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मेट्रो पुल के नीचे फ्री में चल रही है ‘तालीम एक्सप्रेस’ 

अक्षरधाम मेट्रो पुल के नीचे चल रहा फ्री स्कूल बच्चों की जिंदगी कर रहा रोशन 

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भारत
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पुल के ऊपर सरपट दौड़ती मेट्रो और इसके शोर के बीच पढ़ते बच्चे. ये नजारा है अक्षरधाम मेट्रो स्टेशन के पुल के नीचे बने 'फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज' का. यह स्कूल पिछले 11 वर्षो से गरीब बच्चों को उनका भविष्य संवारने के लिए मुफ्त शिक्षा मुहैया करा रहा है.

मेट्रो के पिलर के नीचे टाट पट्टियों पर बैठे बच्चे इस खुले माहौल में पढ़ते हुए खुश हैं, क्योंकि यहां आम स्कूलों की तरह बंदिशें नहीं हैं. छठी कक्षा के छात्र राहुल कहता है, ‘यहां पढ़ना अच्छा लगता है. स्कूलों की तरह यहां टोका-टाकी नहीं होती. हम आराम से पढ़ पाते हैं.

इस स्कूल का सफर किन परिस्थितियों में शुरू हुआ? इस सवाल पर इसे शुरू करने वाले राजेश कुमार शर्मा ने कहा,

मैंने बहुत दिमाग लगाकर यह स्कूल नहीं खोला.मैं मानता हूं कि इस काम के लिए ईश्वर ने मुझे चुना. इन गरीब बच्चों को कुछ ऐसी चीज देना चाहता था, जो इन्हें ताउम्र याद रहे.पहले सोचा कि टॉफी या चॉकलेट दूं, लेकिन बाद में सोचा कि इन गरीब बच्चों को पढ़ाऊं, ताकि ये जिंदगीभर इसे याद रख सकें
राजेश कुमार शर्मा, मेट्रो पुल के नीचे फ्री स्कूल चलाने वाले 

पेशे से दुकानदार राजेश (45) कहते हैं, "मैंने इस स्कूल की शुरुआत साल 2006 में की. उस समय सिर्फ दो छात्र ही पढ़ने आते थे, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 250 के पार हो गई है
वर्ष 2006 में शुरू हुए स्कूल से अब तक 500 से 550 बच्चे पढ़कर निकल चुके हैं.

अक्षरधाम मेट्रो पुल के नीचे चल रहा फ्री स्कूल बच्चों की जिंदगी कर रहा रोशन 
अक्षरधाम मेट्रो पुल के नीचे 11 साल से चल रहा फ्री स्कूल 
फोटो : आईएएनएस

राजेश कुमार की लगन देखकर कई शिक्षक स्वेच्छा से उनसे जुड़कर यहां बच्चों को पढ़ाने आते हैं. मौजूदा समय में ऐसे तीन शिक्षक इस अनौपचारिक स्कूल से जुड़े हैं और इनमें से एक हैं, लक्ष्मीचंद जो पिछले आठ वर्षो से मुफ्त सेवाएं दे रहे हैं. लक्ष्मीचंद घर पर कुछ बच्चों को ट्यूशन देते हैं और उसके बाद पूरा दिन इस स्कूल में बच्चों को पढ़ाते हैं.

स्कूल के भविष्य के बारे में पूछने पर वह कहते हैं, "न यह स्कूल मैंने कुछ सोचकर शुरू किया था और न ही इसके भविष्य को लेकर असमंजस में हूं. यह जिंदगी एक युद्धक्षेत्र है, यहां हर शख्स अपना किरदार निभा रहा है. इस किरदार को निभाने की जब तक क्षमता रहेगी, तब तक निभाता रहूंगा, जिस दिन 'मन' जवाब दे देगा, सब छोड़कर चला जाऊंगा.

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क्विंट हिंदी के एक वीडियो स्टोरी के दौरान पता चला था कि आधार न होने से इलाके में कई बच्चों को एडमिशन नहीं मिल रहा है. ऐसे बच्चों का मेट्रो पुल के नीचे चल रहा स्कूल स्वागत कर रहा है.

इनपुट : आईएएनएस

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