने मेरी मां को उठाकर प्लेटफॉर्म पर रख दिया. मैंने तुरंत मदद के लिए अपनी बुआ को फोन किया और चूंकि एम्बुलेंस आने में समय लग रहा था, इसलिए हम मां को रिक्शे से नजदीकी अस्पताल ले गए.''
हालांकि, रीना के परिवार ने आरोप लगाया कि लगभग तीन अस्पतालों ने उसका इलाज करने से इनकार कर दिया.
यूपी निवासी रीना की भाभी ने बताया "पहले हम उसे दीपचंद बंधु अस्पताल ले गए, लेकिन वेंटिलेटर की कमी के कारण उन्होंने उसे एडमिट करने से इनकार कर दिया. यहां तक कि राम मनोहर लोहिया अस्पताल और लोक नायक अस्पताल ने भी इसी तरह के कारणों से इनकार कर दिया. आखिरकार उसे सफदरजंग अस्पताल में उसे शिफ्ट किया गया".
अधिकारियों ने पुष्टि की कि दिल्ली पुलिस ने भी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 174 के तहत मामला दर्ज किया है.
मेट्रो ट्रेनें आमतौर पर सेंसर से लैस होती हैं, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि "किसी भी प्रकार की रुकावट" होने पर दरवाजे ऑटोमेटकली खुल जाएं.
क्या सेंसर कपड़े का पता लगाने में फेल रहा, इस सवाल पर DMRC के सूत्रों ने द क्विंट को बताया कि "जब कोई रुकावट होती है, तो एक सुरक्षा तंत्र यानी सेफ्टी मेकेनिज्म एक्टिव हो जाता है लेकिन केवल 25 मिलीमीटर से अधिक मोटे कपड़े का पता लगाया जा सकता है. इस मामले में, मृतका की साड़ी पतली थी और इसलिए यह डिटेक्ट नहीं हो पाया"
मेट्रो रेलवे सुरक्षा कमिश्चर घटना की जांच करेंगे.
'अब हम अनाथ हैं, हमारी देखभाल कौन करेगा?': मृतका के बच्चे
रिया और हितेन, दोनों नांगलोई की गलियों में बसे अपने छोटे से एक बेडरूम वाले घर के कोने में चुपचाप बैठे थे. रिश्तेदारों ने द क्विंट को बताया कि वे अभी भी अपनी मां की मौत के सदमे से बाहर नहीं निकल पाए हैं.
रिया ने रोते हुए कहा...
"उन्होंने हमारे जीवन में एक मां और एक पिता दोनों की भूमिका निभाई. उन्होंने हमें कभी ऐसा महसूस नहीं होने दिया कि हमने अपने पापा को खो दिया है लेकिन अब मैं और मेरा भाई अनाथ हो गए हैं. हम क्या करें? हम कहां जाएं? हमारी देखभाल कौन करेगा ?"
रीना की बहन ज्योति बताती हैं कि उनकी बड़ी बहन एक दिन में लगभग 400 रुपये या उससे कम कमाती थी. ज्योति ने बताया..
"हितेन की तबीयत पिछले कुछ महीनों से खराब चल रही है. मेडिकल खर्चों को पूरा करने के लिए उन्होंने और भी नौकरियां कीं. वह सुबह घरों में काम करती थीं, दोपहर में सब्जियां बेचती थीं और रात में अखबार के पैकेट बनाती थीं."
रीना की भाभी मोनिका सोनकर ने कहा कि वह बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं. क्विंट से बातचीत में मोनिका ने चिंता जाहिर करते हुए कहा..."हम सभी बारी-बारी से उनकी देखभाल कर रहे हैं लेकिन हममें से किसी की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है कि बच्चों की देखभाल कर सके. वे किराए के घर में रहते हैं और चार दिन में किराया देना है. बच्चे कहां से पैसे लाएंगे? उनके भविष्य का ख्याल कौन रखेगा?”
रीना के परिजनों ने बच्चों की शिक्षा और भविष्य के लिए डीएमआरसी से मुआवजे की भी मांग की है.
एक पत्र लिखकर दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने दिल्ली मेट्रो से दुर्घटना पीड़ितों के लिए मुआवजे पर अपनी पॉलिसी का खुलासा करने का अनुरोध किया है.
यह संज्ञान लेते हुए कि बच्चों के रिश्तेदार आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण उन्हें अपनाने में झिझक रहे थे, उन्होंने डीएमआरसी से कहा, "यह आवश्यक है कि बच्चों को पर्याप्त वित्तीय सहायता दी जाए. जिससे उनकी शैक्षिक और अन्य आवश्यकताएं पूरी हो सकें."
क्विंट ने पीड़ित के परिजनों को मुआवजे के लिए डीएमआरसी से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
रिया ने मांग की "हम बस इतना चाहते हैं कि कोई हमारे घर और शिक्षा की खर्च देख ले. हमें वित्तीय सहायता की आवश्यकता है. हालांकि, कितना भी पैसा हमारी मां को खोने की भरपाई नहीं कर सकता, लेकिन इससे हमें मदद मिल सकती है. अब मेरी प्राथमिकता मेरे छोटे भाई की देखभाल करना है. मेरी मां हमेशा चाहती थीं कि हम अच्छी पढ़ाई करें. मैं सुनिश्चित करूंगी कि वह (हितेन) और मैं ऐसा करें."
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)