पिछले करीब 10 महीनों से चल रहे किसानों के आंदोलन को लेकर भले ही कुछ खास चर्चा ना हो, लेकिन किसान आंदोलन उसी जोश के साथ जारी है, जिस जोश के साथ नवंबर 2020 में शुरू हुआ था. इसके उदाहरण हर दूसरे महीने में देखने को मिल जाता है. अब हरियाणा के करनाल में बीजेपी नेताओं और सीएम खट्टर के खिलाफ प्रदर्शन के लिए उतरे किसानों पर बुरी तरह लाठीचार्ज हुआ. जिसमें कई किसान लहूलुहान हो गए.
भले ही हरियाणा सरकार ने किसानों के प्रदर्शन को रोकने या फिर उन्हें सड़कों से हटाने के लिए ये सख्त कार्रवाई की हो, लेकिन इससे कहीं न कहीं किसान आंदोलन और मजबूत होता दिख रहा है. पिछले 10 महीनों में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले हैं, जब किसान आंदोलन को खत्म करने की कोशिश में उसे और तेज कर दिया गया. तो क्या इस बार भी हरियाणा सरकार ने अनजाने में यही गलती दोहरा दी है?
हरियाणा के करनाल में क्या हुआ?
किसान संगठन लगातार संयुक्त किसान मोर्चा के साथ जुड़े हैं और एक आह्वाहन पर कहीं भी एकजुट होकर आ जाते हैं. इसी तरह जब हरियाणा बीजेपी की एक बैठक का ऐलान हुआ तो किसान संगठनों ने करनाल में सड़कें जाम करने का फैसला लिया. लेकिन जैसे ही किसान प्रदर्शन करने पहुंचे तो पुलिस ने उन पर जमकर लाठियां बरसाईं, कई किसान खून में सन गए और उनके सिर पर गंभीर चोटें आईं.
सिर फूटने की तस्वीरें करनाल के एसडीएम के बयान से जोड़कर देखी जा रही हैं. क्योंकि करनाल के एसडीएम ने पुलिस को ब्रीफ करते हुए अपने बयान में ये साफ-साफ कहा था कि, अगर यहां से कोई निकलकर जाए तो उसका सिर फूटा होना चाहिए.
अब भले ही इस घटना में किसानों का खून बहा हो, लेकिन इसने एक बार फिर साबित कर दिया कि किसान आंदोलन जिंदा है और पूरी ताकत के साथ खड़ा है. क्योंकि कुछ लोग लगातार किसान आंदोलन को लेकर ये भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं कि वो खत्म हो चुका है.
मुजफ्फरनगर महापंचायत पर क्या असर?
हरियाणा के करनाल में जो भी हुआ, उसका सीधा असर अब 5 सितंबर को होने वाली किसान महा पंचायत पर दिखने वाला है. किसान संगठनों ने पहले ही ऐलान किया था कि वो 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में महा पंचायत करने वाले हैं. लेकिन करनाल में हुई इस घटना के बाद अब माना जा रहा है कि देशभर के ज्यादा से ज्यादा किसान सरकार के विरोध में यहां जुटेंगे. देश के कुछ हिस्सों में किसान अभी से इस घटना के विरोध में प्रदर्शन करने उतर रहे हैं. बीकेयू नेता राकेश टिकैत ने भी इसके संकेत दिए और कहा कि सरकार किसानों को मुजफ्फरनगर आने से रोकने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा,
"मेरा हरियाणा के लोगों से निवेदन है कि जो करनाल के अंदर लाठीचार्ज हुआ, उसके लिए 5 बजे तक सभी रास्ते जाम रहेंगे. जिस तरह निहत्थे किसानों पर लाठीचार्ज किया गया, बहुत लोगों को चोट आई है. इनका पूरा फोकस 5 तारीख को मुजफ्फरनगर में होने वाली बैठक में लोगों को रोकने का है."
लगातार संघर्ष कर जारी है किसान आंदोलन
इससे पहले भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनके चलते किसान आंदोलन फिर चर्चा में आया. इसमें बीजेपी नेताओं के बयान, किसानों पर लाठीचार्ज और प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसक झड़पें शामिल हैं.
संसद का मानसून सत्र शुरू होते ही किसानों ने भी अपनी संसद चलाने का ऐलान किया. पहले संसद घेराव का प्लान था, लेकिन बाद में जंतर-मंतर पर किसानों की संसद चली.
किसान संसद को विपक्षी दलों का भी पूरा समर्थन मिला. कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत तमाम विपक्षी नेताओं ने संसद से लेकर जंतर-मंतर तक मार्च निकाला, जिससे फिर साबित हुआ कि किसान आंदोलन पूरी तरह से जिंदा है.
इसी दौरान बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी ने किसानों को लेकर एक विवादित बयान दिया था. जिसमें उन्होंने कहा था कि जो प्रदर्शन कर रहे हैं वो किसान नहीं बल्कि मवाली हैं.
जुलाई के ही महीने में हरियाणा में 100 किसानों के खिलाफ राजद्रोह का केस दर्ज कर लिया गया. आरोप था कि डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा के आधिकारिक वाहन पर हमला किया गया. इस घटना को लेकर भी खट्टर सरकार की जमकर आलोचना हुई.
जून 2021 में गाजीपुर बॉर्डर पर कुछ बीजेपी नेता अचानक नारे लगाने लगे. किसानों का आरोप था कि वो मंच की तरफ बढ़ रहे थे. इसी दौरान किसानों और बीजेपी नेताओं के बीच झड़प हुई. जो काफी चर्चा का विषय बना रहा.
16 मई को जब किसानों ने हरियाणा में सीएम मनोहर लाल खट्टर का विरोध किया था तो पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज किया. इस लाठीचार्ज के बाद किसान और बड़ी संख्या में सड़कों पर उतर आए.
किसान आंदोलन को लेकर संसद में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान नेताओं को आंदोलनजीवी कह दिया था. इसे लेकिन खूब बहस हुई और किसानों ने पीएम मोदी का विरोध किया. साथ ही कहा कि मौजूदा सरकार जनआंदोलनों से डरती है.
इसके अलावा हर बार किसानों को एक नया नाम दिया गया, कई बड़े बीजेपी नेताओं ने किसान आंदोलन को कभी खालिस्तान तो कभी विपक्षी दलों से जोड़ने का काम किया. जिससे किसानों के आंदोलन को और जोर मिला.
टिकैत के आंसुओं ने आंदोलन को दी ताकत
इन सभी घटनाओं के अलावा किसान आंदोलन 26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली को लेकर भी चर्चा में रहा था. जब कुछ किसान लाल किले तक पहुंच गए थे. इस घटना के बाद किसान संगठन नरम पड़े और लगा कि आंदोलन खत्म होने जा रहा है, खत्म करवाने के लिए सैकड़ों की संख्या में पुलिसबल को दिल्ली की सीमाओं पर भेज दिया गया, लेकिन तभी गाजीपुर बॉर्डर पर कुछ ऐसा हुआ, जिसने इस आंदोलन में फिर से जान फूंकने का काम किया. बीजेपी विधायक के कुछ समर्थक यहां किसानों को खदेड़ने के लिए पहुंच गए, जिसके बाद जमकर बवाल हुआ. किसान नेता राकेश टिकैत इस बात से दुखी हुए और रो पड़े. अपने नेता के आंसू देख किसान फिर खड़े हो उठे और ऐलान हुआ कि किसान आंदोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक तीनों कृषि कानूनों को खत्म नहीं किया जाता.
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