एक बार फिर सभी अटकलों को खारिज करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा है कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने की संभावना है ही नहीं. मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने कहा कि दोनों चुनाव एक साथ कराने के लिए कानूनी ढांचा तैयार किए जाने की जरूरत है. हाल के दिनों में ऐसी अटकलें थीं कि इस साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में विधानसभा चुनावों को टाला जा सकता है और उन्हें अगले साल मई-जून में लोकसभा चुनावों के साथ कराया जा सकता है.
इसी साल कई राज्यों में होने हैं विधानसभा चुनाव
मिजोरम विधानसभा का कार्यकाल 15 दिसंबर को खत्म हो रहा है जबकि छत्तीसगढ़ का 5 जनवरी, मध्य प्रदेश का 7 जनवरी और राजस्थान विधानसभा का 20 जनवरी, 2019 को पूरा होगा.
मुख्य चुनाव आयुक्त से जब ये सवाल किया गया कि क्या लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना मुमकिन है, रावत ने कहा, ‘‘कोई संभावना नहीं.'' उनकी टिप्पणी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के उस हालिया बयान की पृष्ठभूमि में है जिसमें उन्होंने दोनों चुनाव एक साथ कराने के लिए सभी पक्षों के बीच ‘‘खुली बहस'' का आह्वान किया था.
मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताई दिक्कतें
रावत ने कहा कि सांसदों को कानून बनाने के लिए कम से कम एक साल लगेंगे. इस प्रक्रिया में समय लगता है. जैसे ही संविधान में संशोधन के लिए विधेयक तैयार होगा, हम (चुनाव आयोग) समझ जाएंगे कि चीजें अब आगे बढ़ रही हैं. रावत ने कहा कि चुनाव आयोग, लोकसभा चुनाव की तैयारी वोटिंग की तय सीमा से 14 महीने पहले शुरू कर देता है. उन्होंने कहा कि आयोग के पास सिर्फ 400 कर्मचारी हैं लेकिन 1.11 करोड़ लोगों को चुनाव ड्यूटी पर तैनात करता है.
'ईवीएम के बारे में समझ नहीं'
ईवीएम मशीनों की ‘नाकामी' की शिकायतों से जुड़े एक सवाल पर रावत ने अफसोस जताया कि भारत के कई हिस्सों में ईवीएम सिस्टम के बारे में व्यापक समझ नहीं है. उन्होंने कहा कि नाकामी की दर 0.5 से 0.6 फीसदी है और मशीनों के खराब होने की ऐसी दर को मंजूर किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि मेघालय विधानसभा उपचुनाव में वीवीपीएटी के खराब होने की शिकायतें आयीं लेकिन उनसे बचा जा सकता था,अगर अधिकारियों ने खास किस्म के कागज का इस्तेमाल किया होता. एक और सवाल के जवाब में रावत ने कहा कि चुनाव आयोग को पूरी छूट हासिल है और ये देखा जा सकता है कि पिछले साल गुजरात में राज्यसभा चुनाव के दौरान चुनाव अधिकारी राजनीतिक दबाव में नहीं झुके.
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