डिजिटल मीडिया के भाषाई खिलाड़ियों को आखिर विज्ञापन कैसे मिलेगा? अपने कंटेंट से वे कमाई कैसे कर पाएंगे? उनका मॉडल क्या होगा? आखिर उन तक विज्ञापन एजेंसियां क्यों नहीं पहुंचतीं? कंज्यूमर्स तक विज्ञापन भारतीय भाषाओं में पहुंचाने में क्या दिक्कतें है? आखिर भारतीय भाषाओं के कंटेंट प्रोवाइडर अपना रेवेन्यू मॉडल किस तरह तैयार करें? ये कुछ ऐसे सवाल थे जिन पर क्विंट हिंदी और गूगल इंडिया के साझा आयोजन बोल- लव योर भाषा के दूसरे सेशन में चर्चा हुई.
‘पेड सब्सक्रिप्शन कमाई का जरिया लेकिन यह विकल्प आसान नहीं’
इटंरनेट में भारतीय भाषाओं के कमाई के मॉडल पर चर्चा के दौरान द क्विंट की को-फाउंडर और सीईओ रितु कपूर का कहना था कि भारतीय भाषाओं का कंटेंट पेश कर रहीं डिजिटल कंपनियों को अपनी क्वालिटी दुरुस्त करनी होगी. डिजिटल में निवेश अभी फ्यूचर के लिए किया जा रहा है. कंज्यूमरों को आकर्षित करने के लिए वीडियो की तादाद बढ़ानी होगी. एक तरीका यूजर्स से सब्सक्रिप्शन लेने का विकल्प हो सकता है.
इस सेशन में चर्चा में हिस्सा लेते हुए इंडियन एक्सप्रेस के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनंत गोयनका ने कहा कि विज्ञापन देने वालों को डिजिटल मीडिया से बात करके अपनी जरूरतों की चर्चा करनी होगी.विज्ञापन देने वाले हिंदी और भारतीय भाषाओं को विज्ञापन ना देने के बहाने बनाते हैं. हालांकि सब्सक्रिप्शन का विकल्प आसान नहीं होगा.
‘भारतीय भाषाओं का डिस्ट्रीब्यूशन दायरा काफी बड़ा’
डेली हंट के फाउंडर और सीईओ वीरेंद्र गुप्ता ने कहा कि भारतीय भाषाओं का नेटवर्क डिस्ट्रिब्यूशन का दायरा काफी बढ़ा है. भारतीय भाषाओं के प्लेटफॉर्म तीन से पांच साल में कमाई करा सकते हैं. ये भविष्य का प्लेटफॉर्म है. वैकल्पिक बिजनेस मॉडल तैयार करना बहुत अच्छा तरीका है. सब्सक्रिप्शन आय का तरीका हो सकता है.हालांकि विज्ञापन दाताओं से पैसे लेने के लिए स्टैंडर्ड भी बढ़ाना होगा
इस मामले पर गूगल के ऑनलाइन पार्टनरशिप डायरेक्टर जयवीर नागी ने भी कहा कि लोकल भाषाओं का दायरा बहुत बड़ा है, लेकिन इसमें कमाई होने में वक्त लगेगा भारतीय भाषाओं का डिजिटल प्लेटफॉर्म तेजी से बढ़ रहा है, अंग्रेजी के मुकाबले वीडियो में लोग ज्यादा वक्त दे रहे हैं. विज्ञापन देने वाले डिजिटल क्षेत्र में पैसा लगा रहे हैं. बेहतर कंटेंट जो देगा विज्ञापन उसके पास आएंगे और उन्हें आना पड़ेगा भारतीय भाषाओं में लोग कितना वक्त दे रहे हैं उऩके बारे में रिसर्च सामने आने के बाद विज्ञापन डिजिटल दुनिया में आने लगेंगे.
‘कंज्यूमर के हिसाब से कंटेंट तैयार करना होगा’
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भारतीय भाषाओं की कमाई के मॉडल पर विचार करने के दौरान आईपीजी मीडिया ब्रांड्स की चीफ स्ट्रेटजी ऑफिसर अदिति मिश्रा ने कहा कि ज्यादातर विज्ञापन अभी भी गूगल और फेसबुक के पास जाते हैं क्योंकि उनका अपना सिस्टम है.
हर ब्रांड के साथ जुड़ने के कई तरीके होते हैं. डिजिटल का दायरा बहुत बड़ा है लेकिन उसे कंज्यूमर की जरूरत के हिसाब से कंटेंट तैयार करना होगा. विज्ञापन तमाम भाषाओं में तैयार करने होंगे तभी उपभोक्ता उससे जुड़ पाएगा. हिंदी विज्ञापन को दूसरी भाषा में बदलने के लिए ट्रांसलेशन नहीं चलता. डिजिटल दुनिया में ट्रांसलेशन करने का आसान तरीका अभी भी काफी मुश्किल है.
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