सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 13 सितंबर को ईडब्ल्यूएस कोटे (EWS Quota) पर सुनवाई शुरू कर दी है. बहस इस पर शुरू की गई है कि क्या संविधान का (103वां संशोधन) अधिनियम, जिसने सरकारी नौकरियों और एंट्रेंस में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत कोटा पेश किया है, वह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है या नहीं.
याचिकाकर्ताओं की ओर से कानूनी विद्वान जी मोहन गोपाल ने मंगलवार को अदालत में दलीलें पेश करते हुए कहा,
"103वां संशोधन संविधान के साथ धोखाधड़ी है. जमीनी स्तर की हकीकत यह है कि यह देश को जाति के आधार पर बांट रहा है.”जी मोहन गोपाल, कानूनी विद्वान
उन्होंने कहा, "यह लोगों के दिमाग में संविधान की पहचान को बदल देगा, जो कमजोरों के बजाय विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की रक्षा करता है."
इस संशोधन को "सामाजिक न्याय की संवैधानिक दृष्टि पर हमला" कहते हुए, जी मोहन गोपाल ने तर्क दिया कि आरक्षण केवल "प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए जरुरी है ताकि यह 'अवसर की समानता' को न खत्म करे जो कि पिछड़े वर्गों की चिंता का विषय है."
भारत के मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित के नेतृत्व में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ में जस्टिस एस रवींद्र भट, दिनेश माहेश्वरी, एस बी पारदीवाला और बेला त्रिवेदी शामिल हैं, जो इस मामले की अध्यक्षता कर रहे हैं.
ईडब्ल्यूएस कोटा को चुनौती अगस्त 2020 में पांच-न्यायाधीशों की पीठ को रेफर की गई थी.
पीठ ने कहा कि वह संशोधन से जुड़े तीन पहलुओं की कानूनी वैधता की जांच करेगी-
पहला, क्या यह संशोधन राज्य को आर्थिक मानदंडों के आधार पर आरक्षण देने की अनुमति देना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है.
दूसरे, क्या गैर सहायता प्राप्त निजी संस्थानों में प्रवेश के संबंध में विशेष प्रावधान करना राज्य के लिए कानूनी रूप से वैध है.
और तीसरा, क्या सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग (अन्य पिछड़ा वर्ग), अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का बहिष्कार संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है.
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