ADVERTISEMENTREMOVE AD

"ये रेलवे की जमीन नहीं", हल्द्वानी के हजारों लोग कोर्ट के आदेश का कर रहे विरोध

क्विंट ने कॉलोनी के निवासियों से बात करने और उनके दावों की पड़ताल करने के लिए हल्द्वानी का दौरा किया.

Published
भारत
6 min read
छोटा
मध्यम
बड़ा

"अगर यह जमीन यकीनन रेलवे की है तो राज्य सरकार यहां क्या कर रही है? सरकारी स्कूल, सरकारी स्वास्थ्य केंद्र और इंटर कॉलेज यहां (इस जमीन पर) क्यों हैं? प्रशासन को हमारी परवाह नहीं है और ना ही वो हमारी बात सुन रहा है," उत्तराखंड (Uttarakhand) के हल्द्वानी (Haldwani) में फार्मासिस्ट के रूप में काम करने वाले 29 वर्षीय ईशान सिंह ने उत्तराखंड हाईकोर्ट से आए बेदखली आदेश के बारे में पूछे जाने पर क्विंट को बताया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
हल्द्वानी में बेघर होने की कगार पर पहुंच चुके, लगभग 4 हजार परिवार 27 दिसंबर से शांतिपूर्ण ढंग से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. जमीन को रेलवे का बताकर हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देकर इन परिवारों को जगह खाली करने का नोटिस दिया गया है. आदेश के दो दिन बाद, स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद रेलवे अधिकारियों ने क्षेत्र का सीमांकन किया. रेलवे अधिकारियों का कहना है कि सर्वेक्षण के बाद, हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में कुल 4,365 घर हैं, जिनमें 78 एकड़ जमीन रेलवे की है. इस पर लोगों ने कब्जा करके घर बना रखा है. 

क्विंट ने सोमवार, 2 जनवरी को कॉलोनी के निवासियों से बात करने और उनके और साथ ही अधिकारियों के दावों की पड़ताल करने के लिए हल्द्वानी का दौरा किया.

रेजिडेंट्स ने लगाया वोट बैंक पॉलिटिक्स का आरोप 

ईशान सिंह ने कहा कि मैं बचपन से यहां रह रहा हूं. मेरे दादा-दादी यहीं के हैं. हाईकोर्ट का आदेश गलत है क्योंकि सभी दस्तावेज नहीं दिखाए गए हैं. यह नगरपालिका की जमीन है, लेकिन वे अपने कागजात नहीं दिखा रहे हैं. रेलवे की संपत्ति ट्रैक से 45 फीट की दूरी पर मानी जाती है. लेकिन वे लाइन से 200 मीटर से अधिक क्षेत्र में 78 एकड़ जमीन पर दावा कर रहे हैं. 

क्विंट ने कॉलोनी के निवासियों से बात करने और उनके दावों की पड़ताल करने के लिए हल्द्वानी का दौरा किया.

हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके का रहने वाला 29 वर्षीय ईशान सिंह.

(फोटो- द क्विंट)

0

ईशान सिंह बताते हैं,

राज्य सरकार हमसे पल्ला इसलिए झाड़ रही है ताकि वो समुदाय को बांटकर वोट बैंक की राजनीति कर पाए. यहां हर समुदाय के लोग रहते हैं. लेकिन चूंकि यहां मुस्लिम बहुमत है, इसलिए उन्हें लगता है कि उन्हें वोटर बेस नहीं मिलेगा, इसलिए वे हमें बांटना चाहते हैं और हमें यहां से हटाना चाहते हैं.

सोमवार को हजारों मुस्लिम महिलाएं दुआ करने और इस मुद्दे पर स्पीच देने के लिए लेन 17 में जुटीं. 

क्विंट से बात करते हुए दो महिला, जो अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहती थीं, उन्होंने क्विंट से कहा कि हम अपने अधिकारों के लिए चुपचाप और शांति से लड़ रहे हैं.

पहली बात ये कि रेलवे के पास हकीकत में जितनी जमीन है, उससे अधिक जमीन पर उनका दावा किया जा रहा है.

दूसरी बात ये कि आखिर ये सब वो हल्द्वानी से क्यों शुरू कर रहे हैं? उन्हें काठगोदाम से इसकी शुरुआत करनी चाहिए और लाल कुआं तक ले जाना चाहिए.

क्विंट ने कॉलोनी के निवासियों से बात करने और उनके दावों की पड़ताल करने के लिए हल्द्वानी का दौरा किया.

दो महिलाएं, जो अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहती थीं. उन्होंने द क्विंट को बताया कि हम अपने अधिकारों के लिए यह लड़ाई चुपचाप और शांति से लड़ रहे हैं.

(फोटो- क्विंट)

इनमें से एक महिला ने कहा कि किसी को बेघर करके कोई घर नहीं बसा पाया है. इलाके में बनी कई सरकारी स्कूलों के बारे में बताते हुए वो पूछती है...“बच्चे कहां जाएंगे? क्या उनकी पढ़ाई प्रभावित नहीं होगी? फिर लोग कहते हैं कि मुसलमान अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते. अगर ऐसा ही होता रहेगा तो मुस्लिम बच्चे कब पढ़ेंगे? वे कैसे तरक्की करेंगे?”

ADVERTISEMENTREMOVE AD
क्विंट ने कॉलोनी के निवासियों से बात करने और उनके दावों की पड़ताल करने के लिए हल्द्वानी का दौरा किया.

हल्द्वानी के बनभूलपुरा में हेल्थ सेंटर

(फोटो- क्विंट)

क्विंट ने कॉलोनी के निवासियों से बात करने और उनके दावों की पड़ताल करने के लिए हल्द्वानी का दौरा किया.

हल्द्वानी बनभूलपुरा क्षेत्र में राजकीय प्राथमिक विद्यालय

(फोटो- क्विंट)

क्विंट ने कॉलोनी के निवासियों से बात करने और उनके दावों की पड़ताल करने के लिए हल्द्वानी का दौरा किया.

हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में राजकीय इंटर कॉलेज

(फोटो- क्विंट)

इज्जत नगर के रेलवे पीआरओ राजेंद्र सिंह ने रविवार को कहा

करीब 10 दिन पहले हल्द्वानी में रेलवे की जमीन से सभी अतिक्रमण हटाने का हाईकोर्ट का फैसला आया. कुल 4,365 अतिक्रमण हैं और हम स्थानीय समाचार पत्रों के माध्यम से नोटिस देकर रहने वालों को शिफ्ट करने के लिए सात दिन का समय दिया जाएगा, उसके बाद हम कार्रवाई करेंगे.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में "रेलवे की जमीन से अतिक्रमण" हटाने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय (Uttarakhand High Court) के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए 5 जनवरी की तारीख तय की है.

द क्विंट ने हल्द्वानी के मेयर जोगिंदर सिंह रौतेला से भी संपर्क किया और पूछा कि विवादित जमीन पर अगर संपत्ति रेलवे की थी तो राज्य सरकार की संपत्ति कैसे थी.

रौतेला ने कहा

मामला कोर्ट में है और कोर्ट के मुताबिक जमीन रेलवे की है. संपत्तियों का निर्माण 20-30 साल पहले हो सकता है. चूंकि यह एक न्यायिक मामला है, इसलिए मैं आगे कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता.

"या तो हमें सुनें या फिर गोली मार दें"

रिटायर्ड इलेक्ट्रीशियन, 59 वर्षीय मोहम्मद इसरार खान ने क्विंट को बताया कि मैं यहां तब से रह रहा हूं, जब मैं बच्चा था. मेरे मां-पिता दोनों की मौत यहीं हुई, मैंने यहीं काम किया और बूढ़ा हुआ. मेरे बच्चे बड़े हुए और इसी कॉलोनी में उनकी शादी हुई. मैंने जो कुछ भी कमाया है, इस घर को बनाने के लिए लगा दिया. अब अगर हमें निकाला गया तो मैं अपने बच्चों को लेकर कहां जाऊंगा? मैं फिर से काम कर सकूं ऐसी उम्र मेरी अब बची नहीं है.

क्विंट ने कॉलोनी के निवासियों से बात करने और उनके दावों की पड़ताल करने के लिए हल्द्वानी का दौरा किया.

हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में रहने वाले मोहम्मद इसरार खान.

(फोटो- द क्विंट)

ADVERTISEMENTREMOVE AD
मोहम्मद इसरार खान कहते हैं कि 1970 के दशक से यहां लोग बसे हुए हैं, जब यहां सिर्फ कच्ची सड़क हुआ करती थी. बारिश होने पर घुटने तक पानी भर जाता था और हम उससे होकर ही घर जाते थे. यह जमीन रेलवे की नहीं है. उनके पास कोई सबूत नहीं है, जबकि हमारे पास कई सबूत हैं.

इसके बाद उन्होंने अपने घर के मालिकाना हक का दावा करने के लिए कई बिल दिखाए.

यह हमारा पानी का बिल है जो हमारे पास 1994 से है, बिजली का बिल 1997 से है. यह 1994 से 1995 तक की हाउस टैक्स रसीद है, जिसे हम 1991 से नगरपालिका को भुगतान कर रहे हैं. इतना सब होने के बाद भी हमें परेशान किया जा रहा है."

यह पूछे जाने पर कि यदि अदालतें उनकी मांग पर सहमत नहीं होती हैं तो वो और उनका परिवार क्या करेंगे. उन्होंने कहा कि

यदि सरकार नहीं मानती है, तो इंदिरानगर में ही करीब एक लाख लोग हैं, हमारे पास मरने के अलावा कोई चारा नहीं होगा. या तो हमारा पक्ष सुनो या हमारे परिवारों को ले जाओ और हम सभी को गोली मार दो.

साबरी मस्जिद के इमाम 35 वर्षीय मुफ्ती अहमद रजा कादरी, जिनका घर दावा की गई रेलवे की जमीन में पड़ता है. उन्होंने कहा कि मैं लगभग 12 वर्षों से इस मदरसे में पढ़ा रहा हूं. मुझसे पहले उस्ताद मोहम्मद हाफिज ने 20 साल तक पढ़ाया. यह मदरसा कम से कम 70 साल पुराना है.  इसके सामने एक मस्जिद भी है. इसके आस-पास बसी हुई आबादी भी इतने सालों से यहां है, लोगों के पास कागजात भी हैं.

क्विंट ने कॉलोनी के निवासियों से बात करने और उनके दावों की पड़ताल करने के लिए हल्द्वानी का दौरा किया.

मुफ्ती अहमद रजा कादरी ने 1990 के कुछ बिल भी दिखाए.

(फोटो- क्विंट)

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कादरी ने क्विंट से आगे कहा कि आज रेलवे इसे अपनी जमीन बता रहा है.

पहला, यह एक बसा हुआ समुदाय है, जिसे वे बेदखल और ध्वस्त करना चाहते हैं. 70 साल तक रेलवे कहां थी. क्या वे सो रहे थे? वे अब ऐसा क्यों कर रहे हैं? पूरे भारत में जहां भी रेलवे ट्रैक हैं, वे ट्रैक के बगल में 45 फीट क्षेत्र के मालिक हैं लेकिन आज वे इसके बगल के 400-500 फीट से अधिक क्षेत्र पर कब्जा करने की बात कर रहे हैं, जिसमें यह इंदिरानगर बस्ती भी शामिल है. कहां जाएंगे ये लोग? हमारा मानना है कि इन लोगों के साथ अन्याय हो रहा है."

सुप्रीम कोर्ट में मामले को सूचीबद्ध किए जाने के बाद सोमवार को उन्होंने कहा:

राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में प्रभावित लोगों की संपत्ति का प्रतिनिधित्व नहीं किया और रेलवे को हावी होने दिया. अब रेलवे अधिकारी एक काल्पनिक सर्वे लेकर आए हैं, जिसमें कहा गया है कि 2016 में उच्च न्यायालय में प्रस्तुत हलफनामे के खिलाफ उनकी 79 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण किया गया है, जिसमें 29 एकड़ का उल्लेख किया गया है.

हृदयेश ने कहा कि इलाके में सरकारी अस्पताल और स्कूल हैं, क्या रेलवे की जमीन पर सरकार ने कब्जा कर लिया था ? लोग इस क्षेत्र में दशकों से रह रहे हैं और उनके पास पंजीकृत दस्तावेज हैं. लोगों के पास हजारों सबूत हैं और हमें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट प्रभावित लोगों को राहत देगा.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×