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MP: मुस्लिम प्रिंसिपल पर ‘देश विरोधी’ किताब रखने के आरोप खारिज, जिनकी नौकरी गई उनका क्या?

Indore: लॉ कॉलेज के तीन गेस्ट फैकल्टी- आमिक खोखर, डॉ फिरोज अहमद मीर और सुहैल अहमद वाणी को नौकरी से निकाल दिया गया था.

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मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के इंदौर (Indore) के एक लॉ कॉलेज के 'मुस्लिम' प्रिंसिपल पर कॉलेज की लाइब्रेरी में ‘देश विरोधी’ किताब रखने, मुसलमान शिक्षकों की भर्ती करने और ‘लव जिहाद’ को बढ़ावा देने के आरोप लगे थे. जिसकी वजह से प्रिंसिपल को निलंबित कर दिया गया था. अब करीब डेढ़ साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन आरोपों को खारिज कर दिया है.

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देश की सर्वोच्च अदालत ने इंदौर स्थित न्यू लॉ कॉलेज (Indore Law College) के तत्कालीन प्रिंसिपल इनामुर्रहमान के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 14 मई को अपना फैसला सुनाते हुए दर्ज FIR को "बेतुका" करार दिया है.

बता दें कि इस मामले में कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल इनामुर्रहमान और प्रोफेसर डॉ. मिर्जा मोजिज बैग को निलंबित किया गया था. दोनों अभी भी निलंबित हैं. वहीं तीन अन्य गेस्ट फैकल्टी- आमिक खोखर, डॉ फिरोज अहमद मीर और सुहैल अहमद वाणी को नौकरी से निकाल दिया गया था.

लॉ कॉलेज के प्रभारी प्रिंसिपल नरेंद्र देव ने 10 दिसंबर 2022 को आदेश जारी करते हुए तीनों गेस्ट फैकल्टी को धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने, सरकार की नीतियों की सोशल मीडिया पर आलोचना करने, विवादित विषय वस्तु पढ़ाने सहित कई अन्य आरोपों के आधार पर नौकरी से निकाल दिया था. इसके साथ ही तीनों को मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग के संस्थानों से ब्लैक लिस्ट भी कर दिया गया था.

इसको लेकर क्विंट हिंदी ने लॉ कॉलेज के प्रभारी प्रिंसिपल से फोन पर बातचीत की और उनसे पूछा कि क्या तीनों गेस्ट फैकल्टी के खिलाफ लगे आरोप साबित हुए थे? तो उन्होंने फोन किसी दूसरे शख्स को पकड़ा दिया. उस शख्स ने प्रभारी प्रिंसिपल से बात करके कॉल बैक करने का आश्वासन दिया, लेकिन उधर से कॉल नहीं आया और बाद में फोन भी स्विच ऑफ कर दिया गया.

प्रभारी प्रिंसिपल की ओर से जवाब का इंतजार है. जैसे ही जवाब आता है, उसे कॉपी में अपडेट किया जाएगा.

क्या है पूरा मामला?

साल 2019 में देवास से ट्रांसफर होकर न्यू लॉ कॉलेज इंदौर आए इनामुर्रहमान और कॉलेज के अन्य प्रोफेसर पर दिसंबर 2022 की शुरुआत में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) सहित अन्य हिंदू संगठन के सदस्यों ने लव जिहाद, धार्मिक कट्टरता और सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने सहित कई गंभीर आरोप लगाए. छात्र संघ ने मामले को लेकर खूब हंगामा किया और ज्ञापन सौंपा.

ABVP ने न्यू लॉ कॉलेज की लाइब्रेरी में मौजूद डॉक्टर फरहत खान की किताब सामूहिक हिंसा एवं दाण्डिक न्याय पद्धति (Collective Violence and Criminal Justice System) पर 'देश विरोधी' और 'हिंदू विरोधी' होने का आरोप लगाते हुए इंदौर के भंवरकुआ थाने में शिकायत दर्ज कराई.

पुलिस ने तत्कालीन प्रिंसिपल इनामुर्रहमान, प्रोफेसर मिर्जा मोजिज, लेखक डॉक्टर फरहत खान और अमर लॉ पब्लिकेशन के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया.

सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में एक अतिरिक्त महाधिवक्ता को पेश करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "यह उत्पीड़न का मामला लगता है. याचिकाकर्ता को परेशान करने में दिलचस्पी है. हम आईओ (जांच अधिकारी) के खिलाफ नोटिस जारी करेंगे."

पीठ ने सुनवाई के दौरान जोर देकर कहा कि "FIR को पढ़ने से पता चलता है कि यह एक बेतुकेपन के अलावा और कुछ नहीं है." उक्त टिप्पणियों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने FIR और आपराधिक कार्रवाई को रद्द करने का फैसला सुनाया.

क्विंट हिंदी से बातचीत में कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल इनामुर्रहमान ने कहा,

"31 मई 2024 को मेरा रिटायरमेंट हो रहा है, एक शिक्षक अपने स्टूडेंट के लिए ही जीता है. जैसे ही उनके बीच रिश्ता खत्म होता है टीचर के पास खोने को कुछ नहीं बचता. आज के वक्त में सुप्रीम कोर्ट जाना इतना आसान नहीं है. फाइनेंशियल तौर पर भी काफी समस्याएं आती हैं, जिसके लिए संघर्ष करना पड़ता है. मैं अब तक दो बार सुप्रीम कोर्ट गया हूं जो मेरे लिए आसान नहीं था."
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"मेरे अंडर 30 हिंदू और सिर्फ दो मुस्लिम स्टूडेंट ने PhD की है"

इनामुर्रहमान के घर का हर सदस्य उच्च शिक्षा हासिल करके अच्छे पदों पर है. इनामुर्रहमान की पत्नी रिटायर्ड डिस्ट्रिक्ट जज हैं. वहीं उनके बेटे-बहू जज के सम्मानित पदों पर कार्यरत हैं. बेटी डॉक्टर हैं और दामाद असिस्टेंट प्रोफेसर. इनामुर्रहमान बताते हैं कि जब यह घटना हुई तो उनके साथ उनके परिवार के सभी सदस्य हैरान थे.

"मेरे साथ जो कुछ भी हुआ उसने सिर्फ मुझे ही नहीं बल्कि मेरे पूरे परिवार को हिलाकर रख दिया. अगर मेरा थोड़ा बहुत भी फॉल्ट या गलती होती तो बात अलग थी, लेकिन बेवजह मुझे फंसाया गया तो बहुत दुख होता है. मेरे 36 साल के करियर में मुझे आज तक कोई कारण बताओ नोटिस तक जारी नहीं हुआ. लेकिन रिटायरमेंट के करीब आते-आते मुझ पर लव जिहाद, धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने और अन्य गंभीर आरोप लगाए गए. मेरे अंडर में 32 लोगों ने PhD की है, जिसमें 30 हिंदू और सिर्फ दो ही मुस्लिम हैं."
इनामुर्रहमान

प्रिंसिपल ने आगे कहा, "इन सब चीजों के अलावा मैं ज्यूडिशियल सर्विसेज में शोध करता रहा हूं और मैंने हजारों जज एमपी और अन्य राज्य को दिए हैं. अगर मेरे अंदर जरा भी पक्षपात की भावना होती तो वो कहीं न कहीं तो सामने आती."

प्रोफेसर ने आरोपों से किया इंकार

FIR में दर्ज आरोपों को खारिज करते हुए इनामुर्रहमान कहते हैं कि जिन मुस्लिम प्रोफेसरों की नियुक्ति के आरोप उनपर लगाए जाते हैं वह झूठे हैं.

"मुझ पर जनभागीदारी के माध्यम से 2 प्रोफेसर और एक नियमित प्रोफेसर की नियुक्ति के आरोप लगाए गए हैं, वह सरासर गलत है. क्योंकि मेरी नियुक्ति के पहले से ही वह सभी यहां मौजूद थे. वहीं एक और नियमित प्रोफेसर मिर्जा मोजिज शासकीय परीक्षा उत्तीर्ण करके ज्वाइन हुए थे. मैंने किसी को नहीं नियुक्त किया."

उन्होंने आगे कहा कि छात्रों ने जब कॉलेज में हंगामा किया था तो दबाव के चलते सभी लोगों को मामले पर चल रही पांच दिवसीय जांच के दौरान कॉलेज आने से मना कर दिया गया, लेकिन जब मामले पर सरकार की जांच बैठी तो स्टाफ मेंबर को हटा ही दिया गया.

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छात्रों ने क्यों की शिकायत?

नौकरी से निकाले गए फैकल्टी के बारे में इनामुर्रहमान बताते हैं, "मेरे खिलाफ प्रदर्शन करने वाले छात्रों में वे शामिल थे, जिन्होंने कॉलेज की फीस जमा नहीं की थी, और इन लोगों पर मैंने सख्ती दिखाई थी. यह लोग बड़े संगठन से जुडे़ थे, इसलिए यह मेरे ऊपर पहले से नियुक्त मुस्लिम टीचरों को हटाने का दबाव बनाने लगे. इन टीचरों की कभी कोई मौखिक या लिखित शिकायत तक दर्ज नहीं हुई थी."

प्रोफेसर ने उस किताब का भी जिक्र किया जिसको आधार बनाकर छात्रों ने शिकायत की थी. उन्होंने कहा, "लाइब्रेरी में रखी हुई किताब को मुद्दा बनाया गया जबकि वह किताब मेरे कॉलेज में आने से पहले ही खरीदी गई थी."

"छात्रों के ज्ञापन और शिकायतों के आधार पर मैंने जांच दल गठित किया, जिसमें रिटायर्ड जज को भी शामिल किया. तीनों प्रोफेसरों को 5 दिन के लिए कॉलेज से दूर रखा, लेकिन इसी बीच शासन ने अपना जांच दल नियुक्त किया और उन्हें परमानेंट नौकरी से हटा दिया गया. मेरे खिलाफ कार्रवाई की गई, मुझपर दबाव बनाकर इस्तीफा लिया गया."
इनामुर्रहमान

इसके साथ ही उन्होंने कहा, "जिस किताब को लेकर FIR दर्ज हुई, उसके लेखक और पब्लिशर को 41 का नोटिस देकर छोड़ दिया गया. हाईकोर्ट से हमारी अग्रिम जमानत याचिका खारिज होने के बाद हम पर गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी. जिसके बाद हम सुप्रीम कोर्ट गए. शीर्ष अदालत ने हमारी गिरफ्तारी पर रोक लगाई और हाल ही में कोर्ट ने FIR को रद्द करने का आदेश सुनाया."

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ABVP ने दर्ज कराई FIR, क्या कहते हैं दूसरे छात्र?

क्विंट हिंदी की टीम ने मामले को बेहतर तौर पर समझने के लिए कॉलेज के अन्य छात्रों से बात की. सेकंड ईयर के एक छात्र ने कहा, "कॉलेज के प्रोफेसर और प्राचार्य पर जो आरोप लगाए गए थे उनमें कोई सच्चाई नहीं है, न ही किसी किताब के लिए दबाव बनाया गया और न ही किसी के लिए भेदभाव नजर आया. जहां तक मैंने इन सब चीजों को देखा है, उनके खिलाफ जो हुआ वो सही नहीं था."

वहीं, इंदौर लॉ कॉलेज की एक पूर्व छात्रा बताती है,

"प्रिंसिपल सर पर जो भी आरोप लगाए गए हैं उनमें से एक भी मुझे सही नहीं लगा. सर के ऊपर जब इस तरह के आरोप लगे तो भोपाल से टीम जांच के लिए आई थी. उस वक्त सर के समर्थन में लगभग 100 से अधिक स्टूडेंट्स थे."

इसके साथ ही वे कहती हैं कि "उस प्रश्नावली की भी जांच होनी चाहिए, क्योंकि प्रश्नावली को ऐसे डिजाइन किया गया था जो एक तरफा लग रही थी."

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब इस मामले में प्रदेश सरकार की ओर से गठित जांच कमेटी पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.

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