सुप्रीम कोर्ट ने आधार और इससे संबंधित 2016 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई पूरी कर ली. कोर्ट ने इन याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा है.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने करीब चार महीने के दौरान 38 दिन इन याचिकाओं पर सुनवाई की.
बेंच ने गुरुवार को सभी संबंधित पक्षकारों को इस मामले में तत्काल अपनी लिखित दलीलें पेश करने का निर्देश दिया है. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एके सिकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं.
सरकार का पक्ष
इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केन्द्र की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और विभिन्न पक्षकारों की ओर से कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम, राकेश द्विवेदी, श्याम दीवान और अरविन्द दातार सरीखे वरिष्ठ वकीलों ने अपनी अपनी दलीलें पेश की. उन्होंने केन्द्र सरकार ने आधार नंबरों के साथ मोाबाइल फोन जोड़ने के फैसले का बचाव किया और कहा कि अगर मोाबाइल उपभोक्ताओं का सत्यापन नहीं किया जाता, तो उसे सुप्रीम कोर्ट अवमानना के लिये जिम्मेदार ठहराती.
हालांकि, कोर्ट ने कहा था कि सरकार ने उसके आदेश की गलत व्याख्या की और उसने मोबाइल उपभोक्ताओं के लिये आधार को अनिवार्य बनाने के लिये इसे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया.
कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस केएस पुत्तास्वामी और अन्य याचिकाकर्ताओं ने आधार की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है.
सुप्रीम कोर्ट सरकार की इस दलील से सहमत नहीं था कि लोकसभा अध्यक्ष ने आधार विधेयक को सही मायने में धन विधेयक बताया था, क्योंकि यह कॉन्सोलिडेटिड फंड से मिलने वाले कोष से दी जा रही सब्सिडी से संबंधित है.
(इनपुट भाषा से)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)