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पूर्व DSP दविंदर: J&K पुलिस-आतंकियों की ‘साठगांठ’ का कच्चा चिट्ठा

दावा है कि दविंदर इस्लामाबाद में संगठन के शीर्ष अधिकारियों के संपर्क में भी था.

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1989-90 का दौर था. जिस वक्त त्राल के रहने वाले दविंदर सिंह जम्मू-कश्मीर पुलिस सेवा में शामिल हाे रहे थे. उसी वक्त शोपियां का कॉन्स्टेबल मोहम्मद शफी मीर आतंकवाद की ओर से कदम बढ़ा रहा था. वह जमात-ए-इस्लामी का सदस्य था और हिजबुल मुजाहिदीन के फाउंडर मेंबर में से भी एक था. वह कश्मीर के उन 56 पुलिस जवानों में शामिल था, जिन्होंने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर जाकर गुरिल्ला ट्रेनिंग ली थी. वे लोग वहां से हथियार और गोला बारूद लेकर वापस जम्मू-कश्मीर लौटे थे.

चीफ कमांडर मास्टर अहसान डार के अंदर काम करते हुए शफी मीर को शबनम कोडनेम दिया गया था. उसे पुलवामा में पहला डिस्ट्रिक्ट कमांडर बनाया गया.

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दविंदर और दूसरे आरोपियों के खिलाफ अगले 10 दिन में चार्जशीट

इसके 30 साल बाद, 11 जनवरी 2020, अब दविंदर रैंक में सीनियर हो चुका था और जल्द ही प्रमोशन पाकर पुलिस अधीक्षक (एसपी) बनने वाला था. लेकिन अचानक नाटकीय ढंग से वह काजीगुंद के मीर बाजार में जम्मू-कश्मीर पुलिस के हत्थे चढ़ गया। उसके साथ शफी मीर (शबनम) का बेटा इरफान, सैयद नावेद मुश्ताक (एक भगौड़ा सिपाही, जो आतंकी बन गया था) और आरिफ को गिरफ्तार किया गया. ये लोग कार से श्रीनगर से जम्मू की ओर जा रहे थे. उनके घरों और ठिकानों पर छापे मारे गए.

यहां से कई और लोगों की गिरफ्तारी हुई और हथियारों, गोला-बारूद को जब्त किया गया. कई खुलासे और संवदेनशील जानकारियों के मद्देनजर मामले की जांच एनआईए को सौंप दी गई.

उच्च-पदस्थ सूत्रों ने क्विंट से बताया है कि एनआईए ने मामले की जांच पूरी कर ली है. दविंदर और उसके साथियों के खिलाफ अगले 10 दिन में जम्मू की एनआईए कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी जाएगी.

कानून के तहत, एनआईए को गिरफ्तार लोगों के खिलाफ 180 दिन के अंदर यानी 13 जुलाई 2020 से पहले चालान दाखिल करना है.

लालच में डूब गया था दविंदर

इस मामले में आला अधिकारी कहते हैं, "हमारे सामने केस पानी की तरह साफ है. दविंदर सिंह के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं. वह लंबे समय से आतंकवादियों के साथ शामिल था. हमारी चार्जशीट में पुलिस में शामिल कुछ भ्रष्ट लोगों और जम्मू-कश्मीर के आतंकी नेटवर्क के बीच दशकों पुराने और जड़ों से गहरे संबंधों का खुलासा होगा. इस खास केस में फैसले को लेकर हमें कोई शक नहीं है."

अधिकारियों ने बताया, "उसका किसी भी राजनीतिक विचारधारा पर यकीन नहीं था. सिर्फ पैसे को मानता था. अंत में टाेयाटा फॉर्च्युनर कार के लिए उसका लालच ही उसके लिए काल बन गया." अधिकारी बताते हैं कि कैसे 2018-19 में दविंदर ने जम्मू के सैनिक कॉलोनी और चावड़ी में आतंकी नावेद के लिए सुरक्षित आवास की व्यवस्था की. इसके लिए उसे 7 लाख रुपए मिले थे.

जनवरी 2020 में, दविंदर ने टोयोटा फॉर्च्यूनर और कैश के लिए इरफान और नावेद के साथ डील की.

अधिकारियों ने इस बात पर जोर देकर कहा कि इस तरह की सारी खुफिया डील और गुप्त ऑपरेशन दविंदर के खुद किए हुए हैं. इसमें राज्य और केंद्रीय एजेंसियां शामिल नहीं थीं और ना ही उन्होंने ऐसी हरकतें करने के आदेश दिए थे.

दविंदर की पाक उच्चायोग और हिजबुल तक पहुंच

कई लोगों और तकनीक की मदद से एनआईए ने दविंदर के खिलाफ सबूत इकट्‌ठा किए. एजेंसी ने दावा किया कि दविंदर ना सिर्फ कश्मीर में हिजबुल मुजाहिदीन के लोगों और इस्लामाबाद में संगठन के शीर्ष अधिकारियों के संपर्क में था. बल्कि वह नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग के अधिकारियों से भी जुड़ा था। शुरुआत में इरफान द्वारा उसकी पहचान उनसे हुई थी. लेकिन बाद में वह खुद WhatsApp के जरिए नई दिल्ली और इस्लामाबाद में अपने संपर्कों के साथ बातचीत करने लगा.

एनआईए के अंदरूनी सूत्रों ने मुदस्सर इकबाल चीमा की पहचान की है. यह 2015-16 में पाकिस्तानी उच्चायोग में दविंदर का मुख्य संपर्ककर्ता था. 2018-19 में दविंदर पाकिस्तानी उच्चायोग की कश्मीर डेस्क पर शफकत जटोई के संपर्क में था. 

एनआईए को ये भी पता चला कि इरफान ने तीन मंजिला घर में गुप्त ठिकाना बनाया था. जहां पर नावेद और अन्य आतंकी छिपते थे. इरफान का ये घर शोपियां में उसके गांव दायरू में था. दविंदर को इस बात की जानकारी थी कि इरफान ने पाकिस्तानी उच्चायोग की मदद से नई दिल्ली से इस्लामाबाद तक की यात्रा एक ट्रैक-2 ग्रुप की आड़ में की थी. वहां इस्लामाबाद के बर्मा टाउन में आईएसआई-हिजबुल गेस्ट हाउस में ठहरा था. वह करीब पांच बार पाकिस्तान का दौरा कर चुका है.

अधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, इरफान शोपियां और पुलवामा में यूथ सेमिनार ऑर्गेनाइज करता था. पाकिस्तानी उच्चायोग से पैसा मिलने के बाद उसने दो से तीन सेमिनार साउथ कश्मीर में भी किए थे. यहां उसने हिजबुल कैडर की भर्ती में अहम भूमिका निभाई. उसने खुलासा किया कि इरफान पाक उच्चायोग के अधिकारियों के साथ और पाकिस्तान और पीओके में कई लोगों के संपर्क में था.

सूत्रों ने बताया कि उनके पास पुख्ता सबूत हैं कि पाकिस्तान में आईएसआई के लोग और हिजबुल मुजाहिदीन के शीर्ष अधिकारी उससे जुड़े थे. उसके हौसले इतने बुलंद थे कि दविंदर भी जिस फोन का इस्तेमाल करता था, उसका डेटा डिलीट नहीं करता था. उसे बिल्कुल भी डर नहीं था कि वाे पकड़ा जाएगा.
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J&K में काउंटर-टेरर ऑपरेशंस में दविंदर का ट्रैक रिकॉर्ड

दविंदर को जम्मू-कश्मीर पुलिस का सबसे भरोसमंद ऑफिसर माना जाता था. उसने खुद अपनी पोस्टिंग आतंकियों से निपटने वाले पहले ग्रुप में कराई थी, जिसे स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) कहा जाता है. इस फोर्स को 1994-95 में पुलिस महानिदेशक एमएन सभरवाल ने बनाया था. एसटीफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) में रहते हुए वह कई काउंटर टेररिज्म ऑपरेशन का हिस्सा बना.

अफजल गुरु की उस बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा, जो उसने दिल्ली तिहाड़ जेल से अपने वकील को एक खत में लिखी थी. इसमें दावा किया गया कि जैश-ए-मोहम्मद के दिसंबर 2001 में संसद हमले से पहले दविंदर ने अफजल से पाकिस्तानी आतंकी मोहम्मद के लिए घर और गाड़ी की व्यवस्था करने के लिए पूछा था.

दविंदर सिंह श्रीनगर एयरपोर्ट पर जम्मू-कश्मीर पुलिस की एंटी हाइजैकिंग विंग में डीएसपी के तौर पर तैनात था. वह 2019 से ही शोपियां की पुलिस के रडार पर आ चुका था. इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस से जाहिर हो चुका था कि दविंदर के कई संदिग्ध लोगों से लिंक थे. वह साउथ कश्मीर में इरफान और कॉन्स्टेबल रह चुके आतंकी नावेद के भी संपर्क में था.

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इरफान का पिता साल 1993 में मारा गया था

इरफान ने पुणे से बीए, एलएलबी किया. उसके बाद सात महीने पुलवामा जिला कोर्ट में कानूनी प्रैक्टिस की. उसने सैकंड हैंड कारों को बेचने-खरीदने का बिजनेस भी किया. इरफान का पिता जमात-ए-इस्लामी का प्रमुख कार्यकर्ता और पहला डिस्ट्रिक्ट कमांडर था. 1989 में पुलिस की नौकरी छोड़ने के बाद वह आतंकी बन गया. लेकिन काफी समय तक वह पाकिस्तानी उच्चायोग को अपने भरोसे में नहीं ले पाया था.

पुलिस छोड़ने के बाद इरफान का पिता शबनम कई बार पाकिस्तान गया था और 1989, 1990 और 1993 में गुरिल्ला ट्रेनिंग के लिए कई रिक्रूटमेंट ग्रुप को लीड भी किया. उसने नौगांव सेक्टर में पहली बार घुसपैठ की कोशिश की थी, जब शबनम के ग्रुप के 89 आतंकी सेना के साथ भीषण एनकाउंटर में मार गए.

तकरीबन 80 आतंकी मारे गए. बीते 30 साल में एनकाउंटर में मारे गए आतंकियों की ये सबसे बड़ी संख्या थी. इसमें इरफान का पिता शबनम भी मारा गया.

जुलाई 2018 में बड़गाम की बात है. कॉन्स्टेबल नावेद अपने साथ चार इंसास राइफल लेकर चांदपुर में फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया वेयरहाउस पर अपनी पोस्ट से फरार हो गया था. बाद में वह हिजबुल मुजाहिद्दीन में शामिल हो गया. उसे बड़गाम में हथियार और गोला-बारूद दिए गए थे. इतना ही नहीं लेह में उसके पुलिस ऑफिसर ने लिखा था कि नावेद को निगरानी में रखा जाना चाहिए. वह अपने साथ मारे गए आंतकियों के शव शोपियां से अपने गांव नाजनीनपुरा ले जाता था. इतना ही नहीं, पुलिस ड्यूटी के दौरान वह आजादी और पाकिस्तान समर्थित नारे लगाता था.

दविंदर का गैंग पुलिस रडार पर कैसे आया

साल 2019 के आखिर की बात है. शोपियां पुलिस ने हिजबुल मुजाहिदीन के एक वर्कर को गिरफ्तार किया. उसके खुलासों पर इरफान के फोन टेप किए जाने लगे. इंटरसेप्ट से पता चला कि एक अज्ञात शख्स फोन के दूसरी ओर कश्मीरी में बात कर रहा है, लेकिन उसके बात करने का लहजा पंजाबी है. उसकी लोकेशन श्रीनगर एयरपोर्ट ट्रेस की गई.

जांच में खुलासा हुआ कि एक सिख ऑफिसर प्रोटोकॉल में तैनात है, जबकि दूसरा सिख एंटी-हाईजैकिंग में तैनात है. बाद में पुलिस को पता चला कि प्रोटोकॉल में तैनात सिख ऑफिसर तीन महीनों की छ़ुट्‌टी पर है. यानी उस वक्त वह श्रीनगर एयरपोर्ट पर नहीं था. लिहाजा शक की सुई एंटी हाईजैकिंग में तैनात दूसरे सिख ऑफिसर दविंदर सिंह की तरफ घूम गई. जिसके चलते दविंदर के आधिकारिक नंबर 9419075390 को टेप किया गया.

11 जनवरी 2020 यानी गिरफ्तार होने से तीन दिन पहले इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस से पता चला कि दविंदर शाेपियां में है. पुलिस टीम ने सादे कपड़ों में उसकी गाड़ी का पीछा किया. दविंदर को एक जगह से इरफान और नावेद को संभवत: टुकरू के अंग्रेजी मीडियम स्कूल से उठाते हुए देखा गया. उस दिन ट्रैफिक जाम की वजह से पुलिस दविंदर की गाड़ी का पीछा नहीं कर पाई. लेकिन पुलिस काे उसके शनिवार को जम्मू जाने के प्लान के बारे में पता चल गया था. पुलिस ने एसपी एंटी-हाईजैकिंग से उसका अटेंडेंस रजिस्टर चैक किया. इसमें दविंदर छुट्‌टी पर मिला. उसके सारे फोन बंद थे, लेकिन लगातार निगरानी की जा रही थी.

पम्पोर में कहीं, उसने ट्रैफिक पुलिस ऑफिसर को बुलाने की गलती की. इसमें वह इस बात को सुनिश्चित कर रहा था कि उसके साथी टोयाटा आई-20 से जम्मू जा रहे हैं, उन्हें ना रोका जाए.

उस दिन श्रीनगर-जम्मू ट्रैफिक के कारण हाईवे बंद था. दविंदर ने बहाना बनाया कि उसकी मां बीमार है और अपने कुछ दोस्तों के साथ जम्मू जा रहा है. इसके बाद ट्रैफिक पुलिस ऑफिसर ने उसे जाने दिया.

दविंदर कैसे पकड़ा गया

दविंदर को पकड़ने के लिए साउथ कश्मीर में पुलिस उपमहानिरीक्षक अतुल कुमार गोयल ने प्लान बनाया. पुलिस ने दविंदर और उसकी गाड़ी की पहचान के लिए बिजबेहरा के पास संगम में एक नाका लगाया. काजीगुंद में मीर बाजार में उसे और उसके साथियों को हिरासत में लेने के लिए दूसरा नाका लगाया गया. पहले नाका में दविंदर की गाड़ी की पहचान की गई. फिर उसे रोका गया और हिरासत में ले लिया. यहां दविंदर की डीआईजी के साथ गर्मागर्म बहस भी हुई. उसने बहाना बनाया कि वह एजेंसी की ओर से अंडर कवर ऑपरेशन पर है.

हिरासत में लिए गए लोगों से पूछताछ की गई. पता चला कि कॉन्स्टेबल से आंतकी बना नावेद हिजबुल मुजाहिदीन के चीफ ऑफ ऑपरेशन्स के तौर पर काम रहा था.

इंदिरा नगर के कैंट एरिया में दविंदर के घर पर छापा मारा गया. यहां से हथियार और गाेला-बारूद को जब्त किया गया. ये घर श्रीनगर में सेना की 15 कोर के मुख्यालय के नजदीक है.

दविंदर पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत काजीगुंद पुलिस स्टेशन में एफआईआर नंबर 05/2020 दर्ज की गई. पहले उसे नौकरी से निलंबित किया गया. बाद में सभी सम्मान वापस लेने के बाद उसे बर्खास्त भी कर दिया गया. मामले की जांच एनआईए के हवाले की गई. एजेंसी ने अपनी जम्मू शाखा में हिरासत में लिए लोगों के खिलाफ एफआईआर नंबर 01/2020 दर्ज की.

जल्द ही दविंदर का बैच एसपी रैंक का होने वाला था. लेकिन यूटी गृह विभाग में कुछ औपचारिकताओं के कारण प्रक्रिया में देरी हुई. दविंदर अपने एसपी बनने का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उसने अपनी वर्दी और अशोक चिह्न भी तैयार कर लिए थे. एक मार्च को पहली बार वह कस्टडी में रो पड़ा था, जब उसे पता चला कि उसके बैच के सभी साथियों को 28 फरवरी को एसपी के तौर पर प्रमोशन मिल गया है.

(लेखक श्रीनगर स्थित पत्रकार हैं. उनसे @ahmedalifayyaz पर संपर्क किया जा सकता है)

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