वाह जी वाह... रेलवे के सफाई अभियान के लिए और क्या कहें. रेलवे यात्रियों की सेहत के लिए इतना मेहरबान हुआ है कि एसी कोच में मिलने वाला कंबल जो 60 दिन में एक बार धोया जाता था अब 30 दिन में दो बार धोया जाएगा.
आपके लिए इस जानकारी को और डिकोड कर देता हूं. यात्रीगण ध्यान दें सफर में आप जिस कंबल साफ सुथरा समझकर भरोसे के साथ इस्तेमाल करते हैं वो 15 दिन में सिर्फ एक बार धुलेगा. हालांकि रेलवे ये अहसान जता सकता है कि उसने सफाई का स्तर चार गुना बढ़ा दिया है. पहले 60 दिन में एक बार धोते थे और अब 30 दिन में दो बार धोएंगे.
लेकिन ये संदेश एसी कोच के यात्रियों के लिए खास है. रेलवे ने ये नहीं बताया है कि वो धोने में ऐसे कौन से कैमिकल या डिटर्जेंट का इस्तेमाल करेगा जिससे एक बाद धुलने के बाद 15 दिन तक कंबल साफ सुथरा बैक्टीरिया फ्री बना रहेगा.
बार-बार एक ही आदेश क्यों देती है रेलवे
रेलवे बोर्ड के मुताबिक कंबल के मटेरियल में बदलाव किया है. ट्रेनों के ऐसी डिब्बों में ऊनी कंबलों की जगह अच्छे क्वॉलिटी वाले नायलॉन और ऊनी मिक्स कंबल मिलेंगे. रेलवे के सभी जोन को ये भी कहा गया है कि कंबल साफ सुथरे और गंदे दाग से मुक्त होने चाहिए. लेकिन 15 दिन में एक बार धुलाई से इस आदेश का पालन कैसे होगा ये पहेली तो रेलवे ही जाने.
अभी रेलवे के एक कंबल की लाइफ चार साल होती है. लेकिन अब 2 साल का ही टेंडर होगा. योजना से जुड़े रेल मंत्रालय के एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक, अभी इस्तेमाल होने वाले भारी ऊनी कंबल की कीमत 400 रुपये है. कंबल की कीमत पिछले 10 सालों में नहीं बदली नहीं है. इसलिए बदले गए नियम के बाद अब इसकी लागत ज्यादा होने की उम्मीद है.
एसी फर्स्ट क्लास को राहत, सेकेंड और थर्ड की हालत एक जैसी
रेलवे को देश भर में अपने एसी कोच में सफर करने वाले यात्रियों के लिए रोजाना 3.90 लाख कंबलों की जरूरत होती है.
ऐसी फर्स्ट वालों के लिए तो थोड़ी राहत भी है क्योंकि ऐसी फर्स्ट क्लास में एक बार इस्तेमाल करने के बाद कंबल का कवर बदल दिया जाता है, लेकिन यह सुविधा ऐसी सेकंड और थर्ड क्लास के यात्रियों के लिए नहीं है.
कैग ने लगाई थी फटकार
सरकारी संस्था सीएजी ने साल 2017 में संसद में पेश की गई रिपोर्ट में रेलवे को कंबल की धुलाई समय पर नहीं करने के लिए जमकर लताड़ लगाई थी.
रेलवे ने उस वक्त बताया था कि एसी कोच में इस्तेमाल कंबल 60 दिन में दो बार धोया जाता है. इसके बारे इस बात की आशंका जताई थी कि इस तरह के कंबल के इस्तेमाल से बीमारी फैलने का खतरा होता है. रेलवे ने बाद में सुझाव दिया था कि वो सफाई का स्तर बढ़ाएगा लेकिन अभी भी हालात सुधरे नहीं हैं.
इस बीच ये चर्चा भी चल पड़ी है कि रेलवे एसी कोच का तापमान 19 डिग्री के बजाय 24 डिग्री करने का मन बना रही है, ताकि यात्रियों को कंबल की जरूरत ही न पड़े. यानी कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.
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