एक अचंभित करने वाले शर्तनामे के साथ ट्विटर (Twitter) के बोर्ड ने घोषणा की है कि वह दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क (Elon Musk) की बोली को मंजूर कर रहे हैं. मस्क ने ट्विटर को खरीदने की पेशकश की थी. लेकिन क्या यह अधिग्रहण जनहित में होगा?
मस्क ने 54.20 डॉलर प्रति शेयर की पेशकश की है. इस हिसाब से कंपनी की वैल्यू होगी 44 बिलियन डॉलर- यह अब तक के सबसे बड़े बायआउट्स में से एक है.
मॉर्गन स्टेनली और दूसरे बड़े फाइनांशियल इंस्टीट्यूशंस मस्क को 25.5 अरब डॉलर का कर्ज देंगे. मस्क खुद करीब 20 अरब डॉलर लगाएंगे. यह उनके सिंगल बोनस के बराबर है, जो उन्हें टेस्ला से मिलने की उम्मीद है.
ट्विटर के चेयर को लिखी एक चिट्ठी में मस्क ने दावा किया कि वह "दुनिया भर में फ्री स्पीच को प्लेटफॉर्म" मुहैय्या कराने के लिए ट्विटर की "असाधारण क्षमता" का "इस्तेमाल" करेंगे.
लेकिन यह एक आदर्शवादी सोच है कि सोशल मीडिया लोगों को आजादी से अपने विचार व्यक्त करने का मंच देता है.
असल में ट्विटर पर एक ऐसे व्यक्ति का मालिकाना हक है, जिसके अपने कई ट्विट्स झूठे, सेक्सिस्ट, मार्केट को प्रभावित करने वाले और यकीनन नुकसानदेह हैं जोकि इस प्लेटफॉर्म के भविष्य को ही खतरे में डालते हैं.
क्या ट्विटर पूरी तरह से बदल सकता है
हम मस्क के नए कदम को थोड़ा आहिस्ता से देखते हैं क्योंकि इससे उन्हें ट्विटर पर जबरदस्त ताकत मिलेगी. उन्होंने इस प्लेटफॉर्म पर कई तरह के बदलावों के बारे में सोचा है जैसे:
मौजूदा मैनेजमेट में फेरबदल क्योंकि उनका कहना है कि उन्हें मौजूद अधिकारियों पर भरोसा नहीं है
ट्वीट्स में एडिट बटन जोड़ना
कंटेट मॉडरेशन एप्रोच को कमजोर करना- इसमें यूजर्स को एकदम से बैन करने की बजाय कुछ समय के लिए सस्पेंड करना शामिल है, और
स्पॉटिफाई की तरह "फ्रीमियम" मॉडल अपनाना, जिसमें यूजर्स ज्यादा दखल देने वाले एड्स को हटाने के लिए कुछ रकम चुका सकते हैं.
लेकिन ट्विटर के सबसे बड़े शेयरहोल्डर बनने के बाद इस महीने की शुरुआत में मस्क ने यह भी कहा था, “मैं इकोनॉमिक्स की बिल्कुल परवाह नहीं करता.”
लेकिन जिन बैंकर्स ने उन्हें 25.5 बिलियन डॉलर उधार दिए हैं, वे बेशक इसकी परवाह करते हैं. मस्क पर इस बात का दबाव जरूर बनाया जा सकता है कि वह ट्विटर के मुनाफे को बढ़ाएं. उनका कहना है कि उनकी प्रायॉरिटी फ्री स्पीच है लेकिन उनके विज्ञापनदाता नहीं चाहेंगे कि वे किसी उग्र टिप्पणी के सामने अपने प्रॉडक्ट को पेश करें.
हाल के वर्षों में ट्विटर ने गवर्नेंस और कंटेट मॉडरेशन की अनेक नीतियां लागू की हैं. जैसे 2020 में उसने कोविड-19 से जुड़े ऐसे कंटेट को काबू में करने के लिए अपनी ‘नुकसान की परिभाषा’ को व्यापक बनाया, जो आधिकारिक स्रोतों से जारी होने वाले दिशानिर्देशों के विपरीत थे.
ट्विटर का कहना है कि उसने “सार्वजनिक संवाद की सेवा” में और दुष्प्रचार, गलत सूचनाओं को रोकने के लिए अपनी कंटेट मॉडरेशन एप्रोच को बदला है. वह यह दावा भी करता है कि यूजर्स को जिस तरह के बुरे बर्ताव और अशालीनता का सामना करना पड़ता है, उसके जवाब में उसने यह कदम उठाया है.
हालांकि अगर भविष्य के लिहाज से देखा जाए तो लगता है कि ट्विटर अपनी इज्जत बचाने के लिए ऐसे कदम उठा रहा है क्योंकि उसे तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है.
मस्क का ‘टाउन स्क्वेयर’ आइडिया चलने वाला नहीं
ट्विटर की मंशा जो भी हो, मस्क ने उसके मॉडरेशन टूल्स को खुलकर चुनौती दी है.
वह ट्विटर को "डी फैक्टो पब्लिक स्क्वेयर" का लेबल दे चुके हैं. वैसे उनका यह बयान काफी मासूम लगता है. जैसे कम्यूनिकेशंस स्कॉलर और माइक्रोसॉफ्ट रिसर्चर टार्लटन गिलेस्पी का तर्क है, यह एक फैंटेसी है कि सोशल मीडिया एक ओपन स्पेस की तरह काम कर सकता है. वह भी यह देखते हुए कि प्लेटफॉर्म्स कंटेट को मॉडरेट करते हुए इस प्रक्रिया को नकराते भी जाते हैं.
गिलेस्पी का कहना है कि प्लेटफॉर्म्स को मॉडरेट करने के लिए मजबूर किया जाता है- यूजर्स को उनके विरोधियों से बचाने के लिए, आपत्तिजनक या गैरकानूनी सामग्री को हटाने के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे नए यूजर्स, विज्ञापनदाताओं, पार्टनर्स और जनता के सामने अपना सुंदर बेहतरीन चेहरा पेश कर सकें. गिलेस्पी कहते हैं कि चुनौती यह होती है कि हस्तक्षेप आखिर कब, कैसे और क्यों किया जाए.
ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म "टाउन स्क्वायर" की नुमाइंदगी नहीं कर सकते हैं- खास तौर से, ट्विटर के मामले में. क्योंकि टाउन यानी शहर का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा ही इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करता है.
पब्लिक स्क्वेयर साफ तौर से सामाजिक व्यवहार से रेगुलेट होते हैं जोकि सार्वजनिक संबंधों से जुड़े होते हैं. अगर कोई अव्यवस्था पैदा होती है तो व्यवस्था कायम करने के लिए किसी एक अथॉरिटी की क्षमता का इस्तेमाल किया जाता है. निजी व्यवसाय के मामले में, जोकि अब ट्विटर है, अंतिम फैसला मस्क ही लेंगे.
अगर मस्क को अपना खुद के टाइम स्क्वेयर का मॉडल लागू करना हो तो वह भी एक फ्री-व्हीलिंग वर्जन होगा, यानी बंधनमुक्त और खुला.
यूजर्स को ज्यादा छूट देने से हो सकता है, कि वे बढ़ते ध्रुवीकरण में और इजाफा कर दें और प्लेटफॉर्म पर अधिक अभद्र संवाद हो. लेकिन इससे भी विज्ञापनकर्ता निराश और हतोत्साहित होंगे जोकि ट्विटर के मौजूदा आर्थिक मॉडल में चिंता का विषय है (जहां 90 प्रतिशत विज्ञापन से ही कमाई होती है).
फ्री स्पीच (लेकिन क्या सभी के लिए)
ट्विटर दूसरे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के मुकाबले छोटा मंच है. हालांकि तमाम अध्ययनों से पता चलता है कि इसका असर गैर अनुपातिक रूप से ज्यादा होता है क्योंकि परंपरागत मीडिया की तुलना में ट्विट तेजी से वायरल होते हैं.
यूजर्स जिन व्यूप्वाइंट्स से रूबरू होते हैं, वे एक्सपोजर और क्लिक को अधिक से अधिक करने के लिए तैयार किए गए एल्गोरिदम से निर्धारित होते हैं. उनका काम यूजर्स की जिंदगी को विचारवान या दिलचस्प नजरिए से समृद्ध करना नहीं होता.
मस्क ने सुझाव दिया है कि वह ट्विटर के एल्गोरिदम को ओपन सोर्स बना सकते हैं. इससे पारदर्शिता बढ़ेगी. लेकिन एक बार जब ट्विटर एक निजी कंपनी बन जाता है, तो उसका कामकाज कितना पारदर्शी होगा, यह काफी हद तक मस्क की मनमर्जी पर निर्भर करेगा. विडंबना यह है कि मस्क ने मेटा (पहले फेसबुक) के सीईओ मार्क जुकरबर्ग पर आरोप लगाया है कि वह पब्लिक डिबेट पर बहुत अधिक नियंत्रण रखते हैं.
वैसे इतिहास गवाह है कि मस्क अपने आलोचकों के विचारों को कैसे दबाने की कोशिश करते हैं. सवाल यह है कि क्या वह सचमुच ट्विटर के जरिए एक खुले और समावेशी टाउन स्क्वेयर को बनाना चाहते हैं. यूं ऐसा करना जनहित में होगा.
(लेखक जॉन हॉकिन्स और माइकल जेम्स वॉल्श यूनिवर्सिटी ऑफ कैनबेरा, ऑस्ट्रेलिया में प्रोफसर हैं. यह आर्टिकल मूल रूप से द कन्वर्सेशन में प्रकाशित हुआ है. मूल आर्टिकल यहां पढें.)
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