Jammu and Kashmir Election Results 2024: जम्मू-कश्मीर में अगली सरकार किसकी होगी? इस सवाल का जवाब हमें मंगलवार, 8 अक्टूबर को वोटों की काउंटिंग से साथ मिल जाएगा. आर्टिकल 370 हटाए जाने और जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा छीने जाने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव हुए हैं. एग्जिट पोल्स में नेशनल कांन्फ्रेस और कांग्रेस का गठबंधन सरकार बनाने की रेस में सबसे आगे दिख रहा है लेकिन बहुमत के लिए दूसरों की मदद लेनी पड़ सकती है.
चाहे सरकार कोई भी बनाए, अहम सवाल है कि राज्य का दर्जा खोने के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पास क्या शक्तियां होंगी? यहां बॉस मुख्यमंत्री होगा या केन्द्र द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल? आपको सारे जवाब इस एक्सप्लेनर में देते हैं.
न पुलिस हाथ में न अधिकारी.. जम्मू-कश्मीर की नई सरकार कितनी पावरफुल, असली बॉस कौन?
1. जम्मू-कश्मीर: अब राज्य नहीं केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा
अगस्त 2019 के संविधान संशोधन ने जम्मू और कश्मीर से राज्य का दर्जा ले लिया गया. जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 लाकर दो केंद्रशासित प्रदेश बना.
बिना विधायिका वाला केंद्रशासित प्रदेश: लद्दाख
विधायिका के साथ केंद्रशासित प्रदेश: जम्मू और कश्मीर
आम राज्य की विधानसभाएं राज्य सूची और समवर्ती सूची, दोनों पर कानून बना सकती हैं. लेकिन केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा की विधायी शक्तियां कहीं कम होती हैं. भारत के आठ केंद्र शासित प्रदेशों में से केवल तीन के पास अपनी विधानसभाएं हैं- दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर.
Expand2. जम्मू-कश्मीर विधानसभा की शक्तियां कम कैसे हैं?
एक बात सबसे पहले ख्याल में रखना जरूरी है कि संसद की तरह विधानसभा का काम कानून बनाना है. केंद्र सरकार की तरह राज्य (UT) सरकार का काम है उन कानूनों को लागू कराना. अगर विधानसभा की शक्तियां कम की जाएंगी तो खुद-ब-खुद राज्य (UT) सरकार की शक्तियां कम हो जाती हैं.
अब वापस आते हैं केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर पर.
1947 के विलय पत्र के अनुसार, जम्मू-कश्मीर के लिए भारत की शक्तियां रक्षा, विदेशी मामलों और संचार तक ही सीमित थीं. आगे जब अनुच्छेद 370 लाया गया तो तब भी संसद के पास जम्मू-कश्मीर के संबंध में सीमित विधायी शक्तियां थीं. वक्त बीतने के साथ जम्मू-कश्मीर के मामले में केंद्र की कानून बनाने की शक्ति को बढ़ाने के लिए संघ सूची में कई अन्य विषयों को शामिल किया गया.
हालांकि जब अनुच्छेद 370 निरस्त करके 2019 में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लाया गया तो नयी गवर्नेंस व्यवस्था लागू हुई. इसके तहत जम्मू-कश्मीर की विधानसभा के शक्ति को सीमित कर दिया गया और उपराज्यपाल की भूमिका कहीं पावरफुल हो गई.
उदाहरण के लिए
जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम का सेक्शन 32(1): यहां कि विधानसभा संविधान की 7वीं अनुसूची में दी गई राज्य सूची के विषयों में से “लोक व्यवस्था” और “पुलिस” से जुड़े कोई कानून नहीं बना सकती.
जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम का सेक्शन 36: यहां कि विधानसभा को किसी भी वित्त विधेयक यानी फाइनेंसियल बिल लाने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होगी. इस प्रावधान का बहुत महत्व है क्योंकि हर नीतिगत निर्णय इस केंद्र शासित प्रदेश के लिए वित्तीय दायित्व पैदा कर सकता है और इस तरह से उसे वित्त विधेयक के रुप में लाना पड़ सकता है.
जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम का सेक्शन 35: अगर संसद के बनाए किसी कानून और जम्मू-कश्मीर विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी कानून में असंगति होती है तो संसद के कानून ही प्रभावी होंगे, भले ही संसद के कानून पहले बने हों या बाद में.
Expand3. जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल ज्यादा पावरफुल कैसे?
दिल्ली और गोवा की तरह केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में अपना विधानसभा होगा और यहां भी उपराज्यपाल की शक्तियां अहम होंगी.
1. अगर जम्मू-कश्मीर की विधानसभा ने अपने अधिकार क्षेत्र वाले विषयों पर भी बिल पास किया हो तो भी कानून बनने से पहले केंद्र द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल की अंतिम मंजूरी की आवश्यकता होगी. उपराज्यपाल उसे वापस विधानसभा को लौटा सकता है और अगर दूसरी बार भी बिना परिवर्तन के बिल उसके पास आता है तो वह मंजूरी देने के लिए बाध्य नहीं है जबकि एक आम राज्य के मामले मे राज्यपाल को दूसरी बार आए बिल को मंजूरी देनी ही पड़ती है.
लेकिन जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की धारा 38 में उपराज्यपाल को यह पावर है कि वह विधानसभा द्वारा दूसरी बार पारित होने के बाद भी बिल को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर दे. इसी तरह, अधिनियम की धारा 39 को देखें तो किसी बिल पर राष्ट्रपति की सहमति या असहमति देने की कोई समय सीमा नहीं है.
2. जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के सेक्शन 53 के अनुसार प्रशासनिक अधिकारियों जैसे ऑल इंडिया सर्विस और एंटी करप्शन ब्यूरो के मामले में उपराज्यपाल अपने विवेक से काम करेगा. साथ ही विधानसभा की परिधि से बाहर के विषयों पर भी उपराज्यपाल को अपने विवेक से काम करने की शक्ति दी गई है.
यानी पब्लिक ऑर्डर, पुलिस से लेकर अधिकारियों की नियुक्ति तक की शक्ति उपराज्यपाल के हाथों में दी गई है.
3. जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन कानून के अनुसार गृह मंत्रालय की सलाह के आधार पर उपराज्यपाल विधानसभा में 5 सदस्यों को नामित करेंगे. हालांकि कानून में यह नहीं बताया गया है कि ये मनोनित विधायक सरकार बनाने में भूमिका निभाएंगे या नहीं.
4. साथ ही जिन मामलों में उपराज्यपाल को अपने विवेक से फैसला लेने का अधिकार है उसमें उपराज्यपाल का फैसला आखिरी होगा. उसपर यह सवाल नहीं उठाया जा सकता कि उसने अपने विवेक से फैसला लिया है या नहीं. इस सवाल को लेकर कोर्ट नहीं जा सकते कि क्या मंत्रियों ने राज्यपाल को कोई सलाह दी है और दी है तो क्या दी है.
5. चुनाव की तैयारियों के बीच उपराज्यपाल की शक्तियों का और विस्तार किया गया, जिससे उन्हें महाधिवक्ता (अटॉर्नी जनरल) और लॉ ऑफिसर्स की नियुक्ति करने का अधिकार मिल गया.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Expand
जम्मू-कश्मीर: अब राज्य नहीं केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा
अगस्त 2019 के संविधान संशोधन ने जम्मू और कश्मीर से राज्य का दर्जा ले लिया गया. जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 लाकर दो केंद्रशासित प्रदेश बना.
बिना विधायिका वाला केंद्रशासित प्रदेश: लद्दाख
विधायिका के साथ केंद्रशासित प्रदेश: जम्मू और कश्मीर
आम राज्य की विधानसभाएं राज्य सूची और समवर्ती सूची, दोनों पर कानून बना सकती हैं. लेकिन केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा की विधायी शक्तियां कहीं कम होती हैं. भारत के आठ केंद्र शासित प्रदेशों में से केवल तीन के पास अपनी विधानसभाएं हैं- दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर.
जम्मू-कश्मीर विधानसभा की शक्तियां कम कैसे हैं?
एक बात सबसे पहले ख्याल में रखना जरूरी है कि संसद की तरह विधानसभा का काम कानून बनाना है. केंद्र सरकार की तरह राज्य (UT) सरकार का काम है उन कानूनों को लागू कराना. अगर विधानसभा की शक्तियां कम की जाएंगी तो खुद-ब-खुद राज्य (UT) सरकार की शक्तियां कम हो जाती हैं.
अब वापस आते हैं केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर पर.
1947 के विलय पत्र के अनुसार, जम्मू-कश्मीर के लिए भारत की शक्तियां रक्षा, विदेशी मामलों और संचार तक ही सीमित थीं. आगे जब अनुच्छेद 370 लाया गया तो तब भी संसद के पास जम्मू-कश्मीर के संबंध में सीमित विधायी शक्तियां थीं. वक्त बीतने के साथ जम्मू-कश्मीर के मामले में केंद्र की कानून बनाने की शक्ति को बढ़ाने के लिए संघ सूची में कई अन्य विषयों को शामिल किया गया.
हालांकि जब अनुच्छेद 370 निरस्त करके 2019 में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लाया गया तो नयी गवर्नेंस व्यवस्था लागू हुई. इसके तहत जम्मू-कश्मीर की विधानसभा के शक्ति को सीमित कर दिया गया और उपराज्यपाल की भूमिका कहीं पावरफुल हो गई.
उदाहरण के लिए
जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम का सेक्शन 32(1): यहां कि विधानसभा संविधान की 7वीं अनुसूची में दी गई राज्य सूची के विषयों में से “लोक व्यवस्था” और “पुलिस” से जुड़े कोई कानून नहीं बना सकती.
जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम का सेक्शन 36: यहां कि विधानसभा को किसी भी वित्त विधेयक यानी फाइनेंसियल बिल लाने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होगी. इस प्रावधान का बहुत महत्व है क्योंकि हर नीतिगत निर्णय इस केंद्र शासित प्रदेश के लिए वित्तीय दायित्व पैदा कर सकता है और इस तरह से उसे वित्त विधेयक के रुप में लाना पड़ सकता है.
जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम का सेक्शन 35: अगर संसद के बनाए किसी कानून और जम्मू-कश्मीर विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी कानून में असंगति होती है तो संसद के कानून ही प्रभावी होंगे, भले ही संसद के कानून पहले बने हों या बाद में.
जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल ज्यादा पावरफुल कैसे?
दिल्ली और गोवा की तरह केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में अपना विधानसभा होगा और यहां भी उपराज्यपाल की शक्तियां अहम होंगी.
1. अगर जम्मू-कश्मीर की विधानसभा ने अपने अधिकार क्षेत्र वाले विषयों पर भी बिल पास किया हो तो भी कानून बनने से पहले केंद्र द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल की अंतिम मंजूरी की आवश्यकता होगी. उपराज्यपाल उसे वापस विधानसभा को लौटा सकता है और अगर दूसरी बार भी बिना परिवर्तन के बिल उसके पास आता है तो वह मंजूरी देने के लिए बाध्य नहीं है जबकि एक आम राज्य के मामले मे राज्यपाल को दूसरी बार आए बिल को मंजूरी देनी ही पड़ती है.
लेकिन जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की धारा 38 में उपराज्यपाल को यह पावर है कि वह विधानसभा द्वारा दूसरी बार पारित होने के बाद भी बिल को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर दे. इसी तरह, अधिनियम की धारा 39 को देखें तो किसी बिल पर राष्ट्रपति की सहमति या असहमति देने की कोई समय सीमा नहीं है.
2. जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के सेक्शन 53 के अनुसार प्रशासनिक अधिकारियों जैसे ऑल इंडिया सर्विस और एंटी करप्शन ब्यूरो के मामले में उपराज्यपाल अपने विवेक से काम करेगा. साथ ही विधानसभा की परिधि से बाहर के विषयों पर भी उपराज्यपाल को अपने विवेक से काम करने की शक्ति दी गई है.
यानी पब्लिक ऑर्डर, पुलिस से लेकर अधिकारियों की नियुक्ति तक की शक्ति उपराज्यपाल के हाथों में दी गई है.
3. जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन कानून के अनुसार गृह मंत्रालय की सलाह के आधार पर उपराज्यपाल विधानसभा में 5 सदस्यों को नामित करेंगे. हालांकि कानून में यह नहीं बताया गया है कि ये मनोनित विधायक सरकार बनाने में भूमिका निभाएंगे या नहीं.
4. साथ ही जिन मामलों में उपराज्यपाल को अपने विवेक से फैसला लेने का अधिकार है उसमें उपराज्यपाल का फैसला आखिरी होगा. उसपर यह सवाल नहीं उठाया जा सकता कि उसने अपने विवेक से फैसला लिया है या नहीं. इस सवाल को लेकर कोर्ट नहीं जा सकते कि क्या मंत्रियों ने राज्यपाल को कोई सलाह दी है और दी है तो क्या दी है.
5. चुनाव की तैयारियों के बीच उपराज्यपाल की शक्तियों का और विस्तार किया गया, जिससे उन्हें महाधिवक्ता (अटॉर्नी जनरल) और लॉ ऑफिसर्स की नियुक्ति करने का अधिकार मिल गया.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)