ईरान से तेल आयात को लेकर अमेरिकी बैन पर गुरुवार को भारत ने एक बार फिर कहा है कि राष्ट्रहित में जो भी जरूरत होगी, उसे किया जाएगा. ईरान के उप राजदूत मसूद रेजवानियन राहागी ने मंगलवार को कहा था कि अमेरिकी बैन के मद्देनजर अगर भारत ईरानी तेल के आयात में कटौती करता है तो भारत ‘ विशेष लाभ ' को खो देगा. राहागी के बयान पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि उनके बयान को ‘ गलत तरीके से पेश ' किया गया और ईरानी पक्ष ने इस मामले में एक सफाई जारी की है.
ईरान ने अपनी सफाई में क्या कहा?
ईरानी दूतावास ने बुधवार को जारी एक वक्तव्य में कहा था कि वो भारत को सुरक्षित तेल आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए अपनी तरफ से सर्वश्रेष्ठ कोशिश करेगा. उसने कहा कि वो भारत के लिए भरोसेमंद ऊर्जा भागीदार रहा है. कुमार ने कहा, ‘‘ भारत के लिये ईरान ऊर्जा और संपर्क के लिये अहम भागीदार है. ईरानी दूतावास के स्पष्टीकरण में काफी चीजें साफ की गई हैं. इसे रिपोर्ट किया गया, इसे गलत तरह से पेश किया गया और उन्होंने सोचा कि इसे साफ करने की जरूरत है. उन्होंने हमारे रुख को समझा है और हमारा उनके साथ प्रगाढ़ संबंध है. ''
उन्होंने कहा कि ईरान और अमेरिका, चीन, फ्रांस, जर्मनी, रूस और ब्रिटेन के बीच परमाणु करार से अमेरिका के हटने समेत कई मुद्दों पर भारत ईरान के साथ संपर्क में है.
क्या अमेरिका ने भारत से संपर्क की कोशिश की है?
ये पूछे जाने पर कि क्या ईरान से आयात में कटौती के मुद्दे पर अमेरिका ने भारत से संपर्क करने की कोशिश की है तो इसपर कुमार ने कहा , ‘‘ उन्होंने संकेत दिया था. दरअसल , अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने एक बयान दिया था कि वे संपर्क करने का प्रयास करेंगे या वो इस मामले पर कई देशों के साथ चर्चा करने को तैयार है. उन्होंने भारत का खास जिक्र नहीं किया था. '' उन्होंने कहा , ‘‘ हम ऐसे संवाद का स्वागत करते हैं. हमने इसपर गौर किया है. हम देखेंगे कि हमें इसपर क्या जरूरी कदम उठाने की आवश्यकता है. एक चीज बिल्कुल साफ है कि हमारे राष्ट्रीय हित में जो भी जरूरी होगा , उसे किया जाएगा. ''
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, जुलाई, 2015 में ईरान और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 5 स्थाई सदस्यों के बीच न्यूक्लियर समझौता हुआ था. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ओबामा ने समझौते के तहत ईरान को परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के बदले में बैन से राहत दी थी. लेकिन मई, 2018 में ईरान पर ज्यादा दबाव बनाने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ये समझौता तोड़ दिया. अब ट्रंप ने ईरान में कारोबार कर रही विदेशी कंपनियों को निवेश बंद करने के लिए कहा है. अमेरिका भारी जुर्माने की भी धमकी दे रहा है.
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