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39 भारतीयों के जिंदा होने का क्यों दिया झूठा दिलासा,विपक्ष का सवाल

इतने सालों से सरकार झूठी उम्मीदें क्यों देती रही कि लापता भारतीय जीवित हो सकते हैं.

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भारत
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4 साल तक सरकार 'ना-ना' करती रही और अब मान लिया कि इराक के मोसुल में लापता 39 भारतीयों का इस्लामिक स्टेट ने कत्ल कर दिया.

इराक में जब आतंकवादी संगठन आईएसआईएस नरसंहार कर रहा था, उस समय वहां करीब 10,000 भारतीय काम कर रहे थे. उनमें से कुछ मोसुल के एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में भी काम करते थे.

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बात जून 2014 की है, जब दुर्भाग्य से भारत सरकार को पता चला कि मोसुल में आईएस का कब्जा हो गया है. उस कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करने वाले 40 भारतीयों को बंधक बना लिया गया. उनमें से एक हरजीत मसीह किसी तरह अपहर्ताओं के चंगुल से भाग निकला और उसने भारत पहुंचकर सरकार को बताया कि 39 भारतीयों की चार साल पहले मौत हो गई.

लेकिन भारत सरकार ने उसके बयान पर भरोसा नहीं किया. विदेश मंत्री ने तो एक-दो मौकों पर ये भी कहा कि लापता भारतीयों के जीवित होने के कुछ जगह से सुराग मिले हैं. मारे गए भारतीयों के परिवार वालों का कहना है कि सरकार उन्हें दिलासा देती रही कि लोग जीवित हैं. लेकिन संसद में सुषमा स्वराज ने चार साल बाद 39 भारतीयों के मारे जाने की पुष्टि कर दी है. विदेश मंत्री ने कहा सभी लोगों का डीएनए टेस्ट कराकर पुष्टि कर ली गई है.

सरकार ने संसद में ऐलान किया, लेकिन हैरान करने वाली और बहुत हद तक असंवदेनशील बात है कि मौत की घोषणा से पहले परिवार वालों को इसकी सूचना नहीं दी गई.

जब मामले पर बवाल मचा, तो बयान आया कि चूंकि संसद सत्र में है, इसीलिए ऐलान संसद के पटल पर ही किया गया, बाहर नहीं.

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सरकार क्यों दे रही थी झूठी उम्मीदें?

सुषमा स्वराज ने कहा, ''मैंने वादा किया था कि जैसे ही लापता लोगों के बारे में कोई सूचना मिलेगी, तो मैं सबसे पहले संसद को बताऊंगी.'' विदेश मंत्री का दावा है कि जब संसद चल रही हो, तो वो संसद की परंपराओं की अनदेखी कैसे कर सकती थीं. लेकिन विपक्ष ने सरकार के तौर-तरीके पर नाराजगी जताई है.

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि इतने सालों से सरकार झूठी उम्मीदें क्यों देती रही कि लापता भारतीय जीवित हो सकते हैं.

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पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने भी दुख और शोक जताया है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मारे गए भारतीयों के परिवारों के प्रति संवेदना जताई है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट करके दुख जताया है. मोदी ने ट्वीट में कहा कि हर भारतवासी मोसुल में जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों के साथ हैं.

पीएम मोदी ने कहा, ''विदेश मंत्रालय और मेरी सहयोगी सुषमा स्वराज और वीके सिंह ने मोसुल में जान गंवानों वालों को सुरक्षित लाने की पूरी कोशिश की थी.''

सुषमा स्वराज ने संसद को बता दिया कि डीएनए के जरिए 38 लोगों की पहचान कर दी गई है. सिर्फ 1 की पहचान बाकी है. लेकिन परिवार वालों को इसकी सूचना पहले नहीं दी, जबकि डीएनए के सैंपल उनसे लिए गए थे. सरकार ने यह प्लान बन गया है कि मृतक के अवशेषों को देश के कोने में कैसे पहुंचाया जाएगा...

विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह विशेष विमान से इराक जाएंगे, जहां से पार्थिव शरीर लेकर विमान सीधे अमृतसर या जालंधर उतरेगा. इनमें पंजाब के 27 लोग हैं, इसलिए इसे सबसे पहले सीधे अमृतसर या जालंधर ले जाया जाएगा. हिमाचल के 4 लोगों के शव भी उतारे जाएंगे. इसके बाद विमान पटना जाएगा, क्योंकि उनमें 6 बिहार के लोग हैं. बाद में विमान कोलकाता पहुंचेगा, वहां के 2 लोग हैं.

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मारे गए लोगों के परिजनों के गुस्से पर सुषमा ने कहा कि उनका गुस्सा स्वाभाविक है. उन्‍होंने कहा, ‘’मैंने उन्हें कभी अंधेरे में नहीं रखा. मैंने हमेशा कहा था कि जीवित होने के या मौत के सबूत नहीं हैं, इसलिए जांच का इंतजार किया.’’

दरअसल मोसुल को पिछले साल जुलाई में आईसीस के चंगुल से इराकी सेना ने छुड़ाया. उसके बाद सर्च ऑपरेशन में मोसुल के पास बदूसा गांव में मृतक भारतीयों के गड़े शव मिले. इराकी अधिकारियों को पता चला कि बदूसा गांव में सैकड़ों लोगों को मारकार गाड़ा गया था.

उसके बाद से अवशेषों की शिनाख्त शुरू हुई, डीएनए टेस्ट हुआ और अब उन अवशेषों को भारत लाया जाएगा. लेकिन इस सबमें सरकार के एक्शन प्लान पर सवाल तो उठते ही हैं.

ये भी पढ़ें- इराक में 39 भारतीयों की मौत पर PM मोदी ने जताया दुख

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