केंद्र सरकार की ओर से उत्तराखंड के चीफ जस्टिस केनएम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट में जज बनने से रोकने बाद कार्यपालिका और न्यायपालिका में फिर घमासान छिड़ गया है. जोसेफ को जज बनाने की कोलजियम की सिफारिश को कानून मंत्रालय ने ठुकरा दिया है. और दिलचस्प यह है कि सरकार के इस फैसले पर कोलेजियम हेड चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि न्यायपालिका अपने दायरे में रह कर ही काम कर रही है. इधर, बार काउंसिल के 100 सदस्यों ने चिट्ठी लिख कर कहा है कि सरकार न्यायपालिका के काम में दखल दे रही है.
जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त करने की कोलेजियम की सिफारिश गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को लौटा दी गई. सरकार ने कहा है कि यह प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट के मानदंडों के मुताबिक नहीं है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही केरल का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है.
कोलेजियम की सिफारिश लौटाने को सही ठहराते हुए केन्द्र ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को इस बारे में पत्र लिखा, जिसमें अपने फैसले के बारे में कोलेजियम को विस्तार से बताया.
इसमें कहा गया है कि क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व तय करने के लिये मुमकिन है कि वरिष्ठता अहम विचारणीय बिन्दु नहीं हो.
लाॅ मिनिस्ट्री के इस पत्र में यह भी कहा गया है कि जस्टिस जोसेफ के नाम पर फिर से विचार करने के प्रस्ताव को राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंजूरी थी.
पत्र में लिखी गई मुख्य बातें:
- शीर्ष अदालत में पहले से ही जस्टिस कुरियन जोसेफ हैं, जिन्हें केरल हाईकोर्ट से 8 मार्च , 2013 को सुप्रीम कोर्ट में प्रमोट किया गया था.
- इसके अलावा हाईकोर्ट के 2 अन्य जज टीबी राधाकृष्णन और एंटनी डोमिनिक हैं, जिनका मूल हाईकोर्ट, केरल था.
- इस समय केरल हाईकोर्ट से ही एक और जज को सुप्रीम कोर्ट में प्रमोट करना सही नहीं लगता है, क्योंकि यह अन्य हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों और न्यायाधीशों के वैध दावों पर गौर नहीं करता.
लाॅ मिनिस्ट्री की ओर से कहा गया है कि इस बात का जिक्र करना सही होगा कि केरल हाईकोर्ट का सुप्रीम कोर्ट और अलग-अलग हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व है.
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली कोलेजियम में 5 जज हैं. इनमें जस्टिस जे चेलमेश्वर , जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ शामिल हैं.
नियुक्ति वारंट पर रोक लगाने की मांग
जस्टिस जोसेफ की फाइल फिर विचार के लिये लौटाये जाने का मामला सामने आने पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के 100 से अधिक वकीलों ने चीफ जस्टिस के सामने इसका जिक्र किया और आरोप लगाया कि केन्द्र कोलेजियम की सिफारिशों में मनमर्जी से काम करके न्यायपालिका की स्वतंत्रता में दखल दे रहा है.
सीनियर एडवोकेट इन्दिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट से इन्दु मल्होत्रा के जज के तौर पर नियुक्ति वारंट पर रोक लगाने की गुजारिश की. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की सिफारिश अकल्पनीय है और ऐसा कभी सुना नहीं गया.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की तीन सदस्यीय बेंच ने इन्दु को शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के पद की शपथ नहीं दिलाने संबंधी वरिष्ठ अधिवक्ता इन्दिरा जयसिंह की गुजारिश पर कड़ा रुख अपनाया.
बेंच ने जयसिंह की गुजारिश पर नाराजगी जाहिर की कि उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के एम जोसेफ को भी सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त करने का केन्द्र को निर्देश दिया जाये.
बेंच ने जयसिंह से सवाल किया, ‘‘यह किस तरह का अनुरोध है.‘’ पीठ ने कहा कि यह केन्द्र का अधिकार है कि वह फिर से विचार के लिये सिफारिश वापस भेजे. चीफ जस्टिस ने कहा, ‘‘मान लीजिए सरकार इसे विचार के लिए लौटा रही है, इस पर गौर किया जाएगा. आप कह रही हैं वारंट पर रोक लगायी जाये. ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता, यह अकल्पनीय है और मैं यह भी जोड़ सकता हूं कि ऐसा पहले कभी नहीं सुना है.‘’
जयसिंह ने जोसेफ और मल्होत्रा के नामों को अलग करने के केन्द्र के फैसले का जिक्र किया और कहा कि ऐसा नहीं किया जा सकता. सरकार को दोनों नामों की सिफारिश करनी चाहिए थी या अस्वीकार करना चाहिए था. बेंच ने कहा , ‘‘संवैधानिक शुचिता की मांग है कि इन्दु मल्होत्रा की नियुक्ति के वारंट पर अमल किया जाये. ''
कोर्ट ने कहा कि वह यह सुनकर अचरज में है कि बार की एक मेंबर को जज नियुक्त किया जा रहा है और दोपहर 2 बजे वकीलों का समूह नियुक्ति के वारंट पर रोक लगाने की मांग कर रहा है.
बता दें, मामले को लेकर, जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की कि इस मामले को जल्द सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया जाए, क्योंकि हम सभी न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर चिंतित हैं. पीठ ने इस मामले को जल्द लिस्टेड करने से इनकार करते हुए कहा कि यह सही समय पर ही आयेगा.
सरकार पर कांग्रेस का हमला
कांग्रेस ने इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार पर करारा वार किया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी . चिदंबरम ने ट्वीट कर कहा, ‘‘ जस्टिस केएम जोसेफ की नियुक्ति क्यों रुक रही है? इसकी वजह उनका राज्य या उनका धर्म अथवा उत्तराखंड मामले में उनका फैसला है?”
उन्होंने कहा कि वह इस बात से खुश हैं कि सीनियर एडवोकेट इंदु मलहोत्रा को शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर शपथ दिलाई जाएगी, लेकिन वह इससे निराश हैं कि जस्टिस जोसेफ की नियुक्ति रोक दी गई है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि देश की न्यायपालिका की स्वायत्तता खतरे में है और क्या न्यायपालिका यह बोलेगी कि ‘अब बहुत हो चुका?'
‘‘हिंदुस्तान की न्यायपालिका खतरे में है. अगर हमारी न्यापालिका एकजुट होकर अपनी स्वायत्ता की सुरक्षा नहीं करती, तो फिर लोकतंत्र खतरे में है. हम पहले से आरोप लगाते रहे हैं कि सरकार सिर्फ उन्हीं जजों को चाहती है, जिन पर उनकी सहमति है. कानून कहता है कि जिसे कोलेजियम चाहे वही जज बनेगा, लेकिन यह सरकार कहती है कि कोलेजियम कुछ भी चाहे, लेकिन जो हमारी पसंद का नहीं होगा उसे हम नहीं मानेंगे. इस समय देश भर के हाई कोर्ट में स्वीकृत स्थायी न्यायाधीशों के पदों की संख्या 771 हैं. अतिरिक्त (न्यायाधीशों के) पदों की संख्या 308 हैं. इन कुल 1079 पदों में से 410 पद खाली हैं. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि क्या स्थिति है. यह सरकार हाईकोर्ट को अपने लोगों से भरना चाहती है.’’कपिल सिब्बल
इससे पहले इसी मुद्दे को लेकर कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बदले की राजनीति करने का आरोप लगाया. उन्होंने सवाल किया कि क्या 2 साल साल पहले उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के खिलाफ फैसला देने की वजह से जस्टिस जोसेफ को प्रमोशन नहीं दिया गया?
मार्च, 2016 में केंद्र सरकार ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाया था. कुछ दिनों बाद ही जस्टिस जोसेफ की अध्यक्षता वाली हाईकोर्ट की बेंच ने इसे रद्द कर दिया था
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