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बिजनौर पुलिस फायरिंग में मारे गए दो युवकों के परिवार की दास्तां

बिजनौर जिले के नहटौर में विरोध प्रदर्शन की हिंसा में इन दो युवकों की मौत हो गई थी

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"बिजनौर में कहीं गड्डा खोदकर दफना देना कहीं लाश. नहटौर पे दफनाना नहीं होगा, जमीन नहीं मिलेगी यहां, तुम दंगाई लोग हो!"

बिजनौर के सिविल अस्पताल में पोस्टमॉर्टम के पूरा होने का इंतजार कर रहे 25 वर्षीय अनस और 21 वर्षीय सुलेमान के परिजनों को ये बातें बार-बार सुनाई गईं. अनस और सुलेमान की 20 दिसंबर को वेस्ट यूपी के बिजनौर जिले के नहटौर में पुलिस फायरिंग की वजह से मौत हो गई थी. 215 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है, जिनमें से कम से कम 70 बिजनौर के नहटौर से थे. केंद्र सरकार के हाल ही में पारित नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ इस जगह पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ था.

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दोनों युवकों के परिवार वाले कहते हैं कि, जिस पल से उन्होंने अपने बच्चों को खून से लथपथ पड़े देखा, उनके साथ कथित तौर पर लगातार तब तक बुरा बर्ताव और डराने-धमकाने की घटनाएं हुईं, जब तक कि उन्होंने अपने बच्चों के शवों को पुलिस की कड़ी निगरानी में जल्दबाजी में दफना नहीं दिया.   

वे कहते हैं कि डर की वजह से उन्होंने घटना के बाद से पुलिस या डॉक्टरों से संपर्क नहीं किया है. हिंसक विरोध प्रदर्शन के एक दिन बाद, 21 दिसंबर को बिजनौर के एसपी संजीव त्यागी ने स्वीकार किया था कि उन्होंने आत्मरक्षा में गोली चलाई थी, जिससे सुलेमान की मौत हो गई, जबकि अनस की में मौत पब्लिक फायरिंग में हुई. इंटरनेट बंद होने की वजह से इस बात की जानकारी मुख्यधारा की मीडिया तक देर से पहुंची.

क्विंट की रिपोर्ट के बाद बिजनौर पुलिस ने एक ट्वीट में अपना पक्ष रखने की कोशिश की. पुलिस ने ट्वीट कर कहा- “ये आरोप तथ्यहीन, सारहीन, साक्ष्यहीन और मनगढ़ंत तथ्यों पर आधारित हैं.”

भले ही पुलिस ने इस रिपोर्ट को तथ्यों पर आधारित न बताया हो, लेकिन क्विंट ने ग्राउंड पर जाकर मृतकों के परिवार से बातचीत की. जिसमें उन्होंने क्विंट को अपनी आपबीती सुनाई.

'काले कोट में एक लड़के को गोली लगी है'

अरशद हुसैन ने इस रिपोर्टर से जो पहले शब्द कहे, वो थे- ‘’हम डरे हुए हैं. हम मीडिया के अलावा किसी को बयान नहीं दे रहे. डर है कि पुलिस हमसे कुछ कहीं लिखवाए, इसलिए हम किसी से मिल भी नहीं रहे हैं. आप हमारी कहानी इमानदारी से लिखिएगा.

अरशद हुसैन ने द क्विंट को बताया, "मेरे बेटे अनस और मैंने लगभग 1:30 बजे अपनी शुक्रवार की नमाज अदा की. विरोध प्रदर्शन की बात चल रही थी. अनस दूध लेने के लिए बाहर जा रहा था और मैंने उससे कहा कि शायद यह सब व्यर्थ साबित होगा क्योंकि सभी बाजार बंद थे. उसने कहा कि वो एक पारिवारिक दोस्त के घर से दूध के आएगा. जैसे ही वह गली से बाहर मुख्य सड़क पहुंचा, उसकी बाईं आंख पर गोली लग गई."

"गली में लोग बोलने लगे- ‘काले कोट मे एक लड़के को गोली लागी है, काले कोट मे एक लड़के को गोली लागी है.’ मेरा कलेजा बाहर आ गया, मैं उस तरफ भागा, क्योंकि मेरा बेटा एक काले रंग की जैकेट पहने हुए था. मैंने देखा वो खून से लथपथ वहां पड़ा था."

वे फौरन उसे एक नजदीकी सरकारी अस्पताल ले गए, जहां स्टाफ ने कहा कि मामला गंभीर है और उन्हें बिजनौर में किसी बड़े अस्पताल ले जाना चाहिए. बिजनौर के एक निजी अस्पताल में ले जाने के लिए उन्होंने किराए पर एक कार ली. पिता उस पल को याद करते हुए कहते हैं, "वो दर्द में चिल्ला रहा था, और बिजनौर में प्राइवेट अस्पताल से लगभग 100 मीटर की दूरी पर, उसने आखिरी सांस ली. मैं यह यकीन नहीं करना चाहता था. मैंने डॉक्टर के पैर पकड़ लिए और मेरे बेटे की जान बचाने के लिए उनसे भीख मांगी, लेकिन उन्होंने उसे मृत घोषित कर दिया."

अनस की पत्नी बुशरा ने बताया कि कैसे अनस ने महज सात महीने की उम्र में अपनी मां को खो दिया था, और अब उसके ही 7 महीने के बेटे के सिर से पिता का साया उठ गया.

अपनी आपबीती के बारे में बताते हुए सुलेमान के परिवार का कहना है कि यूपी पुलिस ने उनके साथ कथित रूप से बुरा बर्ताव किया, उन्हें धमकी दी और अपमानित किया.  

सख्त टाइम टेबल वाला एक UPSC उम्मीदवार

"मेरे समुदाय के लोगों ने मुझे बताया कि मेरे भाई को गोली मार दी गई है. मेरा छोटा भाई और हमारे पिता घटनास्थल की ओर भागे और उसे स्थानीय मदरसे के सामने घास मंडी में खून से लथपथ पड़े देखा."

सुलेमान के घर पर, उसके परिवार ने जोर देकर इस रिपोर्टर से कहा कि उसे सुलेमान के कमरे को देखना चाहिए. वो कहते हैं, "वो एक मेधावी बच्चा था जो अपनी UPSC सिविल परीक्षाओं के लिए ईमानदारी से तैयारी कर रहा था. जब वो 12 वीं क्लास में था, तब उसने 12वीं क्लास के छात्रों को ट्यूशन पढ़ाया. जब वो कॉलेज में फर्स्ट ईयर में था, तो उसने उसी क्लास के बच्चों को पढ़ाया. ये उसका टाइम टेबल है, क्या आपको लगता है कि वो एक दंगाई हो सकता है?"

सुलेमान के भाई शोएब मलिक शामिल ने कहा कि वह अपनी नमाज अदा करने गया था, और प्रदर्शनकारियों की भीड़ में फंस गया और मारा गया. सुलेमान की टाइम टेबल की ओर इशारा करते हुए उसने कहा, “देखिए, दोपहर 1:20 बजे वह नमाज के लिए निकला था, हमेशा की तरह उसने यही किया."

परिवार का कहना है कि उन्हें ज्यादा उम्मीद नहीं थी, फिर भी वे सुलेमान को दो लोगों के बीच बाइक में बिठाकर एक सिविल अस्पताल में ले गए.

परिवार ने कहा, "अस्पताल में मृत घोषित किए जाने के बाद हम उसके शव को घर ला रहे थे. जब ईदगाह जंक्शन पर पहुंचे तो पुलिस ने हमें रोक लिया. वे अभद्र तरीके से हमसे पूछताछ करने लगे, उन्होंने पूछा- तुम शव लेकर कहां जा रहे हो? तुम क्या सोच रहे हो? इस शव को पोस्टमॉर्टम के लिए बिजनौर ले जाने की जरूरत है.'' परिवार का दावा है कि इसके बाद कथित तौर पर पूरे परिवार पर लाठीचार्ज किया गया और छोटे भाई को भी थप्पड़ मारा गया.

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जल्दबाजी में दफनाया गया

सुलेमान के भाई कहते हैं, "सुलेमान का शव पहले लाया गया और फिर अनस का शव लाया गया." दोनों परिवारों को बिजनौर में कहीं कब्र खोदने और अपने बच्चों को वहां दफनाने के लिए कहा गया था.
अनस के पिता अरशद कहते हैं, "उन्होंने बोला बॉडी का पोस्टमॉर्टम हो गया है, आप बिजनौर में कब्रिस्तान में दफनाने का इंतजाम करो. बड़े बड़े अधिकारीयों का नाम लेने लगे. फिर बोला की वो हमें बॉडी ही नहीं देंगे अगर हम बिजनौर में नहीं दफनायेंगे. हमारी पूरी रात काली हो गई. हम कोशिश करते रहे कि हमें वो अनस दे दें."

मलिक कहते हैं कि पूरी रात परिवार के लिए एक यातना थी. "प्रशासन ने दहशत कर रखा था पूरी रात"

दोनों परिवारों ने उनसे कहा कि वे शवों को दफनाने के लिए वापस नहटौर नहीं जाएंगे और पुलिस से अपने बेटों को उनके पैतृक गांवों में दफनाने की इजाजत देने की गुहार लगाई. बार-बार फोन करने, विनती करने, और वकीलों से कहलवाने के बाद आखिरकार पुलिस को बेमन से सहमत होना पड़ा.

अनस के शव को लगभग 20 किमी दूर मिठान गांव, और सुलेमान के शव को लगभग 30 किलोमीटर दूर भगदादानसर गांव ले जाकर दफनाया गया.

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