सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 20 मई को वाराणसी के सिविल जज के सामने लंबित ज्ञानवापी मस्जिद मामले (Gyanvapi Masjid Case) को सुनवाई के लिए वाराणसी जिला जज की अदालत में ट्रांसफर कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि जिला जज पहले यह तय करें कि इस दीवानी मुकदमे को चलाया जा भी सकता है या नहीं, यानी उसे मेंटेन किया जा सकता है या नहीं.
बेंच ने कहा कि जिला जज प्राथमिकता के आधार पर इस सवाल का फैसला करें कि क्या मामले को पूजा स्थल अधिनियम 1991 के आलोक में चलाया जा सकता है या नहीं. इसके लिए जिला जज सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 11 नियम 7 के तहत मामले को रद्द करने के लिए मस्जिद समिति द्वारा दायर आवेदन पर निर्णय लें.
यह नोट करते हुए कि "थोड़ा अधिक मैच्योर" और "अनुभवी हाथ" को ज्ञानवापी मस्जिद मामले को संभालना चाहिए, सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि इस मामले की सुनवाई वाराणसी की एक जिला जज द्वारा की जानी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, सूर्यकांत और पीएस नरसिम्हा की 3 जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी. जानते हैं आज कोर्ट में क्या कुछ हुआ.
मीडिया में "चुनिंदा लीक" बंद होना चाहिए- सुप्रीम कोर्ट
वादी अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद के प्रबंधन समिति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने सुनवाई के दौरान बेंच से कहा कि विशेष कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट के चुनिंदा लीक पर रोक लगानी चाहिए जो मीडिया में एक नैरेटिव पैदा करती है.
हुजेफा अहमदी ने बताया कि मीडिया को जानकारी लीक करने के कारण सिविल कोर्ट ने एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को हटा दिया था. हालांकि लीक की गई जानकारी को सिविल कोर्ट के 16 मई के आदेश का आधार बनाया गया था, जिसने मस्जिद में उस स्थान को सील करने का आदेश दिया था जहां हिंदू के वकील ने दावा किया था कि एडवोकेट कमिश्नर ने एक शिवलिंग देखा था.
यह देखते हुए कि बेंच देश में एकता की भावना को बनाए रखने के लिए एक मिशन पर है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद मामले पर रिपोर्ट का चुनिंदा लीक नहीं होना चाहिए.
"हम यहां देश में एकीकरण की भावना को बनाए रखने के लिए एक ज्वाइंट मिशन पर हैं. एक बार आयोग की रिपोर्ट आने के बाद उसको सेलेक्टिव रूप से लीक नहीं किया जा सकता. प्रेस को चीजें लीक न करें. केवल जज ही रिपोर्ट खोल सकता है"
पूजा स्थल अधिनियम के तहत पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र का पता लगाना वर्जित नहीं- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के लिए हिंदू पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने कोर्ट से कहा कि याचिका पहले ही असफल हो गई है क्योंकि कोर्ट कमिश्नर का सर्वे पूरा हो चुका है.
हालांकि मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अहमदी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर देना चाहिए क्योंकि यह पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के अनुरूप नहीं है. उन्होंने कहा कि यदि SC हस्तक्षेप नहीं करता है, तो अन्य धार्मिक स्थलों के संबंध में भी इसी तरह की 'शरारतें' की जाएंगी.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले के मेरिट पर स्वत: निर्णय नहीं ले सकता है. हमें कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करना होगा". सुप्रीम कोर्ट ने तब सुझाव दिया कि वह आदेश VII नियम 11 के आवेदन पर जिला जज द्वारा निर्णय होने तक अपील को अपने पास लंबित रखेगा.
खास बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि पूजा स्थल अधिनियम के तहत पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र का पता लगाना वर्जित नहीं है. इसपर मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा कि 15 अगस्त 1947 के दिन ज्ञानवापी मस्जिद का धार्मिक चरित्र क्या था, इस पर कोई विवाद नहीं है.
आज सुनवाई के बाद SC की बेंच ने सिविल जज की कोर्ट से केस को जिला कोर्ट में ट्रांसफर करने का आदेश पारित किया.
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