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गुजरात में केजरीवाल लहराना चाहते हैं परचम, लेकिन AAP की रणनीति में कितना दम

गुजरात को लेकर AAP के 'केजरी' स्वप्न में कितना दम है, क्विंट हिंदी का कंप्लीट 'लिटमस टेस्ट'

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भारत
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हाल ही में संपन्न हुए पंजाब विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत हासिल करके आम आदमी पार्टी (AAP) ने वहां सत्ता पा ली और अब यह पार्टी गुजरात को अपना अगला लक्ष्य बता रही है. पिछले हफ्ते अहमदाबाद में मेगा रोड शो में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने पंजाब और दिल्ली की तरह ही गुजरात में भी झंडे गाड़ने की बात कही. क्या उनके दावों में वास्तव में कुछ दम है? क्या आम आदमी पार्टी गुजरात में बीजेपी को टक्कर देने और कांग्रेस का विकल्प बनने की स्थिति में है? या फिर केजरीवाल खोखली सतह पर खड़े होकर ज्यादा भारी दावे तो नहीं कर रहे. इस साल के अंत में इस राज्य में चुनाव होने वाले हैं.

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कांग्रेस के बराबर आना पहला लक्ष्य

AAP भले ही गुजरात में बीजेपी को चुनौती देने के बात कर रही हो, पर वास्तविकता में अभी उसकी लड़ाई कांग्रेस के बराबर आने, राज्य में नंबर दो बनने या प्रमुख विपक्षी दल बनने की रहेगी. गुजरात की राजनीति में कांग्रेस के पुराने इतिहास और उसकी जड़ों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी का कांग्रेस की जगह लेने का सपना बहुत मुश्किल हो सकता है.

कांग्रेस का गुजरात में बड़ा नेटवर्क है. यहां इस पार्टी का जनाधार भी मौजूद है. पार्टी काडर के तहत बूथ लेवल तक कांग्रेस के लिए जुटने वाले पार्टी वर्कर हैं. भले ही पिछले नगर निकाय चुनाव में कांग्रेस को हार मिली हो, या इस पार्टी में आपसी खींचतान चल रही हो पर फिर भी कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को तगड़ी चुनौती देते हुए 99 सीटों पर लाकर खड़ा कर दिया था.

गुजरात में बीजेपी की लंबे समय से सरकार है तो उससे उपजी एंटी इनकंबेंसी की लहर का फायदा भी राजनीतिक सिद्धांतों के अनुसार लंबे समय से विपक्ष में बैठी कांग्रेस के पास ही जाना चाहिए. ऐसे में आम आदमी पार्टी को पंजाब जैसा प्रदर्शन यहां दिखाने के लिए किसी चमत्कार की उम्मीद ही करना होगी.

AAP की सबसे बड़ी उम्मीद गांवों से

गुजरात के वोटिंग पैटर्न से यह माना जाता है क‍ि कांग्रेस की स्थिति देहाती इलाकों में मजबूत है. AAP उसके इसी वोटर पर नजर गड़ाकर अपना अभियान शुरू करना चाहती है. पंजाब में भी AAP ने ग्रामीण इलाकों का ही वोट पाकर सत्ता हासिल की. AAP ने अभी अपना आंतर‍िक सर्वे कराया और कहा कि गुजरात में अभी के आकलन से वे 58 सीटें जीत रहे हैं. सर्वे में दावा है कि पार्टी को कांग्रेस से रुष्ट हुए ग्रामीण मतदाताओं से सबसे ज्यादा सपोर्ट मिल सकता है. साथ ही शहरी क्षेत्रों में रहने वाले निचले और मध्यम वर्ग के वोटर भी उसे वोट देंगे.

पार्टी ने अभी से ही यहां के पटेल, किसान-व्यापारी वर्ग और यूपी-बिहार के प्रवासियों तक पहुंच बनानी कर दी है. पंजाब में AAP की जीत में बड़ी भूमिका निभाने वाले संदीप पाठक को गुजरात में पार्टी ने अभी से रणनीति जमाने की जिम्मेदारी दे दी है और वह सबसे ज्यादा रूरल इलाके पर ही फोकस कर रहे हैं.

जमीन जमाने के लिए और क्या कर रहे केजरीवाल

गुजरात में AAP की जमीन जमाने के लिए अरविंद केजरीवाल ने अभी हाल ही के दौरे में यहां के प्रमुख सामाजिक और राजनीतिक नेताओं से बैठकें की. उन्होंने जिस भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के गुजरात में दो विधायक हैं, उनके नेता और डेडियापाडा विधायक महेश वसावा से मुलाकात की. विधानसभा चुनाव को लेकर AAP बीटीपी के साथ गठबंधन की कोशिशें भी कर रही है. केजरीवाल ने अपने दौरे पर कांग्रेस के दो असंतुष्ट नेताओं से भी मुलाकात की. राज्य के बड़े वोट बैंक पाटीदार पर डोरे डालने वह अहमदाबाद के शाहीबाग इलाके में स्थित इस संप्रदाय के स्वामी नारायण मंदिर में दर्शन के लिए भी गए.

हालांकि यहां AAP को कुछ छोटे झटके भी लग रहे हैं, क्योंकि केजरीवाल और भगवंत मान के दौरे के एक दिन बाद ही पार्टी के 150 नेता और कार्यकर्ता उनका साथ छोड़ बीजेपी में चले गए.

यहां की चुनावी रणनीति की जिम्मेदारी भी केजरीवाल ने उन संदीप पाठक को दी है जो हाल ही में पंजाब की जीत के शिल्पकार रहे.

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AAP को हिम्मत कैसे मिली

पिछले साल हुए राज्य में हुए नगर निकाय चुनावों के परिणामों से आम आदमी पार्टी की महत्वाकांक्षाएं जागीं. इन निकाय चुनाव में AAP ने सूरत नगर निगम की 120 में से 27 सीटें जीती थीं. पाटीदार बहुल इलाकों की सीटें वे जीत गए तो AAP थिंकटैंक को लगा कि पूरे प्रदेश के पाटीदारों के वोट हासिल किए जा सकते हैं. पार्टी ने इसे इशारा समझा कि गुजरात में कांग्रेस लंबे समय से बीजेपी को टक्कर नहीं दे पा रही तो शायद मतदाता उन्हें तीसरा विकल्प मान सकता है.

पार्टी का राज्य में इतिहास

गुजरात में आम आदमी पार्टी ने अपनी ईकाई साल 2013 में ही डाल दी थी. पर उसकी फिजां कई सालाें तक नहीं बन पाई. इस बीच पार्टी की मीटिंग्स और छोटे मोटे कार्यक्रम करने का दौर यहां चलता रहा. 2017 में जब चुनाव का साल आया तो पार्टी ने अपने प्रथम प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति की. वे बने 79 साल के किशोर देसाई जो रिटायर्ड प्रोफेसर थे.

2017 के चुनाव में पार्टी उतरी. 182 में से 29 सीटों पर प्रत्याशी उतारे पर कोई नहीं जीता. 2020 में पार्टी ने युवा गोपाल इटालिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. 2021 गुजरात नगर निकाय चुनाव में ही AAP को थोड़ी उल्लेखनीय सफलता मिल सकी.

AAP के प्लान से कांग्रेस कैसे लड़ेगी

कांग्रेस यहां अपने अंदरूनी कलह से काफी लंबे समय से जूझ रही है. इसी कलह की वजह से वह गुजरात की सत्ता से 27 सालों से बाहर है. 1995 में कांग्रेस की यहां से करारी हार हुई थी. उसके बाद से कांग्रेस की पटरी पर वापसी नहीं हो पाई है. पिछले चुनावों में उसने बीजेपी का जाेरदार मुकाबला किया था, पर अभी भी पार्टी के अंदर वह जरूरी एकता दिख नहीं रही जिसके बल पर वह बीजेपी के सामने डटकर खड़ा होने और आम आदमी पार्टी के नंबर दो बनने के प्लान को फेल कर सके. इसके लिए सभी पार्टी नेताओं को एक लाइन पर लाना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.

कांग्रेस के अंदरुनी सूत्र इशारा कर रहे हैं कि पाटीदार वोटों की महत्ता देखते हुए राज्य के बड़े पाटीदार नेता नरेश पटेल को सीएम फेस बनाने की इलेक्शन स्ट्रेटेजी पार्टी बना रही है. नरेश पटेल जो लेउआ पटेलों की कुलदेवी खोडलधाम माता के मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं, उनसे कांग्रेस में शामिल होने को लेकर चर्चा भी की गई है. ऐसा नहीं है कि आम आदमी पार्टी नरेश पटेल पर डोरे नहीं डाल रही. वह भी उन्हें अपने पाले लाने की कोशिश में लगी है.

नरेश पटेल को लेकर कांग्रेस और बीजेपी में एक तरह की खींचतान चल रही है. नरेश पटेल तो हाल में AAP की तारीफ भी कर चुके हैं, जिसे एक राजनैतिक इशारा माना जा सकता है.

कांग्रेस की चिंता पाटीदार वोट

पाटीदार वोट कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है. 2021 गुजरात नगर निकाय चुनाव में कांग्रेस पाटीदारों के क्षेत्रों में बुरी तरह से हार गई थी. कांग्रेस नेता हार्दिक पटेल खुद पाटीदार समाज के हैं और पाटीदारों के दुर्ग कहे जाने वाले सूरत इलाके में कांग्रेस एक अदद जीत को तरस गई थी. हालांकि जरूरी नहीं है कि नरेश पटेल वाला दांव कांग्रेस के लिए काम ही कर जाए. पंजाब में जमे जमाए नेता कैप्टन अमरिंदर से गद्दी छीन चन्नी-सिद्धू जैसों को आगे करने का खामियाजा वह भुगत चुकी है.

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