पश्चिम बंगाल (West Bengal) में रामनवमी के मौके पर हावड़ा शहर में दंगों के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन पर पटना हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस नरसिम्हा रेड्डी के नेतृत्व वाली फैक्ट-फाइंडिंग समिति की अंतरिम रिपोर्ट आ गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि दंगे पूर्व नियोजित थे और इसे सुनियोजित तरीके से भड़काया गया था. कमेटी ने हिंसा की NIA जांच कराने की मांग की है. हालांकि, समिति ने दावा किया कि उसे हिंसा प्रभावित क्षेत्र का दौरा नहीं करने दिया गया.
समिति के दावे पर सवाल भी उठ रहे हैं. जैसे-अगर समिति के अधिकारियों को क्षेत्र का दौरा नहीं करने दिया गया तो फिर रिपोर्ट कितनी प्रमाणिक है? क्यों बार-बार बंगाल पुलिस की जांच पर सवाल उठते हैं? क्या सच में दंगा सुनियोजित तरीके से भड़काया गया है?
हावड़ा में रामनवमी के दिन क्या हुआ?
हावड़ा और नॉर्थ दिनाजपुर जिले में VHP के रामनवमी जुलूस के दौरान दो समुदायों के बीच हिंसा हुई थी. 24 घंटे बाद हावड़ा के शिबपुर में दोबारा पत्थरबाजी हुई. इसमें 3 पुलिसवालों समेत करीब 15 लोग घायल हुए. 10 से ज्यादा वाहनों को जला दिया गया. 20 से ज्यादा दुकानों में तोड़फोड़ की गई.
दैनिक भास्कर में 3 अप्रैल को छपी रिपोर्ट के अनुसार, हिंसा में 2 केस दर्ज कर 38 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. बंगाल सरकार ने CID को जांच का जिम्मा सौंपा है.
कमेटी में कौन-कौन शामिल था?
छह सदस्यीय कमेटी में पटना हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एल. नरसिम्हा रेड्डी, पूर्व आईपीएस राज पाल सिंह, राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व सदस्य एडवोकेट चारु वली खन्ना, पूर्व संयुक्त रजिस्ट्रार (कानून) भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अधिवक्ता ओपी व्यास, वरिष्ठ शामिल हैं. पत्रकार संजीव नायक और पूर्व सलाहकार राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अधिवक्ता भावना बजाज शामिल थे.
रिपोर्ट में क्या कहा गया?
रिपोर्ट में कहा गया है, "समिति का विचार है कि 30 मार्च को रामनवमी पर भड़के दंगे और उसके बाद भी जारी रहे, पूर्व नियोजित, सुनियोजित और उकसाए गए थे. ट्रिगर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भड़काऊ भाषण था. समिति को कई वीडियो मिले हैं और मीडिया रिपोर्ट में भी कई वीडियो रिपोर्ट किए गए हैं, जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि शांतिपूर्ण रामनवमी के जुलूस को निशाना बनाया गया था और दंगाइयों को जुलूस को रोकने और निशाना बनाने के लिए कहा गया था."
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने रामनवमी पर जुलूसों से ठीक पहले धरने पर बैठकर सांप्रदायिक भाषण के माध्यम से आह्वान किया कि 'मुस्लिम क्षेत्रों'से गुजरने वाले किसी भी जुलूस (शब्दशः) पर गंभीरता से कार्रवाई की जाएगी.
समिति ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि शांतिपूर्ण रामनवमी के जुलूसों में भाग लेने वाले लोगों के खिलाफ सांप्रदायिक रूप से आरोपित भीड़ की हिंसा हुई और साथ ही राज्य पुलिस दंगाइयों को नियंत्रित करने की कार्रवाई में पूरी तरह से नाकाम रही.
कमेटी की क्या मांग?
दोषियों के खिलाफ FIR दर्ज की जाये.
दंगों की जांच NIA को सौंपी जाए ताकि निष्पक्ष और स्वतंत्र तरीके से जांच की जा सके.
पीड़ित और भयभीत लोगों को सुरक्षा मिले
निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ झूठे मामले वापस लिया जाये.
केंद्रीय बलों की तैनाती की जाये.
'पुलिस ने हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में जाने से रोका'
पूर्व न्यायाधीश रेड्डी ने कहा कि हमें हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में नहीं जाने दिया जा रहा है. यहां तक कि जिन क्षेत्रों में धारा 144 लागू नहीं है, वहां भी हमें जाने की अनुमति नहीं है. मुझे लगता है कि पुलिस विभाग को पता है कि अगर इन क्षेत्रों का दौरा करेंगे तो हमें हकीकत पता चलेगी कि वास्तव में वहां क्या हुआ था.
पीड़ितों से क्यों मिलने नहीं दिया गया?
पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि हमें पीड़ितों से भी मिलने नहीं दिया जा रहा है. बंगाल पुलिस तानाशाहों की तरह काम कर रही है. वह एक पार्टी के एजेंडे को बढ़ावा देने में लगी है.
वरिष्ठ पत्रकार रास बिहारी ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "बंगाल में कोई पहली बार ऐसा नहीं हुआ है. 2021 में बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान हिंसा हुई थी जिसकी जांच करने के बाद मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट थी और उसके आधार पर हाई कोर्ट ने CBI जांच के आदेश दिये थे, तो अभी तक चल रही है, और भी कई संगठनों ने जांच की थी."
उन्होंने कहा कि बंगाल में पुलिस और ब्यूरोक्रेसी पूरी तरीके से हावी है और इसी वजह से बंगाल का सच सामने नहीं आ पा रहा है.
रिपोर्ट की क्या 'ताकत'?
दरअसल, पहले भी बंगाल में हिंसा होती रही हैं. इसमें कई कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन का आकलन करने के लिए कई फैक्ट-फाइंडिंग समितियों ने राज्य का दौरा किया है. बंगाल में 2021 में विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा की जांच कर रहे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने कलकत्ता हाईकोर्ट में बेहद गंभीर रिपोर्ट सब्मिट की थी.
आयोग ने हिंसा को लेकर अदालत से कहा कि बंगाल में कानून का शासन नहीं, बल्कि शासक का कानून चलता है. बंगाल हिंसा के मामलों की जांच राज्य से बाहर की जानी चाहिए. इस मामले में हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया था. अगर इस बार कुछ ऐसा हुआ तो सरकार के लिए ये बड़ा झटका होगा. हालांकि, यहां ये भी महत्वपूर्ण है कि CID और अगर NIA जांच होती है तो उसमें क्या निकलकर आता है?
बंगाल में हिंसा के बाद शाह का दौरा
पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा के बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पहली बार बंगाल के दो दिवसीय दौरे पर आ रहे हैं. शाह 14 और 15 को बंगाल में रहेंगे और विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होने के साथ बीरभूम के सिउड़ी में एक जनसभा को संबोधित करेंगे.
शाह अपने रैली में बंगाल हिंसा का जिक्र कर सकते हैं और रिपोर्ट को लेकर ममता सरकार पर भी निशाना साध सकते हैं. 2024 लोकसभा चुनाव के पहले बीजेपी इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश में दिख रही है.
हालांकि, इन दंगों को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी है. बीजेपी ने मामले की NIA जांच को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की है. वहीं, ममता बनर्जी ने हिंसा के बाद इसके लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया था, जिसके बाद पार्टी ने आरोपों का खंडन किया था.
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