लंबे समय से 13 प्वाइंट रोस्टर पर बवाल चल रहा है. लेकिन अब इस पर केंद्र सरकार की तरफ से अध्यादेश लाने की बात कही गई है. कई दिनों से इसे लेकर कयास लगाए जा रहे थे कि सरकार इस मुद्दे पर अध्यादेश ला सकती है. यूनिवर्सिटी की नौकरियों में Sc/ST और ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने के नए तरीके '13 पॉइंट रोस्टर' को लेकर विरोध लगातार जारी है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अध्यादेश
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2017 के फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें आरक्षित पदों को भरने के लिए यूनिवर्सिटी की बजाय डिपार्टमेंट को यूनिट माना गया था. इसके बाद इस मामले में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन दायर की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था. इसीलिए अब सरकार इस फैसले को काउंटर करने के लिए अध्यादेश लाई है.
साल 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यूनिवर्सिटी में टीचरों का रिक्रूटमेंट डिपार्टमेंट/सब्जेक्ट के हिसाब से होगा न कि यूनिवर्सिटी के हिसाब से.
13 प्वाइंट रोस्टर क्या है?
दरअसल, 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम यूनिवर्सिटी में आरक्षण लागू करने का नया तरीका है. इस रोस्टर सिस्टम को एससी-एसटी-ओबीसी आरक्षण सिस्टम के साथ 'खिलवाड़' बताया जा रहा है. अभी बवाल इसलिए मचा हुआ है, क्योंकि 200 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम पर यूजीसी और मानव संसाधन मंत्रालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 22 जनवरी, 2019 को खारिज कर दिया.
कैसे बने ये हालात?
यह स्थिति आखिर क्यों बनी है? इसे गंभीरता से समझने की जरूरत है. दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अप्रैल 2017 में यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) की 2006 में जारी की गई गाइड लाइन के एक प्रावधान को खत्म कर दिया. इस प्रावधान के मुताबिक, हर विश्वविद्यालय/डीम्ड विश्वविद्यालय/संस्थान को एक इकाई मानकर वहां पर स्वीकृत कुल पदों के अनुपात में आरक्षण दिए जाने की व्यवस्था थी. यूजीसी ने यह गाइड लाइन भारत सरकार की आरक्षण नीति को उच्च शैक्षणिक संस्थानों में सख्ती से लागू करने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय के 2005 में दिए गए आदेश के पालन में जारी की थी.
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