दिवाली (Diwali 2022) का त्योहार नजदीक है, कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने प्रदूषण पर नियंत्रण रखने के लिए पटाखों की खरीद, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है. इस बीच कुछ राज्यों ने ग्रीन पटाखों के इस्तेमाल की छूट दी है. दिवाली के दिनों में राजधानी दिल्ली और पूरे भारत में प्रदूषण का स्तर 15 अक्टूबर से खतरनाक स्तर को छूने लगा.
कुछ राज्यों में ग्रीन पटाखों की अनुमति क्यों दी गई है? किन राज्यों ने पटाखों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है और ग्रीन पटाखे क्या होते हैं?
ग्रीन पटाखे क्या हैं?
ग्रीन पटाखे कम उत्सर्जन वाले पटाखे होते हैं, जो सल्फर नाइट्रेट्स, आर्सेनिक, मैग्नीशियम, सोडियम, लेड और बेरियम जैसे हानिकारक रसायनों से रहित होते हैं. ये पटाखे वैकल्पिक कच्चे माल का उपयोग करके बनाए जाते हैं, जिनका केमिकल कंपोजीशन भी इन्हें जलाने पर कम धूल पैदा करने में मदद करता है.
जबकि ग्रीन पटाखे और पारंपरिक पटाखे दोनों प्रदूषण का कारण बनते हैं लेकिन ग्रीन पटाखों के लिए दावा किया जाता है कि इनसे 30 प्रतिशत कम वायु प्रदूषण होता है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पीजीआईएमईआर के सामुदायिक चिकित्सा विभाग और स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, चंडीगढ़ के प्रोफेसर डॉ रवींद्र खैवाल ने कहा कि ग्रीन पटाखे उत्सर्जन को काफी कम करते हैं और धूल को अवशोषित करते हैं. इसके अलावा इसमें बेरियम नाइट्रेट जैसे खतरनाक तत्व नहीं होते हैं. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के मुताबिक ग्रीन पटाखे की अनुमति शहरों और टाउन इलाकों में दी जाती है. ऐसे शहर जहां हवा की क्वालिटी मध्यम या खराब है.
क्या ग्रीन पटाखों से ध्वनि प्रदूषण कम होता है?
कहा जाता है कि ग्रीन पटाखों से ध्वनि प्रदूषण भी कम होता है. ऐसा माना जाता है कि सामान्य पटाखों से लगभग 160 डेसिबल की आवाज निकलती है, जबकि ग्रीन पटाखों की आवाज 110-125 डेसिबल होती है. 85 डेसिबल से ऊपर का शोर सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकता है.
किन राज्यों ने पटाखों के इस्तेमाल पर बैन लगाया है?
दिल्ली: दिल्ली सरकार ने 1 जनवरी 2023 तक राष्ट्रीय राजधानी में सभी प्रकार के पटाखों के भंडारण, उपयोग और बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया है.
पंजाब: पंजाब सरकार ने 24 अक्टूबर को दिवाली पर पटाखे फोड़ने के लिए दो घंटे (रात 8 बजे से रात 10 बजे तक) की अनुमति दी है.
हरियाणा: हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (HSPCB) ने ग्रीन पटाखों को छोड़कर सभी प्रकार के पटाखों के निर्माण, बिक्री और उपयोग पर तत्काल बैन लगा दिया है.
पश्चिम बंगाल: पश्चिम बंगाल सरकार ने 24 अक्टूबर को काली पूजा के दौरान केवल ग्रीन पटाखों की अनुमति दी है.
तमिलनाडु: तमिलनाडु सरकार ने दिवाली पर दो घंटे के लिए पटाखे फोड़ने की अनुमति दे दी है. राज्य में सुबह 6-7 बजे से शाम 7-8 बजे के बीच पटाखे फोड़े जा सकते हैं.
वायु प्रदूषण के क्या प्रभाव हैं?
एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (AQLI) के मुताबिक वायु प्रदूष के मामले में भारत, बांग्लादेश के बाद दुनिया के दूसरे सबसे प्रदूषित देशों में से एक है. प्रदूषण औसत जीवन में पांच साल कम कर देता है.
शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में कहा गया कि प्रदूषण भारत में गंगा के आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले 40 प्रतिशत भारतीयों की जिंदगी में 7.6 साल की कटौती करेगा.
एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के मुताबिक भारत में गंगा के मैदानी इलाकों में 510 मिलियन निवासी रहते हैं, जो भारत की आबादी का लगभग 40 प्रतिशत हैं. अगर मौजूदा प्रदूषण का स्तर बना रहता है, तो औसतन एक व्यक्ति की 7 जिंदगी में 7 साल की कटौती करेगा. अगर दिल्ली की बात की जाए तो, अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन के बताए गए सुझाओं का पालन नहीं किया जाएगा तो एक व्यक्ति के जीवन का दस सल कम हो सकता है.
ग्रीन पटाखों में कितने प्रकार हैं?
भारत में तीन अलग-अलग प्रकार के ग्रीन पटाखे हैं-
SWAS (Safe Water Releaser): इस तरह के पटाखे हवा में जलवाष्प छोड़ते हैं, जो धूल को कम करने में मदद करता है. ऐसा कहा जाता है कि ये पटाखे पार्टिकुलेट डस्ट को लगभग 30 प्रतिशत तक कम कर देते हैं. इस तरह के पटाखों में पोटेशियम नाइट्रेट और सल्फर नहीं होता है.
STAR (Safe Thermite Cracker): इन पटाखों में पोटेशियम नाइट्रेट और सल्फर नहीं होता है और सामान्य पटाखों की तुलना में कम नुकसानदायक होते हैं. इनमें शोर भी कम होता है.
SAFAL (Safe Minimal Aluminium): इन पटाखों में एल्युमीनियम का उपयोग बेहद कम होता है और सामान्य पटाखों की तुलना में इनसे बहुत कम शोर भी होता है.
सामान्य पटाखों का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
मार्केट में मिलने वाले सामान्य पटाखों से कई जहरीली धातुएं निकलती हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं. पटाखों से निकलने वाले सफेद रंग में एल्युमिनियम, मैग्नीशियम और टाइटेनियम होता है, जबकि नारंगी रंग में कार्बन या आयरन होता है. पीले एजेंट में सोडियम यौगिक होते हैं जबकि नीले और लाल तांबे के यौगिक और स्ट्रोंटियम कार्बोनेट पाए जाते हैं.
डॉक्टर खैवाल के मुताबिक पटाखों में पाए जाने वाले लेड का नर्वस सिस्टम पर असर पड़ता है, जबकि कॉपर श्वसन तंत्र में जलन पैदा कर सकता है. इसके अलावा सोडियम स्किन पर प्रभाव डाल सकता है और मैग्नीशियम धातु का धुंआ बुखार की वजह बन सकता है.
कैडमियम न केवल एनीमिया का कारण बनता है बल्कि गुर्दे को भी नुकसान पहुंचाता है. इसके अलावा नाइट्रेट सबसे ज्यादा हानिकारक है, जो मानसिक तौर पर असर डाल सकता है. पटाखों में शामिल नाइट्राइट श्लेष्म झिल्ली, आंखों और त्वचा में जलन पैदा करती है.
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