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EDMC:14 साल की मरीजों की सेवा,कोरोना में शव उठाए, अब एक झटके में 170 की गई नौकरी

Delhi: पूर्वी दिल्ली नगर निगम के शहादरा जोन के दयानंद अस्पताल में 170 कर्मचारियों को बेरोजगार कर दिया गया है

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‘सबसे उच्च कोटि की सेवा ऐसे व्यक्ति की मदद करना है जो बदले में आपको धन्यवाद कहने में असमर्थ हो’

ये विचार आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक और आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती का है. इन्हीं के नाम पर पूर्वी दिल्ली नगर निगम के अंतर्गत शाहदरा जोन के सी ब्लॉक में एक अस्पताल है.

हाल ही में इस अस्पताल के लिए काम करने वाले 170 सफाई कर्मचारियों को एक झटके में बेरोजगार कर दिया गया. इन सफाई कर्मचारियों ने अपनी नौकरी के दौरान हजारों ऐसे लोगों की सेवा की है जो बदले में इन्हें धन्यवाद कहने में असमर्थ थे.

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ये सभी 170 महिला-पुरुष सफाई कर्मचारी ‘प्रहरी साइबर सिक्योरिटी एंड फैसिलिटीज प्राइवेट लिमिटेड’ के जरिए स्वामी दयानन्द अस्पताल में ठेके पर काम करते थे. गत 14 वर्षों से अस्पताल को सेवा दे रहे इन सफाई कर्मचारियों की नौकरी 30 मार्च, 2022 की रोज बिना किसी पूर्व सूचना खत्म कर दी गई.

20 साल की उम्र से स्वामी दयानंद अस्पताल में सफाई का काम करने वाली प्रीति बताती हैं कि ‘‘30 मार्च को सुबह 7 बजे से लेकर दोपहर के 11:30 बजे तक हमसे काम कराया गया. फिर इंचार्ज हर पोस्ट पर गया और कह दिया कि अब तुम लोगों का काम खत्म हो गया. यहां से चले जाओ. अब तुम लोगों के लिए कोई काम नहीं है. हम रोने-चीखने लगे. हमने पूछा कि सर हम कहां जाएं? तो इंचार्ज ने कहा- हमें नहीं पता कहां जाओगे. जहां जाना है चले जाओ. हमें तुम लोगों से अब कोई मतलब नहीं है’’

170 परिवारों की आर्थिक सुरक्षा एक झटके में सरकार द्वारा पोषित और प्रोत्साहित ठेका प्रथा की बलि चढ़ गई. भर्राई आवाज में अपनी बात खत्म करते हुए प्रीति कहती हैं, हमने तो उस अस्पताल में काम किया जो EDMC (East Delhi Municipal Corporation) के अंतर्गत आता है. मैंने अपनी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण समय अस्पताल को दे दिया. मैं जब 20 साल की थी तब से यहां काम कर रही हूँ, अभी मैं 34 साल की हो गयी हूँ.

कोविड के दौरान लाश उठवाया गया’

आज जो सफाई कर्मचारी कंपनी और ईडीएमसी के बीच गेंद की तरह उछाले जा रहे हैं. इन्हीं सफाई कर्मचारियों ने कोरोना महामारी के दौरान अपनी जान पर खेलकर सेवा देना जारी रखा था. लम्बे समय से अस्पताल में काम कर रही प्रतिमा बताती हैं कि ‘‘लॉकडाउन में यातायात का साधन न मिलने पर हम अलग-अलग गाड़ियों से लिफ्ट लेकर अस्पताल पहुंचते थे.

बीमार हो जाते थे फिर भी छुट्टी नहीं ले सकते थे. उस वक्त डॉक्टर और दूसरे स्टाफ पीछे हो जाते थे और हमे आगे कर दिया जाता था. हम कोरोना से मरने वालों की बॉडी पैक करते थे. उस वक्त लगता था कि किसी भी दिन जान चली जाएगी फिर भी घर चलाने के लिए, बच्चों को पालने पोसने के लिए हम इस काम को करते रहे’’

कोरोना की पहली लहर में इन्हीं सफाई कर्मचारियों में से एक 42 वर्षीय शील कुमार की ड्यूटी के दौरान मौत भी हो गई थी. शील के परिवार को कंपनी, अस्पताल या ईडीएमसी की तरफ से कोई मुआवजा या सहायता नहीं दी गई थी.

नीतू नाम की एक विधवा सफाई कर्मचारी अपनी व्यथा सुनाते हुए कहती हैं कि हमसे सफाई के अलावा भी अन्य कई काम कराए जाते थे. जैसे अस्पताल के लिए बाहर से सामान लाना, मरीजों को वॉर्ड में शिफ्ट करना, बेड का चादर बदलना, लैब में सहायता करना, इत्यादि. ये सब हमारे काम नहीं हैं फिर भी अपना रोजगार बचाने के लिए हम सब ये करते रहे.

बेरोजगार हुए ये सभी सफाई कर्मचारी 12,500 के मासिक वेतन पर काम करते थे. 8 घंटे की शिफ्ट होती थी. पूरे साल बिना छुट्टी काम करना होता था. न किसी त्योहार पर छुट्टी ले सकते थे, न मतदान के लिए छुट्टी ले सकते थे और न ही राष्ट्रीय अवकाश वाले दिन अवकाश मिलता था. अगर किसी कर्मचारी ने अपनी मर्जी से एक भी छुट्टी कर ली तो चार से पाँच दिन के लिए काम से भगा दिया जाता था.

ठेका प्रथा और मजदूरों की खरीद फरोख्त

सरकारों द्वारा लगातार प्रोत्साहित किए जा रहे ठेका प्रथा के दुष्परिणाम को समझने के लिए इन सफाई कर्मियों की दारूण व्यथा सटीक उदाहरण हो सकती है. स्वामी दयानंद अस्पताल में गत 14 वर्षों से काम कर रहे इन सफाई कर्मियों के मालिक दो बार बदल चुके थे. मजदूरों को इस प्रक्रिया की कोई जानकारी नहीं होती. उन्हें मालिक बदलने की बात तब पता चलती है जब नई कंपनी द्वारा जारी आइडेंटी कार्ड प्राप्त होता है.

प्रहरी साइबर के अधिकारियों ने इन्हें संपर्क करने के लिए जो भी नंबर उपलब्ध कराए थे, वो सभी अब बंद हो चुके हैं.हमने भी कंपनी से संपर्क करने की तमाम कोशिशें की. फोन कॉल किया तो नंबर बंद पाया. कंपनी के आधिकारिक ईमेल एड्रेस के माध्यम से भी संपर्क करने का प्रयास किया. लेेकिन रिपोर्ट लिखे जाने तक ईमेल का जवाब नहीं आया था.

अब आन्दोलन के रास्ते न्याय की तलाश

व्यवस्था से निराश सफाई कर्मियों ने अब आंदोलन का रास्ता अपनाया है. 18 अप्रैल को कर्मियों ने ‘ठेकेदारी हटाओ राष्ट्रीय संयुक्त मोर्चा’ के बैनर तले अस्पताल के बाहर धरना प्रदर्शन किया. कोई सुनवाई तो नहीं हुई लेकिन अस्पताल के बाहर अव्यवस्था जरूर बढ़ गई.

समस्या को समझते हुए अब आंदोलन को पूर्वी दिल्ली नगर निगम मुख्यालय के बाहर व्यवस्थित रूप से किया जा रहा है. सफाई कर्मियों के आंदोलन को नेतृत्व प्रदान कर रहे ‘ठेकेदारी हटाओ राष्ट्रीय संयुक्त मोर्चा’ के चेयरमैन राजकुमार धिंगान कार्मिक एंव प्रशिक्षण विभाग की गाइडलाइन और श्रम कानून का हवाला देते हुए कहते हैं कि ‘‘जिन कर्मचारियों को प्रमोशन देना चाहिए, जिन्हें परमानेंट करना चाहिए नगर निगम उनकी नौकरी ही छीन ले रहा है. मेयर के साथ एक बार बैठक हो चुकी है. अगली बैठक सोमवार को होने वाली है जिसमें मेयर, कमिश्नर और दिल्ली सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष संजय गहलोत शामिल होंगे.

अगर बैठक से कोई परिणाम नहीं निकला तो ये आंदोलन उग्र होगा. दिल्ली के सभी अस्पतालों के सफाई कर्मचारियों की हड़ताल करवा देंगे. सरकारी सफाई कर्मियों से भी काम बंद करवा देंगे. हम देखते हैं अस्पतालों की सफाई कैसे होती है. अगर हमारी मांगों को नहीं माना गया तो हम मेयर और कमिश्नर के घरों को कूड़े से भर देंगे’’

मेयर का अटपटा जवाब

पूर्वी दिल्ली नगर निगम के मेयर श्याम सुंदर अग्रवाल की माने तो सफाई कर्मियों की नौकरी जाने का मामला निगम से जुड़ा नहीं है. निगम के अस्पताल में 14 साल तक सेवा देने वाले सफाई कर्मियों से पल्ला झाड़ते हुए मेयर ने कहा, हमने कम्पनी को ठेका दिया था. कंपनी का टाइम खत्म हो गया. कम्पनी चली गई तो हमारा उनके कर्मचारियों से क्या मतलब. जब ये हमारे कर्मचारी हैं ही नहीं तो हम इनके बारे में क्यों सोंचे.

एक उदाहरण से अपनी बात को समझाते हुए मेयर श्याम सुंदर अग्रवाल कहते हैं, ‘‘अगर हम कोई मकान बनवाते हैं, मकान बनाने के लिए मजदूर और मिस्त्री आते हैं तो क्या हम उन्हें घर में बसा लेते हैं’’

भारत जैसे एक वेलफेयर स्टेट में संवैधानिक पद पर पदस्थ व्यक्ति द्वारा इस तरह के कैपिटलिस्ट वोकैबलरी और उदाहरणों का इस्तेमाल खटकता है. मेयर का उदाहरण सीजनल कामों के लिए इस्तेमाल होने वाले लेबर्स पर भले ही आंशिक रूप से लागू हो जाए. लेकिन आवश्यक सेवा वाले विभाग में लगातार 14 वर्षों से कार्यरत कर्मचारी ऐसे उदाहरणों की परिधि से बाहर नजर आते हैं. सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति भले ही किसी प्राइवेट कम्पनी ने की हो लेकिन निगम प्रधान नियोक्ता की अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता है.

‘प्रहरी साइबर सिक्योरिटी एंड फैसिलिटीज प्राइवेट लिमिटेड’ से कॉन्ट्रैक्ट खत्म किए जाने के सवाल पर मेयर कहते हैं, हम पहले ही आर्थिक संकट में फंसे हुए हैं. अपने कर्मचारियों को पाँच-पाँच माह की तनख्वाह नहीं दे पा रहे हैं. हमारे कर्मचारी परेशान हैं.

सरप्लस कर्मचारियों होने का दावा करते हुए मेयर श्यामसुंदर अग्रवाल कहते हैं कि पहले मेट्रो वेस्ट कम्पनी नहीं थी. मेट्रो वेस्ट कम्पनी आयी तो 2400 एम्पलाई आ गए. हमारे पास कर्मचारी पहले ही फालतू हो गए हैं. हम इन्हें कैसे रख लें. ये कम्पनी और उनका मैटर है. हमें इससे कोई लेना-देना नहीं है.

बता दें कि मेट्रो वेस्ट कम्पनी प्रहरी साइबर की तरह ही एक प्राइवेट कम्पनी है जिसे ईडीएमसी ने 2020 में हायर किया था. इस कम्पनी को घर-घर जाकर कूड़ा उठाने, सड़क से कूड़ा उठाने और कूड़े को लैंडफिल तक पहुंचाने का ठेका दिया गया है. (1)

मेट्रो वेस्ट को काम पर लगाते वक्त ईडीएमसी आयुक्त दिलराज कौर ने स्पष्ट किया था कि इस परियोजना से सफाई कर्मचारियों की छंटनी नहीं होगी. इसका उद्देश्य केवल सेवाओं में सुधार करना है. तत्कालीन ईडीएमसी आयुक्त ने सफाई कर्मचारियों की चिंता को निराधार बताया था. हालांकि मौजूदा परिस्थिति तत्कालीन ईडीएमसी आयुक्त के वादे को धोखा साबित कर रही है.

जहां तक सरप्लस कर्मचारियों का दावा है तो इसे पूर्वी दिल्ली नगर निगम की स्थाई समिति द्वारा लाए गए एक प्रस्ताव से समझा जा सकता है. ये प्रस्ताव 8 सितंबर 2016 को लाया गया था जिसके मुताबिक, चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों यानी माली, सफाईकर्मी, आदि को दफ्तर का फाइल ढोने के लिए कहा गया था. निगम ने तब ये स्वीकार किया था कि कर्मचारियों की भारी कमी है और निगम आर्थिक तंगी के बुरे दौर से गुजर रहा है. (2)

ईडीएमसी का कहना था कि ‘‘समय के साथ कर्मचारी रिटायर हो गए हैं और नगर निगम के पास इतना पैसा है नहीं कि नए कर्मचारियों की भर्ती की जाए. इसलिए दफ्तर के चपरासी का काम भी अब चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों से कराया जाएगा’’

निगम में लम्बे समय से स्थायी सफाई कर्मचारियों की कोई भर्ती नहीं हुई है. हालत ये है कि नगर निगम के चुनाव को देखते हुए सत्तारूढ़ भाजपा ने फरवरी 2022 में 16000 के करीब सफाई कर्मचारियों को नियमित करने का वादा किया है. ये वो कर्मचारी हैं जो 2003 के पहले से काम कर रहे हैं. (3)

इसके अलावा एक सवाल ये भी उठता है कि अगर निगम के पास कर्मचारी सरप्लस हैं तो केंद्रीय आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय के स्वच्छता सर्वेक्षण में पूर्वी दिल्ली लगातार पिछड़ क्यों रहा है. स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 के सर्वे में पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने नीचे से दूसरा स्थान हासिल किया था. (5)

चिकित्सा अधीक्षक डॉ. रजनी खेड़वाल से जब इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने हताश भाव से कहा कि सफाई कर्मचारियों को हटाए जाने के फैसले में मेरी कोई भूमिका नहीं है. मैं तो चाहती हूँ कि वो कर्मचारी दोबारा काम पर आएं. लम्बे समय से काम करने की वजह से वो अनुभवी हो चुके थे.

यहां ये बता देना आवश्यक है कि 170 सफाई कर्मचारियों को हटाने के बाद ईडीएमसी ने जिन 300 सरकारी सफाई कर्मचारियों को काम पर लगाया है उन्हें अस्पताल के कार्यों का बिलकुल भी अनुभव नहीं है. इन सभी सफाईकर्मियों ने अब तक सिर्फ सड़कों की सफाई का काम किया है. अस्पताल में लाए जाने से पहले ये सभी शाहदरा की सड़कों की सफाई करते थे. ये सफाई कर्मचारी खुद भी अस्पताल में काम लगाए जाने से खुश नहीं हैं.

नाम न छापने की शर्त पर एक बुजुर्ग महिला सफाईकर्मी कहती हैं कि ‘‘बुढ़ापे में हमें अस्पताल का काम दे दिया. 60 साल हमारी उम्र है. बस दो-चार साल नौकरी बची है. यहां हमें चार-चार बार पोछा लगाना पड़ता है. बेड भी बिछाना पड़ता है’’

अस्पताल के भीतर कई अन्य सरकारी महिला सफाई कर्मियों से बातचीत करने पर ये पता चला कि वो प्राइवेट सफाई कर्मियों के हटाए जाने से नाखुश हैं. वो कहती हैं, हम तो चाहते हैं कि उन्हें भी रखा जाए. सरकार उनकी रोजी-रोटी ना छीने. उनके भी छोटे-छोटे बच्चे हैं. लेकिन यहां न्याय करने वाला कौन है. गरीबों की सुनने वाला कौन है. उन बेचारों को हटा दिया. उन्होंने तो कोविड में लाशें भरी थी.जहां तक गैर-अनुभवी सफाई कर्मियों से अस्पताल में काम लेने का सवाल है तो इसपर चिकित्सा अधीक्षक डॉ. रजनी खेड़वाल का कहना है कि ‘ये लोग भी काम करते-करते सीख जाएंगे’

क्या नौकरी वापस पाने के हकदार हैं सफाईकर्मी?

साल 2011 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अशोक कुमार गांगुली और न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर की पीठ ने निर्णय दिया था कि अस्थायी रूप से 240 दिन से अधिक काम करने वाला कर्मचारी स्थायी नौकरी का हकदार है. (4)

ठेकेदारी हटाओ राष्ट्रीय संयुक्त मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डी.सी. कपिल इस पूरे प्रकरण के कानून पहलू को बताते हुए कहते हैं कि ‘‘आवश्यक सेवा वाले विभाग में अगर कर्मचारी को काम करते हुए लगातार 8 माह हो जाता है यानी 240 दिन हो जाता है तो सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार उन्हें बिना किसी वजह हटा नहीं सकते.

ऐसे कर्मचारियों को समान कार्य का समान वेतन भी दिया जाना चाहिए. यानी इस काम के लिए जितना वेतन किसी सरकारी कर्मचारी को दिया जाता है उतना ही वेतन ठेके पर रखे गए कर्मी को भी दिया जाना चाहिए.

सरकार ने इन सफाई कर्मचारियों से आवश्यक सेवा वाले विभाग में काम लिया. अगर विभाग को इनकी जरूरत नहीं थी तो इनसे लगातार 14 साल तक काम क्यों लिया गया? इनकी जिंदगी के इतने लम्बे समय को खराब क्यों किया गया?’’

ईडीएमसी के आर्थिक तंगी वाले बयान का जवाब देते हुए कपिल कहते हैं ‘‘केंद्र में 8 साल से भाजपा की सरकार है, 15 साल से निगम की सत्ता संभाले हुए हैं तो पैसे कौन लाएगा? आर्थिक तंगी के लिए कौन जिम्मेदार है? अगर 15 साल के भीतर फाइनेंशियल क्राइसिस हुआ है तो इसके लिए भाजपा जिम्मेदार है ये सफाई कर्मचारी नहीं. सरकार के मित्र मंडली के लोग एक-एक लाख करोड़ रुपये लेकर के इंडिया से भाग रहे, उनके लिए पैसा है. अंबानी और अडानी के लिए पैसा है. लेकिन गरीब कर्मचारी को वेतन देने के लिए पैसा नहीं है?’’

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