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तेल का बिल घटाने के पूरे नहीं हुए मोदी सरकार के अरमान,बढ़ा खर्च

तेल महंगा होने की वजह से देश में डॉलर का खजाना खाली होता जा रहा है

Published
भारत
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कच्चे तेल के आयात पर भारत की निर्भरता बढ़ती जा रही है. आयात में कटौती पर जोर देने के बावजूद अंतरराष्ट्रीय बाजारों से तेल की खरीद बढ़ रही है. देश में तेजी से बढ़ती तेल की मांग और स्थानीय उत्पादन में ठहराव की वजह से पिछले एक साल में तेल आयात निर्भरता लगभग 84 फीसदी पर पहुंच गई है. यानी भारत अब अपनी जरूरत का 84 फीसदी तेल बाहर से मंगा रहा है.

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पीएम नरेंद्र मोदी कई बार तेल के लिए आयात पर निर्भरता घटाने की अपील कर चुके हैं. 2015 में उन्होंने कहा था 2013-14 तक भारत अपनी जरूरत का 77 फीसदी तेल आयात करता था. हम 2022 में इसे घटा कर 67 फीसदी पर लाना चाहते हैं.

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लगातार बढ़ती जा रही है देश में तेल की खपत

2015-16 में भारत अपनी जरूरत का 80.6 फीसदी तेल बाहर से मंगाता था. लेकिन अगले साल ये बढ़ कर 81.7 फीसदी हो गया. 2015-16 में देश की तेल खपत 18.47 करोड़ टन थी. 2016-17 में यह 19.46 करोड़ टन हो गई. 2018-19 में यह बढ़ कर 21.16 करोड़ टन पर पहुंच गई. दूसरी ओर, देश में तेल उत्पादन लगातार घटता गया. 2015-16 में देश में कच्चे तेल का उत्पादन 3.69 करोड़ टन था. लेकिन 2016-17 में यह घट कर 3.6 करोड़ टन हो गया. 2017-18 में यह घट कर 3.57 करोड़ रह गया.

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PPAC के मुताबिक भारत ने 2018-19 में तेल आयात पर 111.9 अरब डॉलर खर्च किए. 2017-18 में 87.8 अरब डॉलर खर्च किए गए थे. जबकि 2015-16 में तेल आयात बिल 64 अरब डॉलर का था. साफ है कि तेल आयात बिल लगातार बढ़ रहा है. इसका मतलब यह है कि बढ़ता आयात हमारे पास मौजूद डॉलर के खजाने में सेंध लगा रहा है.  
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इस साल और बढ़ेगा तेल आयात बिल

मौजूदा वित्त वर्ष यानी 2019-20 में तेल आयात बढ़ कर 23.30 करोड़ टन रहने का अनुमान है.आयात बिल बढ़ कर 112.7 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है. भारत समेत कई देशों पर ईरान से तेल मंगाने की अमेरिकी पाबंदी वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम बढ़ गया है. महंगे तेल ने भारत के आयात बिल पर दबाव और बढ़ा दिया है.

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