ADVERTISEMENTREMOVE AD

जलवायु परिवर्तन की डर्टी पिक्चर-गंगा किनारे सूखती फसल,बेहाल किसान,महंगाई बेहिसाब

गंगा किनारे होने के बावजूद किसानों की फसल सूख रही है. बेल से हरे पत्ते गायब हो रहे हैं और फल नहीं आ रहा है.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

बढ़ता तापमान (Temperature) और घटता जलस्तर विकराल रूप ले रहा है. लेकिन हम अब भी घड़ियाल बने बैठे हैं, अगर आपको भी जलवायु, प्रदूषण, हीट वेव (heat wave) और पर्यावरण (climate) जैसे शब्दों से समझ नहीं आता कि ये कितनी बड़ी बला है तो आसान और सीधी भाषा में किसान के खेत से आपको समझा देते हैं. आपको लिए चलते हैं उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में गंगा किनारे. जहां बहुत से किसानों ने खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा, करेला, कद्दू और लौकी जैसी सब्जियां और फल लगा रखे हैं. लेकिन इस बार एक अजीब सी परेशानी का सामना ये किसान कर रहे हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
गंगा किनारे होने के बावजूद किसानों द्वारा लगाई गई फसल सूख रही है. बेल से हरे पत्ते गायब हो रहे हैं और फल नहीं आ रहा है. ऐसे में क्यों ज्यादातर सब्जियों के भाव सता रहे हैं ये सोचिए और इन किसानों के बारे में सोचिए जिनके लिए लागत निकालना मुश्किल हो रहा है. लेकिन पहले खेतों की हालत इस तस्वीर के जरिए समझिए.

किसानों ने कहा कि फरवरी और मार्च तक सब ठीक था लेकिन उसके बाद अचानक बेल सूखने लगी. दिन में तीन-तीन बार पानी लगाने के बाद भी हालात नहीं सुधर रहे हैं. लगभग सभी किसानों ने इसके पीछे पहला कारण बढ़ती गर्मी बताया. आपको शायद याद हो कुछ दिन पहले सारे न्यूज चैनल वालों ने बताया तो था कि इस बार मार्च 1901 के बाद सबसे गर्म रहा है.

इस बढ़ती गर्मी ने किसानों के सामने समस्या लाकर खड़ी कर दी. जिसका एकमात्र निदान था पानी, तो पानी सींचने के लिए जरूरत है डीजल की और डीजल हो गया है महंगा.

एक किसान दुर्गा दत्त ने बताया कि,

अगर ऐसे ही धूप आग बरसाती रही तो जो अभी फसल बची हुई है वो भी खराब हो जाएगी. हजारों रुपय लगाने के बाद भी हमारे हाथ कुछ नहीं आया है, मौसम ने अबकी बार लंबी चोट पहुंचाई है.

गंगा किनारे होने के बावजूद ऐसे हालात क्यों?

ये सारे किसान गर्मियों के दिनों में उस जमीन पर आकर खेती करते हैं. जो बरसात के बाद गंगा का पानी कम होने से खाली होती है. गंगा किनारे बड़ी संख्या में किसान ऐसा करते हैं. वो बरसात से पहले अपना पूरा परिवार लेकर यहां झोपड़ी डाल लेते हैं ताकि दो जून की रोटी कमाई जा सके.

एक और किसान सलाम से जब बात की तो उन्होंने बताया कि,

इस बार तापमान अधिक है और वक्त से पहले गंगा का जलस्तर गिर गया है. जिसकी वजह से फसल को पानी नहीं लगा पा रहे हैं. अब इंजन से सिंचाई का ऑप्शन बचा है और डीजल बहुत महंगा है, हम तो सोच रहे हैं कि किसानी करना ही छोड़ दें.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

पर्यावरणविद ने क्या कहा ?

पर्यावरणविद अशोक भार्गव का कहना था कि जलवायु परिवर्तन का असर ग्राउंड पर भी देख सकते हैं. आप यह समझ सकते हैं कि किस तरह से जलवायु आम लोगों और खेती को प्रभावित कर रही है. ये उसका एक उदाहरण है जब खेती-बाड़ी प्रभावित होती है तो आम आदमी भी महंगाई की मार झेलता है. उन्होंने आगे कहा कि लगातार वाटर लेवल गिर रहा है और जो हरे पेड़ बचे हैं उनका कटान हो रहा है. जिससे पर्यावरण का दोहन हो रहा है और पूरा वायुमंडल प्रभावित हो रहा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ये अकेले उन्नाव का हाल नहीं है बल्कि पूरे देश में लगभग यही हालात हैं, कुछ दिन पहले तक आप सौराष्ट्र और राजस्थान के किसानों से पानी की कमी की बात सुनते थे अब गंगा किनारे ये हालात हैं तो भविष्य का अंदाजा लगा लीजिए. आने वाले पांच जून को जब विश्व पर्यावरण दिवस मनाएंगे और दो मिनट के लिए धरती पर बचे पानी के लिए सोचेंगे. उससे पहले ही एक मिनट दीजिए और अपने आज के पूरे दिन की दिनचर्या को याद कीजिए आपने कितनी बार और कहां-कहां पानी बहाया है जहां बिना पानी या कम पानी से भी काम चल सकता था.

अगर धरती पर जीवन बचाए रखना है और ऐसी गर्मी नहीं झेलनी है तो पर्यावरण का ध्यान रखना होगा, पानी को बचाना होगा, पेड़ लगाने होंगे. वरना सोचिए गंगा किनारे किसान पानी का रोना रो रहे हैं तो मैदानी इलाकों का क्या होगा. और सूखे क्षेत्रों की तो आप बात ही मत कीजिए.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×