ADVERTISEMENTREMOVE AD

संविधान को जलाना चाहते थे, संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर

क्या आप जानते हैं कि भारत की संविधान के निर्माता डॉ. अंबेडकर इस संविधान को जला देना चाहते थे.

Updated
भारत
3 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

जिस समय यह लिखा जा रहा है, उस समय भारतीय संसद में मानो बमबारी हो रही है.

ना-ना, किसी विधेयक या अध्यादेश पर हंगामा नहीं हो रहा है. ये सब उस किताब को लेकर हो रहा है जिससे हमारे गणतंत्र की रुपरेखा तय होती है.

भारत सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया. वर्ष 1949 में इसी दिन देश के गणतंत्र को अपनाया गया था, बाद में 26 जनवरी 1950 को यह प्रभाव में आया और वह दिन गणतंत्र दिवस के रुप में मनाया गया.

प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया कि नवंबर 26 को संविधान दिवस के रूप में मनाने के पीछे उद्देश्य सिर्फ संविधान के प्रति जागरुकता फैलाना ही नहीं, बल्कि लोगों को डॉ. अंबेडकर के बारे में जागरुक करना भी है.

पर, क्या आप जानते हैं कि दुनिया के सबसे विस्तृत और सबसे अधिक शब्दों वाले संविधान के निर्माता डॉ. अंबेडकर इस संविधान को जला देना चाहते थे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

‘इसे जलाने वाला पहला व्यक्ति मुझे ही होना चाहिए’

छोटे समुदायों और छोटे लोगों के यह डर रहता है कि बहुसंख्यक उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं. और ब्रितानी संसद इस डर को दबा कर काम करती है. श्रीमान, मेरे मित्र मुझसे कहते हैं कि मैंने संविधान बनाया है. पर मैं यह कहने के लिए पूरी तरह तैयार हूं कि इसे जलाने वाला मैं पहला व्यक्ति होउंगा. मुझे इसकी जरूरत नहीं. यह किसी के लिए अच्छा नहीं है. पर, फिर भी यदि हमार लोग इसे लेकर आगे बढ़ना चाहें तो हमें याद रखना होगा कि एक तरफ बहुसंख्यक हैं और एक तरफ अल्पसंख्यक. और बहुसंख्यक यह नहीं कह सकते कि ‘नहीं, नहीं, हम अल्पसंख्यकों को महत्व नहीं दे सकते क्योंकि इससे लोकतंत्र को नुकसान होगा.’ मुझे कहना चाहिए कि अल्पसंख्यकों को नुकसान पहुंचाना सबसे नुकसानदेह होगा. 
डॉ. भीमराव अंबेडकर, 2 सितम्बर 1953 को राज्यसभा में

देश में एक गवर्नर की शक्तियां बढ़ाने पर हो रही चर्चा के दौरान डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान संशोधन का पुरजोर समर्थन किया.

0
मेरा मानना यह है कि अगर हमारे संविधान में संशोधन किया जाए तो हमारे लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संविधान को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा.
डॉ. भीमराव अंबेडकर, 2 सितम्बर 1953 को राज्यसभा में

स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क में अर्थशास्त्र की सह-प्राध्यापिका श्रुति राजगोपालन भारतीय संविधान में 1950-78 के दौरामन हुए संशोधनों पर बात करते हुए डॉ. अंबेडकर की नाराजगी के बारे में भी बात करती हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

‘राक्षसों का संविधान’

दो साल बाद, 19 मार्च 1955 को राज्यसभा सदस्य डॉ. अनूप सिंह ने डॉ. अंबेडकर के बयान को एक बार फिर उठाया था.

चौथे संशोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान उन्होंने अंबेडकर को याद दिलाया, “पिछली बार आपने कहा था कि आप संविधान को जला देंगे.”

आपको उसका जवाब चाहिए? मैं अभी, यहीं आपको जवाब दूंगा. मेरे मित्र ने कहा कि मैंने कहा था कि मैं संविधान को जलाना चाहता हूं, पिछली बार मैंने जल्दी में इसका कारण नहीं बताया. अब जब मेरे मित्र ने मुझे मौका दिया है तो मुझे लगता है कि मुझे कारण बताना चाहिए. कारण यह है कि हमने भगवान के रहने के लिए एक मंदिर बनाया पर इससे पहले कि भगवान उसमें आकर रहते, एक राक्षस आकर उसमें रहने लगा. अब उस मंदिर को तोड़ देने के अलावा चारा ही क्या है? हमने इसे असुरों के रहने के लिए तो नहीं बनाया था. हमने इसे देवताओं के लिए बनाया था. इसीलिए मैंने कहा था कि मैं इसे जला देना चाहता हूं.
डॉ. भीमराव अंबेडकर, 19 मार्च 1955 को राज्यसभा में

संविधान को लेकर हजारों मीडिया रिपोर्ट्स और दृष्टिकोण छापे जा चुके हैं. और फिर हमारे राजनेता भी हैं, पर आज तक किसी ने भी आज तक यह जानने की जरूरत नहीं समझी कि आखिर हमारे संविधान निर्माता ने ऐसा क्यों कहा.

हम आपसे ही यह जानना चाहते हैं कि अगर आप वाकई किसी को याद रखना चाहते हैं, उसे सम्मानित करना चाहते हैं तो क्या बस आप उनकी याद में बस एक उत्सव मनाएंगे या फिर उनकी कही हुई बातों को याद रखते हुए उन्हें अमल में लाएंगे?

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×