ADVERTISEMENTREMOVE AD

J&K: 2019 चुनाव से पहले PDP कट्टर एजेंडे की तरफ वापसी कर रही है? 

गठबंधन के मिडटर्म में, सीएम मुफ्ती बीजेपी को क्या संदेश देना चाहती हैं?

Updated
भारत
4 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

जम्मू-कश्मीर में वित्त मंत्री हसीब द्राबू की बर्खास्तगी ने बीजेपी और पीडीपी गठबंधन की सरकार पर सवाल खड़े कर दिए हैं. बर्खास्तगी के बाद बीजेपी आलाकमान ने भी जम्मू-कश्मीर के अपने नेताओं को दिल्ली तलब किया. दरअसल, हसीब द्राबू ही वो शख्स हैं जिन्होंने बीजेपी सेक्रेटरी राम माधव के साथ मिलकर इस गठबंधन की नींव रखने में अहम रोल निभाया था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

गठबंधन पर सवालिया निशान के उभरने की कई वजहें हैं. हाल के घटनाक्रम को देखें तो सीएम महबूबा मुफ्ती खुलकर कई मुद्दों पर बीजेपी का विरोध करती नजर आई हैं.

कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन के 3 साल हो चुके हैं. साल 2019 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. 2020 में राज्य में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. माना जा रहा है कि चुनावी मौसम नजदीक आते ही मुफ्ती गठबंधन के न्यूनतम साझा कार्यक्रम के एजेंडे को छोड़कर अपने कोर कट्टर एजेंडे की राजनीति की तरफ वापस आना चाहती हैं.

0

हसीब द्राबू की बर्खास्तगी

पीडीपी में द्राबू (57) की हैसियत वरिष्ठ नेता की थी. साल 2015 में जम्मू-कश्मीर के वित्तमंत्री बने द्राबू को पीडीपी की कोर टीम का हिस्सा माना जाता रहा है. धारा 370 के तहत राज्य के पास विशेष दर्जा होने के बावजूद उन्होंने बीजेपी सरकार की जीएसटी योजना को लागू करवाने में भी बड़ी भूमिका निभाई.

कई सालों से पार्टी के साथ बने रहे वरिष्ठ नेता को एक विवादित बयान पर नोटिस दिए जाने के 24 घंटे के भीतर आनन-फानन में निकाला जाना सवाल खड़े कर रहा है. द्राबू का खुद कहना है कि उनको हटाने का फैसला स्तब्ध करने वाला था.

उन्होंने कहा था-

जम्मू-कश्मीर को राजनीतिक मसले की तरह नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि ये एक ऐसा समाज है जो अपनी सामाजिक समस्याओं से जूझ रहा है. 

जबकि पीडीपी मानती है कि जम्मू कश्मीर एक राजनीतिक मुद्दा है और इसका समाधान भी राजनीतिक तौर से ही निकलना है.

मुफ्ती के इस कदम से उनकी मजबूत और कड़े फैसले लेने वाली पार्टी हेड की इमेज बनी है. गठबंधन से नाराज जनता के बीच खोई राजनीतिक जमीन हासिल करने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा सकता है.

गठबंधन के मिडटर्म में, सीएम मुफ्ती बीजेपी को क्या संदेश देना चाहती हैं?
पीडीपी में द्राबू (57) की हैसियत वरिष्ठ नेता की थी.
(फाइल फोटो: IANS)
ADVERTISEMENTREMOVE AD

शोपियां केस ने की सियासत गर्म

जनवरी 2018 में शोपियां फायरिंग केस में सेना के जवानों और मेजर आदित्य पर एफआईआर के बाद भी पीडीपी और बीजेपी के बीच तनातनी हो गई. घाटी में इसे लेकर तनाव काफी बढ़ गया और सेना के खिलाफ कई विरोध-प्रदर्शन हुए.

विधानसभा में बीजेपी ने एफआईआर में से मेजर का नाम हटाने की मांग की थी. बीजेपी का कहना था कि इससे सेना का मनोबल गिरेगा. लेकिन सीएम महबूबा मुफ्ती ने इसे खारिज कर दिया. और कहा था कि जांच को तार्किक नतीजे तक पहुंचाया जाएगा.

महबूबा ने सदन में कहा था, ये एक दुर्भाग्‍यपूर्ण घटना है. लेकिन आर्मी का मनोबल सिर्फ एक एफआईआर से नहीं गिरेगा. सेना में भी दागी मौजूद हैं.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मेजर आदित्य के खिलाफ सभी जांच पर रोक लगा दी है. मामले में अगली सुनवाई अब 24 अप्रैल को होनी है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कठुआ रेप केस को लेकर भी रार ठनी

इस बीच कठुआ में हुए 8 साल की मुस्लिम बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या की घटना पर भी सियासत जारी है.

जनवरी 2018 में 8 साल की बच्ची को अगवा कर पहले तो उसके साथ बलात्कार किया गया फिर उसकी हत्या कर दी गई थी. इस मामले में एक एसपीओ दीपक खजुरिया को गिरफ्तार किया गया है.

महबूबा मुफ्ती सरकार ने 23 जनवरी को बच्ची को अगवा कर हत्या करने के मामले की जांच के आदेश दिए थे और मामले को राज्य पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंप दिया था. जबकि बीजेपी राज्य सरकार के कानून-प्रशासन पर सवाल उठाते हुए इस मामले में सीबीआई जांच की मांग कर रही है.

खबरों के मुताबिक 2 बीजेपी नेताओं ने हिंदू एकता मंच की रैली में हिस्सा लिया था. ये रैली सीबीआई जांच की मांग को लेकर निकाली गई थी. साथ ही ये भी मांग की गई थी कि फिलहाल खजुरिया पर लगे रेप मामले वापस ले लिए जाएं. लेकिन महबूबा मुफ्ती ने सिरे से इस मांग को खारिज कर दिया.

उन्होंने इसे लेकर ट्वीट भी किया.

कुछ लोग कठुआ केस को लेकर गलतफहमी पैदा कर रहे हैं. जांच को लेकर किसी भी गलतफहमी की गुंजाइश नहीं है. कोर्ट की देखरेख में एक बहुत ही सक्षम पुलिस प्राधिकरण इस मामले की जांच कर रही है. किसी भी रैली या अभियुक्त के समर्थन में प्रदर्शन अनैतिक है.

बता दें, हिंदू एकता मंच के हेड विजय कुमार शर्मा बीजेपी के स्टेट कमेटी मेंबर हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इन तमाम ताजा घटनाक्रम को देखते हुए लग रहा है कि भले ही राज्य में 2015 में बनी बीजेपी-पीडीपी गठबंधन अपने मिडटर्म में हो पर कहीं मंझधार में ना फंस जाए. दोनों पार्टियां कई मुद्दों को लेकर आमने-सामने विपक्ष के तौर पर खड़ी नजर आ रही है.

खासतौर पर सीएम महबूबा मुफ्ती के बयान और ट्विटर के जरिए लोगों तक इन मुद्दों पर मजबूती से अपनी बात पहुंचाने की कवायद सिग्नल दे रही है कि गठबंधन का अस्तित्व खतरे में है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×