चंद्रयान-2 के लैंडर ‘विक्रम' को 'प्रोपल्शन सिस्टम' का इस्तेमाल करते हुए निचली कक्षा में लाने के बाद बुधवार को चंद्रमा के और नजदीक ले जाया गया, जहां से यह आखिरकार नीचे की ओर आगे बढ़ते हुए शनिवार तड़के चांद की सतह पर ऐतिहासिक ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करेगा. अनगिनत सपनों को अपने साथ लेकर गए ‘चंद्रयान-2’ के चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरने के साथ ही रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत वहां ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने वाला दुनिया का चौथा और चंद्रमा के अनदेखे दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा.
चांद के अनदेखे इलाके में उतरने वाला दुनिया का पहला देश होगा भारत
इसरो के मुताबिक चंद्रयान-2 का लैंडर चांद के उस क्षेत्र में उतरेगा जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंचा है. ये क्षेत्र चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र है. इसका मकसद चंद्रमा के बारे में ऐसी अहम जानकारी जुटाना. ऐसी खोज करना है, जिनसे भारत के साथ पूरी दुनिया को फायदा होगा. इस मिशन के परीक्षणों और अनुभवों के आधार पर ही आने वाले समय में चांद पर जाने वाले दूसरे मिशन की तैयारी में जरूरी बदलाव होंगे. इससे भविष्य के लूनर मिशन में अपनाई जाने वाली नई टेक्नोलॉजी को बनाने और उन्हें तय करने में मदद मिलेगी.
‘विक्रम’ को कक्षा से निकाल कर नीचे लाने का काम सात सितंबर को रात एक से दो बजे के बीच किया जाएगा और इसके बाद यह रात एक बजकर 30 मिनट से दो बजकर 30 मिनट के बीच चंद्रमा की सतह पर उतरेगा. इसरो अध्यक्ष के. सिवन ने कहा कि चंद्रमा पर लैंडर के उतरने का क्षण ‘‘दिल की धड़कनों को थाम देने वाला’’ होगा क्योंकि एजेंसी ने पहले ऐसा कभी नहीं किया है.
चंद्रमा की सतह पर उतरने के बाद ‘विक्रम’ के भीतर से रोवर ‘प्रज्ञान’ सात सितंबर की सुबह साढ़े पांच बजे से साढ़े छह के बीच बाहर निकलेगा और एक चंद्र दिवस की अवधि (धरती के 14 दिन के बराबर) तक चंद्रमा की सतह पर रहकर वैज्ञानिक प्रयोग करेगा.
चांद की सतह पर क्या खोजेंगे 'विक्रम' और 'प्रज्ञान'
चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम जहां उतरेगा, उस जगह पर यह जांचेगा कि चांद पर भूकंप आते है या नहीं. वहां थर्मल और लूनर डेनसिटी कितनी है. रोवर 'प्रज्ञान' चांद के सतह की रासायनिक जांच करेगा. यह उस जगह के तापमान और वातावरण में आद्रता की जांच करेगा. चांद पर पानी होने के सबूत तो चंद्रयान 1 ने खोज लिए थे, लेकिन चंद्रयान-2 से यह पता लगाया जा सकेगा कि चांद की सतह और उपसतह के कितने भाग में पानी है.
इसरो ने बताया कि यहां बेंगलुरु में स्थित इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) में मिशन ऑपरेशन कॉम्प्लेक्स से ‘ऑर्बिटर’ और ‘लैंडर’ की स्थिति पर लगातार नजर रखी जा रही है. इस काम में ब्याललु स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (आईडीएसएन) की मदद ली जा रही है.
बता दें कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर अगले एक साल तक चांद की कक्षा में चक्कर लगाता रहेगा. इसमें आठ वैज्ञानिक उपकरण हैं जो चंद्रमा की सतह की मैपिंग करेंगे और पृथ्वी के प्राकृतिक उपग्रह के बाहरी परिमंडल का अध्ययन करेंगे. ‘लैंडर’ के साथ तीन उपकरण हैं जो चांद की सतह और उप सतह पर वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे. वहीं, ‘रोवर’ के साथ दो उपकरण हैं जो चंद्रमा की सतह के बारे में जानकारी जुटाएंगे.
इसरो ने अपने सबसे शक्तिशाली लॉन्चिंग रॉकेट जीएसएलवी मार्क- 3 एम 1 के जरिए 3,840 किलोग्राम वजनी चंद्रयान-2 को इस साल 22 जुलाई को लॉन्च किया था. इस योजना पर 978 करोड़ रुपये की लागत आई है.
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