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डिजिटल अरेस्ट, साइबर किडनैपिंग, वर्चुअल रेप क्या होता है, कैसे बचें, कहां करें शिकायत?

PGI लखनऊ की डॉ रुचिका टंडन को कुछ दिनों डिजिटल अरेस्ट में रखा गया और फिर उनसे 2 करोड़ 81 लाख रुपये ठगे गए.

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PGI लखनऊ की डॉ रुचिका टंडन को कुछ दिनों डिजिटल अरेस्ट में रख कर उनसे 2 करोड़ 81 लाख रुपये ठग लिए गए. डिजिटल अरेस्ट (Digital Arrest), साइबर किडनैपिंग (Cyber Kidnapping) या वर्चुअल रेप (Virtual Rape). इन शब्दों को आप अक्सर सुन रहे होंगे, क्योंकि देश में अब डिजिटल अरेस्ट के मामले बढ़ते जा रहे हैं. लेकिन ये सब क्या होता है? भारत का कानून इस अपराधों पर क्या कहता है? और आप इन मामलों के शिकार न हो इसके लिए क्या कर सकते हैं...चलिए ये सब आपको बताते हैं.

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क्या होता है डिजिटल अरेस्ट?

डिजिटल अरेस्ट साइबर क्राइम का एक नया तरीका है. अरेस्ट करने का मतलब होता है कि पुलिस आपको ले जाती है और जेल में डाल देती है लेकिन डिजिटल अरेस्ट में फ्रॉड करने वाले आपको वीडियो कॉल के जरिए पुलिस अधिकारी, सीबीआई अफसर या कोई अन्य सरकारी अधिकारी बनकर डराते-धमकाते हैं. वे आपको बोलते हैं कि आपका नाम किसी गंभीर अपराध से जुड़ा है, जैसे मानव तस्करी या मनी लॉन्ड्रिंग.

फिर आपको बताया जाता है कि आप डिजिटली अरेस्ट हो चुके हैं, साइबर क्रिमिनल कहते हैं कि अगर आप वीडियो कॉल कट करते हैं तो आपको पुलिस वास्तव में आकर पकड़कर जेल में डाल देगी. ये सब इतनी तेजी से होता है कि पीड़त समझ नहीं पाता और घबरा जाता है. इससे वह साइबर फ्रॉड के चंगुल में फंस जाता है. वीडियो कॉल करने वाले पुलिस स्टेशन का पूरा सेट-अप तैयार करते हैं, वे पुलिस की वर्दी में दिखते हैं, इसीलिए कई बार आम लोग धोखा खा जाते हैं.

आपको डिजिटल अरेस्ट का बता कर धमकी देते कि आप कॉल कट नहीं कर सकते, इससे वे आपके ऊपर निगरानी रखते हैं. कुछ देर बाद ही क्रिमिनल आपको मामला रफा दफा करने के लिए पैसों की मांग करते हैं. कई लोग इस झांसे का शिकार बन जाते हैं.

PGI लखनऊ की डॉ रुचिका टंडन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ...

रुचिका ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि, "मुझे सुबह एक कॉल आया, सामने वाले ने बताया कि वो टेलिकॉम रेगुलेट्री अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) से बात कर रहा है. मुझे कहा गया कि पुलिस ने मेरा नंबर बंद करने का आदेश दिया है क्योंकि मुंबई साइबर क्राइम ऑफिस के अनुसार मेरे नंबर से कई लोगों को धमकी भरे मैसेज भेजे गए हैं."

उन्होंने आगे कहा कि, "फिर उन्होंने मेरी बात किसी कथित आईपीएस ऑफिसर से कराई, जिन्होंने कहा कि मेरा एक बैंक खाते के जरिए अवैध गतिविधि हो रही है, उन्होंने 7 करोड़ की मनी लॉन्ड्रिंग हुई है. उसने कहा कि मुझे तुरंत गिरफ्तार करने के आदेश हैं और अगर मैं मुंबई नहीं जाती हूं तो मुझे डिजिटल कस्टडी में रखा जाएगा. फिर उन्होंने कहा कि आपकी बात अब सीबीआई अफसर से होगी. उसने भी मुझसे यही कहा कि ये बात आप किसी को नहीं बताएंगी क्योंकि ये देश की सुरक्षा का मामला है."

ठगों ने डॉ टंडन को 7 दिनों तक डिजिटल हिरासत में रखा, और उनसे 2.81 करोड़ की ठगी की. उनसे कहा गया कि उन्हें सारे पैसे का रिकॉर्ड देना होगा और इसके लिए उन्हें सारे पैसे सरकारी बैंक अकाउंट में ट्रांसफर करने होंगे. ऐसे ठगों ने करोड़ों रुपये लूटे.

डिजिटल अरेस्ट का ये कोई पहला मामला नहीं है देश में कई सारे मामले सामने आ रहे हैं. हरियाणा के फरीदाबाद में एक 23 साल की लड़की को 24 घंटे डिजिटल अरेस्ट में रखा गया और उसेस 2.5 लाख रुपये की ठगी की गई. उसे स्काइप पर एक वीडियो कॉल आया जिसमें उसे कहा गया कि वे कस्टम ऑफिस लखनऊ से बात कर रहे हैं और उसका एक पार्सल पकड़ाया है जिसमें कई सारे पासपोर्ट कंबोडिया पहुंचाए जा रहे थे, लड़की पर तस्करी का आरोप लगाया गया.

फिर मामला रफा दफा करने के लिए उससे 15 लाख रुपये की मांग की गई, उसने 2.5 लाख रुपये उनके ट्रांसफर किए. 24 घंटे तक चले खेल में उन्होंने लड़की को वीडियो कॉल म्यूट करने की इजाजत नहीं दी, केवल बाथरूम जाने और अपने परिवार वालों से कुछ देर बात करने की इजाजत दी गई थी.

ऐसे अपराध के लिए सरकार क्या कर रही है? 

गृह मंत्रालय डिजिटल अरेस्ट को लेकर अलर्ट जारी कर चुका है. केंद्र सरकार ने माइक्रोसॉफ्ट के साथ मिलकर धमकी या एक्सटॉर्शन के मामले में इस्तेमाल की गई हजारों स्काइप (वीडियो कॉल एप) आईडी को ब्लॉक किया है.

इंडियन साइबर क्राइम को-ऑर्डिनेशन सेंटर (I4C) ने टेलिकॉम विभाग के साथ मिलकर फर्जी इंटरनेशनल कॉल्स को रोकने का काम शुरू किया है. I4C ने ईडी, सीबीआई जैसी सरकारी एजेंसियों को लोगो (logo) का गलत इस्तेमाल न हो इसके लिए अभियान शुरू किया है. साथ ही सोशल मीडिया पर ऐसे साइबर क्राइम से बचने के उपाय भी बताए हैं.

हालांकि भारत के कानून में डिजिटल अरेस्ट का जिक्र नहीं है. लेकिन ये मामला साइबर फ्रॉड का है इसलिए इसकी शिकायत हो सकती है.
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डिजिटल अरेस्ट से कैसे बचे और कहां करें इसकी शिकायत?

  • अपने पासवार्ड को बार-बार बदलते रहें

  • फोन, लैपटॉप या किसी अन्य डिवाइस के सॉफ्टवेयर को अप-टू-डेट रखें

  • जागरूकता बढ़ाएं, एंटीवारयस रखें

  • किसी भी अनजान लिंक पर क्लिक ना करें

  • ध्यान रहे गिरफ्तारी फिजिकल ही होती है, डिजिटल नहीं

  • पुलिस या कोई भी सरकारी अधिकारी, फोन या वीडियो कॉल पर कोई जानकारी नहीं देते, आधिकारिक दस्तावेज की हार्ड कॉपी आपके साथ साझा की जाती है.

  • अगर कोई इस तरह का फोन कर रहा है तो उसे कहे कि आप बुलाए गए पुलिस थाने पर जा सकते हैं.

  • अगर आप हादसे का शिकार हो गए हैं तो क्या करें?

  • पुलिस थाना या साइबर सेल में शिकायत दर्ज करवाएं

  • संचार साथी वेबसाइट पर सरकार का चक्षु नाम का पोर्टल है, उस पर शिकायत कर सकते हैं

  • साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर - 1930 पर कॉल कर शिकायत कर सकते हैं

  • साइबर क्राइम की वेबसाइट - www.cybercrime.gov.in पर भी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं

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क्या होती है साइबर किडनैपिंग और वर्चुअल रेप?

साइबर किडनैपिंग में दरअसल असल में किडनैपिंग होती ही नहीं है. इसमें होता ये है कि साइबर क्रिमिनल पहले पीड़ित से ऑनलाइन कनेक्ट होते हैं, उसे गेम लिंक या धमका कर कई टास्क करने का बोलते हैं. ये कैसे होता है, ये आपको 2023 के एक साइबर किडनैपिंग मामले से समझ आएगा.

दिंसबर 2023 में अमेरिका के रिवरडेल शहर में एक चाइनीज लड़का लापता हो गया, उसके माता-पिता चीन में ही रहते हैं. जब वह कॉल का जवाब नहीं दे रहा था तो माता-पिता ने स्कूल से संपर्क किया. इस दौरान क्रिमिनल का माता-पिता को फोन आया, उन्होंने कहा कि उनका बेटा कब्जे में है, उसका अपहरण किया गया है, उन्होंने फिरौती की मांग भी की.

क्रिमिनल ने बच्चे को धमका कर कहा था कि अगर वह उसकी नहीं मानेगा तो चीन में उसके माता-पिता को मार दिया जाएगा. इसके लिए उसे कई टास्क दिए गए. जैसे, माता-पिता से कहो कि तुम मुसीबत में हो और फिर शहर से दूर जा कर कहीं छिप जाओ.

माता-पिता ने फिरौती के 80 हजार डॉलर्स दिए. पुलिस ने जांच की तो उनका बेटा शहर से 40 किमी. दूर एक टेंट में छिपा हुआ था. यहां ना बच्चे का अपहरण हुआ था ना ही क्रिमिनल बच्चे से मिले थे.

वर्चुअल रेप का भी वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है. जैसे पबजी या किसी अन्य गेम आपको अपना डिजिटल अवतार या केरैक्टर बनाना होता है वैसे ही वर्चुअल दुनिया या मेटावर्स में ऐसे केरैक्टर्स बनाए जाते हैं. यहां आप कहीं भी घूम फिर सकते हैं, अपने केरैक्टर से किसी को छू सकते हैं, लोगों से मिल जुल कर सकते हैं. अगर मेटावर्स में कोई केरैक्टर किसी महिला केरैक्टर के साथ छेड़खानी या रेप करता है तो उसे वर्चुअल रेप कहते हैं.

अब असल में ये रेप तो नहीं माना जाता, लेकिन विदेशों में माना जाता है कि ऐसा करने से पीड़िता पर असर पड़ता है. मनोचिकित्सक भी कहते हैं कि कम उम्र की लड़कियां अगर मेटावर्स का इस्तेमाल करती हैं और वहां उनके साथ कोई ऐसी घटना घटती है तो इसका उनके पूरे जीवन पर खतरनाक असर पड़ सकता है.

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