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गोधरा कांड के 20 साल: नरसंहार, मोदी पर आरोप से लेकर क्लीन चिट तक जानिए सब कुछ

Godhra कांड के बाद मोदी की चमक देशभर में बढ़ी, बीजेपी ने अहम जिम्मेदारी दी

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भारत
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27 फरवरी की तारीख अपने साथ भयावह और रूह कंपाने वाली यादें लेकर आती है. ये यादें हैं गोधरा कांड Godhra kand की. साल 2002 में देश ने इसी दिन एक ऐसे कांड या त्रासदी को देखा था जिसको भुला पाना असंभव है. इस दिन गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस की बोगी संख्या S6 को आग के हवाले कर दिया गया था. इस आगजनी में 59 लोग जिंदा जल गए थे. जो भी इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी थे, वे आज भी गोधरा कांड के दौरान चीख-पुकार वाले डरावने मंजर को अपने आप में समेटे हुए है. आइए जानते हैं क्या हुआ था गोधरा कांड में...

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फ्लैश बैक में चलकर जानते हैं उस दिन क्या हुआ

27 फरवरी 2002 को सुबह 7 बजकर 43 मिनट पर गुजरात के गोधरा स्टेशन पर 23 पुरुष और 15 महिलाओं और 20 बच्चों सहित 58 लोग साबरमती एक्सप्रेस के कोच नंबर S6 में जिंदा जला दिए गए थे. जिंदा जल रहे लोगों को बचाने की कोशिश करने वाला एक व्यक्ति भी 2 दिन के बाद मौत के आगोश में समा गया था. उस दौरान गुजरात पुलिस के सहायक महानिदेशक जे महापात्रा ने कहा था कि दंगाई ट्रेन के गोधरा पहुंचने से काफी पहले से पेट्रोल से लैस थे और पूरी तैयारी करके आए थे.

27 फरवरी की सुबह साबरमती एक्सप्रेस गोधरा रेलवे स्टेशन के पास पहुंची और अहमदाबाद जाने के लिए गोधरा स्टेशन से चली ही थी कि किसी ने चेन खींचकर गाड़ी रोक ली और फिर पथराव के बाद ट्रेन के एक डिब्बे में आग लगा दी. देखते ही देखते एस-6 कोच लपटों में घिर गया. इस कोच में ज्यादातर लोग कारसेवक थे. जो राम मंदिर आंदोलन से जुड़े अयोध्या में हुए एक कार्यक्रम से लौट रहे थे. आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई.

इसके बाद गुजरात में दंगे भड़क गए

गोधरा से कारसेवकों के शव को खुले ट्रक में अहमदाबाद लाया गया. पुलिस ने करीब 1500 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया और कई लोगों को हिरासत में ले लिया.

गोधरा में हुई घटना ने एक चिंगारी का काम किया और इसके बाद पूरा गुजरात सुलगने लगा था. राज्य भर में दंगे देखने को मिले, जिसमें ज्यादातर मुसलमानों को निशाना बनाया गया.

गोधरा कांड के बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क उठे. इन दंगों में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे, जिनमें 790 मुसलमान और 254 हिंदू थे. गोधरा कांड के एक दिन बाद 28 फरवरी को अहमदाबाद की गुलबर्ग हाउसिंग सोसायटी में बेकाबू भीड़ ने 69 लोगों की हत्या कर दी थी. मरने वालों में उसी सोसाइटी में रहने वाले कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी भी शामिल थे. इन दंगों से राज्य में हालात इस कदर बिगड़ गए कि स्थिति काबू में करने के लिए तीसरे दिन सेना उतारनी पड़ी.

20 साल बाद आज भी गोधरा स्टेशन पर प्लेटफार्म से कुछ दूरी पर साबरमती एक्सप्रेस के जले हुए डिब्बों S6 और S5 को देखा जा सकता है.

इन दंगों के बाद देश के राजनीतिक और सामाजिक जीवन में कई बदलाव आए. गुजरात से निकलकर भारत की राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर नरेंद्र मोदी का आगमन हुआ.

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मोदी पर लगे आरोप

साबरमती एक्सप्रेस की आग में कारसेवकों की मौत के बाद पूरे गुजरात में जगह-जगह हिंदू और मुसलमानों के बीच हिंसक टकराव हुए थे. उस समय गुजरात के सीएम नरेन्द्र मोदी थे. नरेंद्र मोदी पर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि उन्होंने दंगे रोकने के लिए ज़रूरी कदम नहीं उठाए.

घटना की शाम गुजरात के मुख्यमंत्री निवास पर बैठक हुई जिसमें नरेंद्र मोदी भी थे. इस मीटिंग को लेकर पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट ने दावा किया था कि मोदी ने हिंदुओं की प्रतिक्रिया होने देने की बात कही थी, लेकिन बाद में एसआईटी ने संजीव भट्ट के आरोपों को गलत माना और कहा कि वह 27 तारीख की उस मीटिंग में मौजूद ही नहीं थे. एसआईटी ने कहा वह (संजीव भट्ट) तथ्यों को घुमा फिरा रहे हैं और मीडिया को बरगलाने की साजिश रचकर ना सिर्फ एमिकस क्यूरी राजू रामचंद्रन बल्कि सुप्रीम कोर्ट पर भी दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं.

नानावटी आयोग का गठन

तीन मार्च 2002 को सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज न्यायमूर्ति जीटी नानावती की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया. न्यायमूर्ति केजी शाह आयोग के दूसरे सदस्य थे. शुरू में आयोग को साबरमती एक्सप्रेस में आगजनी से जुड़े तथ्य और घटनाओं की जांच का काम सौंपा गया. लेकिन जून 2002 में आयोग को गोधरा कांड के बाद भड़की हिंसा की भी जांच करने के लिए कहा गया. आयोग ने दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी, उनके कैबिनेट सहयोगियों और वरिष्ठ अफसरों की भूमिका की भी जांच की. आयोग ने सितंबर 2008 में गोधरा कांड पर अपनी प्राथमिक रिपोर्ट पेश की थी.

2009 में जस्टिस शाह के निधन के बाद अक्षय मेहता को सदस्य बनाया गया. जिसके बाद इसका नाम नानावटी-मेहता आयोग पड़ गया. तब आयोग ने 45 हजार शपथ पत्र व हजारों गवाहों के बयान के बाद करीब 15 सौ पेज की रिपोर्ट तैयार की थी फिर इस रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखा गया.

वर्ष 2014 में ही सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस जीटी नानावती और गुजरात हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस अक्षय मेहता ने अपनी आखिरी रिपोर्ट राज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को सौंपी थी.

मोदी को क्लीन चिट 

इस रिपोर्ट को तत्कालीन सरकार को सौंपे जाने के पांच साल बाद दिसंबर 2019 में सदन में पेश किया गया. आयोग ने 1,500 से अधिक पृष्ठों की अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘‘ऐसा कोई सबूत नहीं मिला कि राज्य के किसी मंत्री ने इन हमलों के लिए उकसाया या भड़काया.' इस प्रकार नानावती आयोग ने गुजरात में 2002 के दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को क्लीन चिट दे दी.

रिपोर्ट में कहा गया कि कुछ जगहों पर भीड़ को नियंत्रित करने में पुलिस अप्रभावी रही क्योंकि उनके पास पर्याप्त संख्या में पुलिसकर्मी नहीं थे या वे हथियारों से अच्छी तरह लैस नहीं थे. आयोग ने अहमदाबाद शहर में साम्प्रदायिक दंगों की कुछ घटनाओं पर कहा, ‘‘पुलिस ने दंगों को नियंत्रित करने में सामर्थ्य, तत्परता नहीं दिखाई जो आवश्यक था.'' नानावती आयोग ने दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जांच या कार्रवाई करने की सिफारिश की है.

2014 तक 12 साल में इस आयोग का 24 बार कार्यकाल बढ़ाया गया था और एक आरटीआई मुताबिक पूरी जांच में सात करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हुए थे. आयोग ने 45 हजार शपथ पत्र व हजारों गवाहों के बयान के बाद करीब ढाई हजार पेज की रिपोर्ट तैयार की थी.
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वाजपेयी चाहते थे मोदी का इस्तीफा

रॉ के पूर्व प्रमुख ए एस दुलत अपनी किताब द वाजपेयी इयर्स में लिखते हैं कि वाजपेयी ने गुजरात दंगों को अपने कार्यकाल की सबसे बड़ी ग़लती माना था. किंगशुक नाग भी कहते हैं गुजरात दंगों को लेकर वह कभी सहज नहीं रहे. वो चाहते थे कि इस मुद्दे पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इस्तीफा दें. नाग ने बीबीसी को बताया था कि “उस समय के वहाँ के राज्यपाल सुंदर सिंह भंडारी के एक बहुत करीबी ने मुझे बताया था कि मोदी के इस्तीफे की तैयारी हो चुकी थी लेकिन गोवा राष्ट्रीय सम्मेलन आते-आते पार्टी के शीर्ष नेता मोदी के बारे में वाजपेयी की राय बदलने में सफल हो गए थे.”

मोदी के खिलाफ बोलने वालों का क्या हुआ?

संजीव भट्ट (निलंबित डीआईजी) ने गुजरात दंगों की जांच करने वाली एसआईटी और नानावटी आयोग से कहा था कि वे उस मीटिंग में मौजूद थे जिसमें गोधरा कांड के बाद नरेन्द्र मोदी ने कथित तौर पर पुलिस अधिकारियों से दंगाइइयों से नरमी से निपटने को कहा था. इसके बाद संजीव भट्ट को निलंबित कर दिया गया. जून 2019 में भट्ट को 1990 के एक मामले में निचली अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

आरबी श्रीकुमार (रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक) ने एसआईटी के सामने गुजरात सरकार के खिलाफ दस्तावेज सौंपे थे. ये पहले पुलिस अधिकारी थे, जिन्होंने नानावटी-शाह आयोग के सामने मोदी के खिलाफ गवाही दी थी. इसके बाद गुजरात सरकार ने उनका प्रमोशन रोक दिया. उन्होंने सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के सामने इसे चुनौती दी, जिसने सितंबर 2006 में श्रीकुमार के पक्ष में फैसला दिया.

राहुल शर्मा (पूर्व डीआईजी) ने जांच एजेंसियों को गुजरात दंगों के दौरान कुछ भाजपा नेताओं की फोन पर हुई बातचीत की सीडी दी थी. फरवरी 2015 में राहुल शर्मा ने पुलिस की नौकरी छोड़ दी. बाद में वे गुजरात हाईकोर्ट में वकालत करने लगे.

मोदी का कद बढ़ा

भले ही मोदी पर 2002 के दंगों के संबंध में आरोप लगे हों, लेकिन राजनीति में उनका कद दंगों के बाद बढ़ा है. वे मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री तक की कुर्सी पर काबिज हो गए. एक के बाद दूसरा कार्यकाल संभाल रहे हैं. दंगों के बाद बीजेपी ने मोदी को चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया था. इसे नरेंद्र मोदी का करिश्मा ही कहा जाएगा कि चाहे विधानसभा चुनाव हों या फिर कोई और कोई अन्य चुनाव सत्ताधारी बीजेपी पार्टी से कहीं ज्यादा मोदी का व्यक्तित्व हावी हो जाता है.

मोदी पर दंगों को न रोक पाने के आरोप लगे थे जबकि उनकी सरकार में मंत्री रहीं माया कोडनानी इन्हीं कारणों से सालों तक इसकी सजा भुगततती है. मोदी आलोचकों का कहना है कि दंगों में भूमिका के कारण ही मोदी ने कोडनानी को मंत्री पद से नवाजा था. लेकिन खुद मोदी ने कभी दंगों को लेकर न तो कोई अफसोस जताया है और न ही किसी तरह की माफी मांगी है.
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एक नजर टाइम लाइन पर

  • 27 फरवरी 2002 : गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस की एस 6 बोगी में पथराव के बाद आगजनी हुई. 59 लोगों की मौत.

  • 28 फरवरी 2002 : गोधरा से कारसेवकों के शव को खुले ट्रक में अहमदाबाद लाया गया. पुलिस ने करीब 1500 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया और कई लोगों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. कारसेवकों के शव को अहमदाबाद लाने के बाद गुजरात के कई इलाकों में दंगा भड़क गया. दंगे में 1000 से ज्यादा लोग मारे गए.

  • 03 मार्च 2002 : को साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 बोगी को जलाने के मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों के खिलाफ पुलिस ने पोटा मतलब आतंकवाद निरोधक कानून लगा गया.

  • 6 मार्च 2002 : गुजरात सरकार ने कमीशन ऑफ इन्क्वायरी एक्ट के तहत गोधरा कांड और उसके बाद हुई घटनाओं की जांच के लिए एक आयोग की नियुक्ति की. 6 मार्च 2002 को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस जीटी नानावती की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया. जिसे नानावटी आयोग के नाम से जाना जाता है.

  • 9 मार्च 2002 : पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ धारा 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र) का मामला दर्ज कर लिया.

  • 25 मार्च 2002 : सभी आरोपियों पर से पोटा हटाया गया.

  • 18 फरवरी 2003 : गुजरात में बीजेपी सरकार के दोबारा चुने जाने पर आरोपियों के खिलाफ फिर से आतंकवाद निरोधक कानून पोटा लगा दिया गया.

  • 21 नवंबर 2003 : सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा ट्रेन जलाए जाने के मामले समेत दंगे से जुड़े सभी मामलों की न्यायिक सुनवाई पर रोक लगाई.

  • 4 सितंबर 2004 : आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव के रेलमंत्री रहने के दौरान केद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूसी बनर्जी की अध्यक्षता वाली एक कमेटी का गठन किया गया.

  • 21 सितंबर 2004 : 2004 में केंद्र में यूपीए की सरकार बनी और फिर पोटा कानून को खत्म कर दिया गया.

  • 17 जनवरी 2005 : यूसी बनर्जी समिति ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया कि एस-6 में लगी आग एक ‘दुर्घटना’ थी और इस बात की आशंका को खारिज किया कि आग बाहरी तत्वों द्वारा लगाई गई थी.

  • 16 मई 2005 : पोटा समीक्षा समिति ने अपनी राय दी कि आरोपियों पर पोटा के तहत आरोप नहीं लगाए जाएं.

  • 13 अक्टूबर 2006 : गुजरात हाईकोर्ट ने यूसी बनर्जी कमिटी को अमान्य करार देते हुए उसकी रिपोर्ट को भी ठुकरा दिया, जिसमें कहा गया था कि आग सिर्फ एक एक्सीडेंट था.

  • 2008 में एक जांच आयोग बनाया गया और नानावटी आयोग को जांच सौंपी गई, जिसमें कहा गया था कि आग दुर्घटना नहीं बल्कि एक साजिश थी.

  • 18 सितंबर 2008 : नानावटी आयोग ने गोधरा कांड की जांच सौंपी और कहा कि यह एक षड्यंत्र था. और एस6 कोच को भीड़ ने पेट्रोल डालकर जलाया था.

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इसके आगे क्या हुआ?

  • 20 फरवरी 2009 : गोधरा कांड के पीड़ितों के रिश्तेदार ने आरोपियों पर से पोटा कानून हटाए जाने के हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

  • 1 मई 2009 : सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा मामले की सुनवाई पर से रोक हटा लिया.

  • 1 जून 2009 : गोधरा ट्रेन कांड की सुनवाई अहमदाबाद के साबरमती केंद्रीय जेल के अंदर शुरू हुई.

  • 28 सितंबर 2010 : सुनवाई पूरी हुई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाया था इसलिए एसआईटी की स्पेशल कोर्ट में फैसला नहीं सुनाया गया.

  • 18 जनवरी 2011 : सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाने पर से रोक हटा दिया.

  • 22 फरवरी 2011 : स्पेशल कोर्ट ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी पाया, जबकि 63 अन्य को बरी किया.

  • 1 मार्च 2011 : स्पेशल कोर्ट ने गोधरा कांड में 11 को फांसी, 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई.

  • 18 नवंबर 2014 : गोधरा कांड की जांच कर रहे नानावती आयोग ने अपनी रिपोर्ट गुजरात सरकार को सौंपी.

  • 09 अक्टूबर 2017 : गोधरा में ट्रेन के डिब्बे जलाने के मामले पर गुजरात हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है. कोर्ट ने 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया.

  • 11 दिसंबर 2019 : नानावती आयोग ने गुजरात दंगों के मामले में सदन में रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी.

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