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राहुल गांधी को 'मोदी सरनेम केस' में राहत नहीं देने वाले गुजरात HC के जज का ट्रांसफर

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने गुजरात हाई कोर्ट से चार जजों को चार अलग-अलग हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने की सिफारिश की है.

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सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम (Supreme Court Collegium) ने "बेहतर न्याय प्रशासन" के लिए गुजरात हाई कोर्ट से चार न्यायाधीशों को चार अलग-अलग हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने की सिफारिश की है. इनमें से एक नाम गुजरात हाईकोर्ट के जज जस्टिस हेमंत एम प्रच्छक का भी है. जस्टिस हेमंत ने ही 'मोदी सरनेम मामले' में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था.

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क्या है मोदी सरनेम मामला? राहुल गांधी को सूरत मजिस्ट्रेट अदालत ने बीजेपी विधायक पूर्णेश मोदी द्वारा दायर एक शिकायत में आपराधिक मानहानि का दोषी पाया था. अप्रैल 2019 में कोलार में राहुल गांधी ने मोदी सरनेम को चोरों से जोड़कर कथित टिपण्णी की थी. इसी मामले में सूरत की अदालत ने उन्हें दो साल की सजा सुनाई थी, जिससे उनकी सांसदी रद्द कर दी गई थी.

राहुल गांधी इसी सजा के खिलाफ रोक लगवाने की याचिका लेकर अहमदबाद हाईकोर्ट पहुंचे थे, जहां जस्टिस हेमंत एम प्रच्छक ने उनकी सजा पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था. जुलाई में जारी किए गए 123 पेज के फैसले में जस्टिस प्रच्छक ने कहा कि सजा पर रोक लगाने का पर्याप्त औचित्य नहीं था. यह मामला अभी सूरत की सत्र अदालत में लंबित है.

हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को मिली सजा पर रोक लगा दी और उनकी सांसदी वापस बहाल हो गयी.

कॉलेजियम की सिफारिश

3 अगस्त को हुई कॉलेजियम बैठक के अनुसार गुजरात हाई कोर्ट के इन चार जजों के ट्रांसफर की सिफारिश की गयी है:

- जस्टिस अल्पेश वाई कोग्जे को इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर की सिफारिश.

-जस्टिस गीता गोपी को मद्रास हाई कोर्ट ट्रांसफर करने की सिफारिश.

-जस्टिस हेमंत एम प्रच्छक को पटना हाईकोर्ट ट्रांसफर की सिफारिश.

-जस्टिस समीर जे दवे को राजस्थान हाईकोर्ट ट्रांसफर करने की सिफारिश.

बता दें कि जस्टिस गीता गोपी ने इस साल अप्रैल में राहुल गांधी मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था.

जस्टिस समीर दवे ने 2002 के गोधरा दंगों के संबंध में कथित तौर पर झूठे सबूत पेश करने के लिए कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड द्वारा उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों को रद्द करने की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था.

इससे पहले, जस्टिस दवे ने 14 से 15 साल की उम्र में लड़कियों की शादी और 17 साल की उम्र में बच्चे को जन्म देने की ऐतिहासिक प्रथाओं के बारे में मौखिक टिप्पणियां की थीं.

जस्टिस ने 7 जून को कहा था, "क्योंकि हम 21वीं सदी में रह रहे हैं...जाओ और अपनी मां या परदादी से पूछो, वे तुम्हें बताएंगी कि अतीत में, लड़कियों की शादी के लिए 14 से 15 साल की उम्र सामान्य थी. जब तक वे (लड़कियां) 17 वर्ष की आयु तक पहुंचती थी वे कम से कम अपने पहले बच्चे को जन्म दे देती थीं."

उन्होंने कहा था, "लड़कियां लड़कों की तुलना में बहुत पहले मेच्युर हो जाती हैं. इसका उल्लेख मनुस्मृति में भी है. मुझे पता है कि आप नहीं करेंगे, लेकिन कम से कम इसके लिए आपको इसे अवश्य पढ़ना चाहिए."

कॉलेजियम क्या है?

सुप्रीम कोर्ट के जजों का कॉलेजियम न्यायाधीशों की नियुक्तियों और तबादलों पर निर्णय लेता है. इसकी अध्यक्षता मौजूदा मुख्य न्यायाधीश करते हैं और यह सुप्रीम कोर्ट के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों से बना होता है.

अभी, कॉलेजियम में CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं.

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