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'एक भी रात चैन से नहीं सोए': उत्तरकाशी रेस्क्यू ऑपरेशन के 'हीरो' का परिवार 'सड़क' पर रह रहा

पिछले 15 दिन से रैट होल माइनर वकील हसन और उनका परिवार बेघर है. बुलडोजर चलाए घर के बाहर अपने अस्थायी टेंट में यह परिवार विरोध में बैठा है.

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दिन है मंगलवार, 12 मार्च का. आज रमजान का पहला दिन है. शाम लगभग 5:45 बजे, शबाना कपड़ों, बर्तनों, किताबों और दो टूटे बेड से भरे अपने छोटे से अस्थायी टेंट के अंदर जगह साफ करने में व्यस्त है. शबाना शाम को अपने पति वकील हसन के लौटने का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं, जो नमाज पढ़कर आते ही होंगे.

उनकी 12 साल की बेटी अलीजा अपने टेंट से मच्छरों से लड़ने में व्यस्त है. शबाना ने उसे खाना लाने के लिए अपनी भाभी के घर चलने के लिए कहा ताकि पांच लोगों का यह परिवार समय पर अपना रोजा (उपवास) खोल सके. उनके सिर पर पड़ोसियों की दी हुईं तिरपाल लटकी हुई हैं.

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आंसुओं से भरी आंखों के साथ शबाना मेरी ओर मुड़ीं और कहा:

"क्या आप हमारी स्थिति को नहीं देख रहीं जिसमें हम रह रहे हैं? मैंने अपने जीवन में कभी नहीं सोचा था कि मैं और मेरा परिवार सचमुच सड़कों पर रमजान मनाएंगे - और इतना बुरा समय आएगा कि हमारे पास अपने सिर को ढकने के लिए छत भी नहीं होगी. हमारा जीवन बर्बाद हो गया है..."
41 साल कीं शबाना हसन

पिछले 15 दिन से रैट होल माइनर वकील हसन और उनका परिवार बेघर है. 28 फरवरी को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने "अतिक्रमण विरोधी" अभियान के तहत पूर्वोत्तर दिल्ली के खजूरी खास इलाके में उनके घर को गिरा दिया था.

44 साल के वकील हसन ने ही नवंबर 2023 में उत्तरकाशी की ध्वस्त सिल्कयारा सुरंग के अंदर फंसे 41 श्रमिकों को सफलतापूर्वक बचाने के लिए 12 सदस्यीय टीम का नेतृत्व किया था.

बुलडोजर चलाए घर के बाहर अपने अस्थायी टेंट में यह परिवार विरोध में बैठा है. उन्होंने द क्विंट से बात की कि उनका जीवन कैसे बदल गया है, उन्होंने डीडीए द्वारा मुआवजे के रूप में पेश किए गए दो फ्लैटों को क्यों अस्वीकार कर दिया, और परिवार कैसे अंधकारमय भविष्य की ओर देख रहा है.

'अभी भी डेमोलिशन की डरावनी यादों से उबर नहीं पाई हूं'

वकील हसन रॉकवेल एंटरप्राइजेज के मालिक हैं. यह कंपनी रैट होल माइनर्स को नौकरी देती है. वकील हसन और उनकी 41 वर्षीय पत्नी शबाना के तीन बच्चे हैं: अजीम (17), अलीजा और आरीश (7). यह परिवार खजूरी खास के श्री राम कॉलोनी में मौजूद इस घर में 2012 से रह रहा था. अब इस घर पर बुलडोजर चलाया जा चुका है.

28 फरवरी को सुबह लगभग 9 बजे, डीडीए ने उनके घर को ढहा दिया. जब उनके घर पर बुलडोजर चल रहा था, तब केवल तीन बच्चे घर पर थे.

एक तरफ हसन के परिवार ने दावा किया कि उनके घर को "बिना पहले से नोटिस दिए" ध्वस्त कर दिया गया है. जबकि डीडीए ने कहा कि घर एक विकास परियोजना के लिए पहले अधिग्रहित सरकारी भूमि पर "अवैध रूप से" बनाया गया था.

आप डेमोलिशन पर डीडीए के विस्तृत बयान के बारे में इस रिपोर्ट में अधिक पढ़ सकते हैं.

द क्विंट से बात करते हुए शबाना ने कहा, "मैं अभी भी इस बात से उबर नहीं पा रही हूं कि हमारा घर, जो हमारे खून, पसीने और आंसुओं से बनाया गया था, उसे ध्वस्त कर दिया गया है. उस दिन की याद आज भी हमें हर रात सताती है... "

वकील हसन ने इसे अपने जीवन का "अंधकार वाला दौर" बताते हुए कहा,

"वे (डीडीए) दावा कर रहे कि ऐसा उन्होंने अवैध संपत्तियों के अपने डेमोलिशन कैंपेन के तहत किया. लेकिन फिर भी उन्होंने केवल एक घर पर बुलडोजर चलाया, जो हमारी थी. मेरे किसी पड़ोसी की क्यों नहीं? सरकार ने पूरी श्री राम कॉलोनी को अनधिकृत घोषित कर दिया है. फिर केवल मेरा घर ही क्यों गिराया गया? यह अवैध कैसे है, जबकि हमारे पास साबित करने के लिए सरकार द्वारा जारी बिजली बिल सहित सभी कानूनी दस्तावेज हैं..."
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दोनों ने क्विंट को बताया कि डेमोलिशन का उन पर "गहरा आर्थिक प्रभाव" पड़ा है. साथ ही उन्होंने कहा कि इससे हसन के रोजगार पर भी असर पड़ा है.

"मैंने 41 लोगों की जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी. रॉकवेल एक ऐसी कंपनी थी जिसे मैंने कुछ साल पहले ही शुरू किया था और मैं पहले से ही फाइनेंस और घर के भुगतान के लिए लिए गए लोन से जूझ रहा था. नवंबर 2023 के बाद, मैंने सोचा कि मुझे रोजगार के अधिक अवसर मिलेंगे और लोग मेरे काम को पहचानेंगे. लेकिन इसका उलटा हुआ है. मैं इस सब के कारण काम फिर से शुरू नहीं कर पा रहा हूं,'' वकील हसन ने कहा.

'यह सिर्फ एक अस्थायी समाधान है': हसन ने DDA के प्रस्ताव को ठुकराया

डेमोलिशन के तीन दिन बाद, डीडीए ने 2 मार्च को एक बयान में कहा कि उसने वकील हसन को उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के निर्देश पर नरेला में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए बनाया गया एक फ्लैट और रोजगार देने की पेशकश की थी. हालांकि, हसन ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था.

इसके बाद डीडीए ने कहा कि एलजी ने एक बार फिर दिलशाद गार्डन में वकील हसन को 2 बीएचके डीडीए फ्लैट देने का आदेश दिया है. हालांकि, इसे भी उन्होंने अस्वीकार कर दिया था.

यह पूछे जाने पर कि उन्होंने दोनों ऑफर क्यों ठुकरा दिए, वकील हसन ने द क्विंट को बताया, "हां, डीडीए अधिकारियों ने मुझसे नरेला जाने के लिए कहा था. मेरे बच्चे यहां स्कूल जाते हैं, मेरी बहनें और भाई यहां रहते हैं और मेरा व्यवसाय इसी एरिया है. मैंने अपना सारा जीवन यहीं बिताया है. डीडीए या कोई और मुझसे कैसे उम्मीद कर सकता है कि मैं अपना सामान उठाऊंगा और शहर के बाहरी इलाके में चला जाऊंगा?"

शबाना ने दावा किया कि डीडीए ने उन्हें लिखित में नहीं दिया था कि वैकल्पिक आवास उनका होगा.

"नरेला हमारे लिए बहुत दूर है. मैंने सोसायटी के बारे में पूछताछ की और एरिया के बारे में ऐसी-वैसी बातें सुनी हैं. कल, अगर हम चले गए और बाद में मेरे बच्चों के साथ कुछ हो गया तो क्या होगा? क्या डीडीए इसकी जिम्मेदारी लेगा?" उन्होंने पूछा.

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वकील हसन और शबाना, दोनों ने कहा कि उन्हें डर है कि डीडीए उन्हें "स्थायी नहीं बल्कि अस्थायी समाधान" दे रहा है.

"हमें डर है कि मीडिया में मामला शांत होने तक यह केवल एक अस्थायी व्यवस्था होगी. इसकी क्या गारंटी है कि 2-3 महीने में वे वह घर छोड़ने के लिए नहीं कहेंगे? अगर वे हमसे कहेंगे कि किराया देना होगा तो क्या होगा? हम 12 साल तक अपने घर में रहे, अब हम अधिक पैसा क्यों खर्च करना शुरू करेंगे?" वकील हसन ने पूछा.

क्विंट ने यह समझने के लिए डीडीए पीआरओ बिजय शंकर रॉय से कई बार कॉल और मैसेज के जरिए संपर्क किया कि क्या अधिकारी किसी नए प्रस्ताव के साथ परिवार तक पहुंचे हैं. जवाब मिलने पर स्टोरी को अपडेट किया जाएगा.

'गंदगी के बीच रह रहे... रात में उपयोग के लिए टॉयलेट नहीं है, बच्चे बीमार पड़ रहे हैं'

हसन परिवार के लिए हर दिन का जीवन बेहद कठिन हो गया है. उपयोग करने के लिए टॉयलेट नहीं है और खाना पकाने के लिए किचन नहीं. ऐसे में यह परिवार न्याय की उम्मीद में अपने टेंट के अंदर बैठकर अपना पूरा दिन बिताता है.

"पिछले 14 दिनों में, हमने सबसे खराब स्थिति देखी है. हमारा यह टेंट लगभग खुला है. मौसम ऐसा है कि दोपहर में सीधे सूरज के नीचे रहना पड़ता है और थकान महसूस होती है, और रात में ठंड होती है. कुछ रातों में बारिश भी हुई, और तेज हवाओं के साथ तिरपाल भी उड़ जाता है. हम एक रात भी चैन से नहीं सोये."
वकील हसन
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दिल की बीमारी से पीड़ित शबाना ने कहा कि टॉयलेट न होना रात में उनके और उनके परिवार के लिए एक समस्या है.

"शुक्र है, हमारे पास सबसे अच्छे पड़ोसी हैं जो हमें अपने टॉयलेट का उपयोग करने देते हैं. लेकिन हम उनके टॉयलेट में जाने के लिए रात 2 बजे उनके दरवाजे कैसे खटखटा सकते हैं? वे भी कब तक हमारी ऐसे मदद करेंगे? हम उस तरह के लोग हुआ करते थे जो कॉलोनी में दूसरों की मदद करते थे, अब हमें मदद की जरूरत पड़ रही. मुझे किसी के घर जाने और उनसे यह पूछने में शर्म आती है कि क्या हम कुछ देर अंदर बैठ सकते हैं, या क्या हम उनका टॉयलेट यूज कर सकते हैं.''
शबाना

इस बीच, वकील ने कहा कि उनका अस्थायी टेंट गंदा पानी निकलने वाली नाली के ऊपर है, जिसके कारण उन्हें दुर्गंध और मच्छरों के बीच सोना पड़ रहा है, जिससे उनकी परेशानी बढ़ गई है. उन्होंने कहा, "इसकी वजह से हमारा सबसे छोटा बेटा बुखार और सर्दी से पीड़ित हो गया है."

इसके अलावा, परिवार ने द क्विंट को बताया कि राहगीर अक्सर उनके टेंट को कबाड़ की दुकान समझ लेते हैं.

"पिछले 10 दस दिनों में, लोग रास्ते से गुजरते हैं, गद्दे पर रखे सभी कपड़ों और बर्तनों को देखते हैं और सोचते हैं कि यह बेचने के लिए है और हमसे उनकी कीमत पूछते हैं... यह शर्मनाक है. जब हमारे पास एक घर था, हम अमीर नहीं थे. हम संघर्ष कर रहे थे लेकिन आराम से थे. अब हम सड़कों पर हैं और उस चीज के लिए जो हमारी गलती नहीं थी."
शबाना
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अलीजा डेमोलिशन के कारण अपनी 10वीं की परीक्षा नहीं दे पाई. उसने कहा कि भले ही उसने स्कूल फिर से शुरू कर दिया है, लेकिन वह पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ है. उसने क्विंट को बताया, "मेरा दिमाग हमेशा यही सोचता रहता है कि क्या अम्मी और अब्बू ठीक हैं या नहीं, क्योंकि वे काफी तनाव में हैं. मुझे उनकी सेहत की चिंता है."

अलीज़ा ने पूछा, "क्या यह भी कोई जिंदगी है जहां हमें सड़क के किनारे एक टूटी लकड़ी की खाट पर बैठना पड़ता है?"

'मुझे अपना घर वापस चाहिए': हसन परिवार को न्याय का इंतजार

वकील हसन और उनके परिवार ने मांग की है कि डीडीए या तो उनके घर को फिर से बनाए करे या उन्हें उसी इलाके में एक प्लॉट दे.

3 मार्च को बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि हसन के परिवार को जल्द ही प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत घर दिया जाएगा. मनोज तिवारी के वादे पर हसन ने कहा कि उनसे न तो बात की गई है और न ही उन्हें लिखित में कुछ दिया गया है.

वकील हसन ने द क्विंट से कहा, "जो कुछ हुआ उसके लिए हमें न्याय चाहिए. हम उनके बिना यह जगह नहीं छोड़ेंगे. हां, इस तरह रहना मुश्किल होगा, लेकिन हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है. AAP और बीजेपी जैसी राजनीतिक पार्टी कह रही हैं कि वे हमारे साथ हैं और हमारी मदद करेंगे. लेकिन यह सब केवल दिखावा है और अभी तक कुछ भी नहीं किया गया है.''

वकील और उनके परिवार ने कहा कि वे तब तक इलाके में रहेंगे जब तक उन्हें "न्याय नहीं मिल जाता". उन्होंने भूख हड़ताल करने की भी बात की है.

वकील हसन कहते हैं, "यह हमारा घर है. या तो वे एक घर बनाएं या हमें हमारे पुराने घर के पास एक घर दे दें. मुझे बहुत उम्मीद नहीं है, लेकिन जब तक हमें हमारा घर वापस नहीं मिल जाता, हम एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे."

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