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INS Vikrant: भिलाई से स्टील,कोलकाता से केबल-पूरे देश से सामान पहुंचा कोच्चि

INS विक्रांत का निर्माण कोचिन शिपयार्ड लिमिटेड ने किया है. शुक्रवार को इसे भारतीय नौसेना में शामिल किया गया.

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भारतीय नौसेना (Indian Navy) को अपना दूसरा एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत (INS Vikrant) मिल गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने शुक्रवार को कोच्चि में INS विक्रांत को नौसेना में कमीशन किया. INS विक्रांत के नौसेना में शामिल होने से हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की ताकत और बढ़ गई है.

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2000 के दशक की शुरुआत से 2022 में इसकी कमीशनिंग तक, INS विक्रांत एक अखिल भारतीय प्रयास की कहानी है. यह भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक औद्योगिक निर्माण की कहानी है. जिसमें देश के अलग-अलग शहरों, कंपनियों और कर्मचारियों ने अपना योगदान दिया है.

INS विक्रांत: आत्मनिर्भर भारत की कहानी

IAC के डिजाइन और निर्माण को सरकार ने जनवरी 2003 में औपचारिक रूप से मंजूरी दी गई थी और फरवरी 2009 में इसका निर्माण शुरू हुआ.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कोचिन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL) के निदेशक (संचालन) श्रीजीत के नारायणन कहते हैं कि, “13 साल की ये यात्रा संतोषजनक होने के साथ ही चुनौतीपूर्ण भी रही है. यह अब तक का पहला युद्धपोत है जिसे हमने बनाना शुरू किया था. डिजाइन सबसे बड़ी चुनौती थी. पहले एक डिफेंस शिप बनाने की प्लानिंग थी. लेकिन नौसेना की बदलती जरूरतों और देश की आकांक्षाओं को देखते हुए एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने का फैसला किया गया."

इसके साथ ही उन्होंने बताया कि, “2007 और 2009 के बीच, हमें स्टील की भारी कमी महसूस हुई, जो रूस से आने वाली थी. हमने स्वदेशी रूप से स्टील का उत्पादन करने का फैसला किया. डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड ने मिलकर युद्धपोत-ग्रेड स्टील का डिजाइन तैयार किया. अब इसका उपयोग भारत में निर्मित सभी युद्धपोतों के लिए किया जा रहा है. इस परियोजना ने देश को युद्धपोत-ग्रेड स्टील के संबंध में आत्मनिर्भर बनाया है."

“यह आत्मनिर्भरता की भी यात्रा है. CSL ने भारत भर में 550 विभिन्न कंपनियों के साथ काम करते हुए एक एग्रीगेटर की भूमिका निभाई. यह एक ऐसी कहानी भी है जो चुनौतियों का सामना करते हुए भारतीय प्रतिभा और इनोवेशन का जश्न मनाती है."
श्रीजीत के नारायणन, निदेशक (संचालन), CSL

पूरे देश के सहयोग से बना INS विक्रांत

INS विक्रांत के लिए स्टील ओडिशा के राउरकेला, झारखंड के बोकारो और छत्तीसगढ़ के भिलाई में सेल के प्लांट से आया है. मुख्य स्विच बोर्ड, स्टीयरिंग गियर और वाटर-टाइट हैच का निर्माण लार्सन एंड टुब्रो द्वारा मुंबई और पुणे में तालेगांव में किया गया है. पुणे में किर्लोस्कर समूह के प्लांट में उच्च क्षमता वाले एयर कंडीशनिंग और रेफ्रिजरेशन सिस्टम का निर्माण किया गया है. वहीं बेस्ट एंड क्रॉम्पटन, चेन्नई द्वारा बड़ी संख्या में पंपों की आपूर्ति की गई है.

भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL) ने इंटीग्रेटेड प्लेटफॉर्म मैनेजमेंट सिस्टम (IPMS) सप्लाई किया है. गुजरात के Elecon से INS विक्रांत के विशाल गियरबॉक्स आए हैं. कोलकाता के निक्को समूह ने मुख्य रूप से सैकड़ों किलोमीटर लंबे इलेक्ट्रिक केबलों की आपूर्ति की है. वहीं जहाज की एंकर चेन केबल का निर्माण कोलकाता में किया गया है.

INS विक्रांत के निर्माण में 76 फीसदी चीजें भारत में ही बनीं हैं. देश के कुछ प्रमुख औद्योगिक घरानों से लेकर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) में पार्ट्स का निर्माण हुआ है. INS विक्रांत के स्वदेशीकरण के प्रयासों के परिणामस्वरूप कई सहायक उद्योगों का विकास हुआ है. इसके अलावा लगभग 2,000 CSL कर्मियों और सहायक उद्योगों में अनुमानित 13,000 कर्मचारियों के लिए रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं.

INS विक्रांत को लगभग 20,000 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया है. नौसेना के मुताबिक 80 से 85 फीसदी लागत भारतीय अर्थव्यवस्था में वापस लौट गई है.

INS विक्रांत की क्या हैं खासियत?

INS विक्रांत 262 मीटर लंब और 61.6 मीटर चौड़ा है. इसका डेक दो बड़े फुटबॉल मैदान जिताना बड़ा है. इसमें 30 जंगी विमान और हेलीकॉप्टर रखे जा सकते हैं. 45 हजार टन के डिस्प्लेसमेंट वाला विक्रांत 28 नॉट यानी 52 KM/H की रफ्तार से समंदर पर दौड़ सकता है.

इसके साथ ही इस जहाज में 2200 कंपार्टमेंट में हैं जिसमें महिलाओं के लिए स्पेशल केबिन भी शामिल हैं और इसमें 1700 जवान एक साथ सवार हो सकते हैं. विक्रांत में 16 बेड का अस्पताल भी है.

अमेरिका, यूके, रूस, चीन और फ्रांस के बाद भारत भी अब उन शीर्ष देशों की सूची में शामिल हो गया है, जिनमें स्वदेशी तकनीक से एयरक्राफ्ट कैरियर को बनाने की क्षमता है.

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