ब्राह्मण समुदाय के खोये हुए संस्कार, परंपरा और तौर-तरीकों को दोबारा जीवित करने के बड़े दावों के साथ बंगलुरु में एक टाउनशिप बनायी जा रही है. इसके निर्माण में ब्राह्मणवादी वास्तुशिल्प, जीवनशैली और संस्कृति प्रयोग किए जाने का दावा किया जा रहा है.
बंगलुरु शहर के बाहर के इलाके में स्थित इस ‘ब्राह्मण ओनली’ टाउनशिप The Vedic Village- Shankar Agraharam का निर्माण साल 2013 में शुरु किया गया था. इसके लॉन्च होने के साथ ही देसी और विदेशी मीडिया में इसकी आलोचना की गई.
ये टाउनशिप बनाने के पीछे का बुनियादी मकसद या उद्देश्य एक पृथक यानि समाज से अलग हाउसिंग प्रणाली विकसित करना है. ग्लोबल मीडिया ने इसे भारत की सेग्रिगेटेड हाउसिंग और हाउसिंग अपार्टहिड कहा. इसका मतलब घरों के संदर्भ में किया जाने वाला छूआ-छूत या भेदभाव से है. कई वकीलों ने इसे बंद कराने के लिए राज्य सरकार को पत्र लिखकर इससे जातिगत भेदभाव बढ़ने की चिंताओं को उठाया.
3 साल बाद तैयार है ब्राह्मण-टोला यानि वैदिक टाउनशिप
वकीलों और पत्रकारों की इतनी चिट्ठी-पत्री के तीन साल बाद ब्राह्मण-टोला तैयार हो गया है. कर्नाटक सरकार की टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग ने भी इसे अपनी मंजूरी दे दी है.
प्रोजेक्ट मैनेजर्स के मुताबिक इस टाउनशिप के 1800 में से 900 घरों को बेचा जा चुका है. इसी साल अप्रैल महीने से इस प्रोजेक्ट में बुकिंग शुरु हो चुकी है. ग्राहकों यानी ब्राह्मणों को उगाडी के मौके पर फ्लैट खरीदने पर स्पेशल डिस्काउंट भी दिया जा रहा है.
इस प्रोजेक्ट को सनातन धर्म परिरक्षणा ट्रस्ट फंड कर रहा है जिसे यहां के ब्राह्मण समुदाय का सपोर्ट हासिल है.
ट्रस्ट का उद्देश्य - यहां रहने वाले ब्राह्मण समुदाय के लोगों के रहन-सहन के स्तर का उद्धार करना है. उनके रहने के स्थान को और बेहतर करना है ताकि आने वाली पीढ़ियों को धन, संपदा और वैभव विरासत में दिया जा सके.
इस हाउसिंग परियोजना में गैर ब्राह्मण लोगों को शामिल नहीं किया जा रहा है. इतना ही नहीं इस प्रोजेक्ट से जुड़ी वेबसाइट और पैफलेट में ये भी कहा जा रहा है कि ये टाउनशिप श्रेष्ठ या उच्च श्रेणी के लोगों के लिए बनाई जा रही है.
हमारे प्लॉट पर साफ तौर पर लिखा जा चुका है कि ये सिर्फ ब्राह्मणों के लिए उपलब्ध है...क्योंकि हमारा उद्देश्य उच्चतर को हर हाल में उच्च सुविधा देने की है. Source: www.vedicgraham.com
यहां जो भी खरीदार आता है उसे एक फॉर्म भरना होता है जिसमें उसे अपने उपनाम के साथ अपनी जाति और गोत्र के बारे में जानकारी देनी होती है.
शंकर अग्रहरा के सेल्स एंड मार्केटिंग रिप्रेजेन्टेटिव ने हमें समझाया कि गैर ब्राह्मण लोग यहां अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने आ सकते हैं. घर पर काम के आने वाले लोग जिनमें नौकर-चाकर शामिल हैं वे दूसरी जाति के भी हो सकते हैं.
‘सड़क पर झाड़ू तो नहीं लगा सकते न’
लेकिन यहां प्रॉपर्टी या संपत्ति उन्हीं के नाम होगी जिनके परिवार के सदस्य ब्राह्मण होंगे. घर पर काम करने वाले लोग भी दूसरी जाति के हो सकते हैं, क्योंकि हम इतनी ज्यादा जांच नहीं कर सकते हैं, और फिर यहां रहने वाले ब्राह्मण समुदाय के लोग सड़क पर झाड़ू तो नहीं लगा सकते हैं न. हमें ये समझना होगा कि इस समुदाय के भीतर भी कुछ रोक-टोक है जिसका पालन जरूरी है.नीतेश, सेल्स एंड मार्केटिंग एग्जिक्युटिव, शंकर अग्रहरा वेदिक विलेज
इस बिल्डर की वेबसाइट में ऐसे 11 कारण बताए गए हैं जिसकी वजह से ब्राह्मण प्लॉट खरीदने की जरुरत आ पड़ी. इसमें सबसे महत्वपूर्ण है, “ये भारत में आईटी क्रांति लाने वाले क्रांतिकारी ब्राह्मण नारायण मूर्ति की जन्मस्थली है...जिससे ऐसी जमीन का भाग्यशाली होना लाजिमी है.”
बंगलुरू में रहने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकील और सामाजिक कार्यकर्ता के वी धनंजय उन पहले लोगों में से एक हैं जिन्होंने इस भेदभाव वाले टाउनशिप प्रोजेक्ट के विरोध में आवाज उठायी थी. धनंजय ने इस मामले पर राज्य सरकार, मानवाधिकार आयोग और गृहमंत्रालय तक को चिट्ठी लिखी थी.
गृहमंत्रालय ने अपने जवाब में कहा था कि उन्होंने इस मसले को सामाजिक न्याय और अधिकार मंत्रालय को भेज दिया है, लेकिन उसके बाद इसपर कहीं से कोई कार्रवाई नहीं हुई.
कर्नाटक देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां जमीन के इस्तेमाल को लेकर मल्टी-लेवल और मल्टी लेयर्ड स्तर पर सख्त कानून बने हुए हैं. किसी भी प्रोजेक्ट को हरी झंडी देने से पहले कई स्तर पर अधिकारियों की जांच होती है. इन अधिकारियों को ऐसे प्रोजेक्ट को निरस्त करने का भी पूरा अधिकार है जहां किसी तरह की घपलेबाजी और जमीन के गलत इस्तेमाल की बात सामने आती है. इस आदेशपत्र के बाद, ये साफ है कि शंकर अग्रहरा प्रोजेक्ट पूरी तरह से गैरकानूनी है. इसका निर्माण भी खेतीहर जमीन पर किया गया है जो नागरिक हित के खिलाफ है. लेकिन इसके बाद भी ये परेशान करने वाली बात है कि इसे अब तक बनने से रोका नहीं गया.के वी धनंजय, सुप्रीम कोर्ट के वकील और सामाजिक कार्यकर्ता
इस वेदिक विलेज या गांव के प्रोजेक्ट को कर्नाटक में बीजेपी की सरकार के दौरान मंजूरी मिली थी. साल 2013 में राज्य में सिद्धरमैय्या के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार आयी. सिद्दरमैय्या को संभवत: एक सोशलिस्ट, सेक्यूलर और जाति विरोधी सीएम माना जाता है. लेकिन फिर भी इस प्रोजेक्ट पर किसी तरह की रोक नहीं लगायी गई.
पृथक या अलग-थलग घरों की धारणा भारत के लिए नया नहीं है. गुजरात का मुस्लिम रिहाईशी इलाका जुहापुरा, जो 2002 के दंगों के बाद विकसित हुआ, से लेकर दिल्ली में स्थापित “dream homes for elite Muslim brotherhood” और अहमदाबाद की दलित बस्ती तक, जहां के लोग सामान्य सामूहिक व्यवस्था में रहने में असहज महसूस करते हैं, ये परिपाटी धीरे-धीरे बढ़ ही रही है.
शहरी समाज विज्ञानी लॉइक वैकुआंट ने इस ट्रेंड को “neighbourhoods of exile” का नाम दिया है. उनके अनुसार हमारे देश में इस तरह की ब्राह्मण, जैन, पारसी, मुस्लिम और दलित कॉलोनियां कई बार अपनी सांस्कृतिक विरासत को संभाले रखने का दावा करती हैं. जबकि असल में, ये कॉलोनियां हमारी सामाजिक संरचना में गहरा घाव पैदा करती हैं. ऐसी कॉलोनियां हमें एक दूसरे के साथ परस्पर मिलजुल कर, भाईचारे से बिना भेदभाव के एक साथ रहने से रोकती हैं.
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