Jhansi Hospital Fire: उत्तर प्रदेश के झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के नवजात गहन चिकित्सा यूनिट (NICU) यानी नवजात बच्चों के ICU में लगी आग की वजह से 12 मासूमों की दर्दनाक मौत हो चुकी है. राजकोट से झांसी तक, हर बार शहर बदलते हैं, महीने बदलते हैं, अपने बच्चों को खोने वाले माता-पिता की भाषाएं बदलती हैं, सरकारी मुआवजे की रकम बदलती है लेकिन मासूमों की जान निगलते आगजनी की घटनाओं को रोकने में विफल सरकारी सिस्टम पर उठते सवाल ज्यों के त्यों बने रहते हैं?
क्या झांसी के जिस NICU में आगजनी की घटना हुई उसकी क्षमता केवल 18 बच्चों को संभालने की थी लेकिन उसमें 51 बच्चों को भर्ती कराया गया?
क्या NICU वार्ड में एक्सपायर हो चुके फायर एक्सटिंग्विशर लगे थे?
NICU वार्ड में आपातकालिन स्थिति में बाहर निकलने के पर्याप्त रास्ते थे?
क्या एडमिशन जालसाजी के आरोप में पुलिस के हत्थे चढ़ चुका व्यक्ति ही मेडिकल कॉलेज का चीफ मेडिकल सुपरिंटेंडेंट है?
क्या स्थानीय हॉस्पिटल प्रशासन ने इस दुखद घड़ी में भी संवेदनशीलता नहीं दिखाई?
एक-एक कर जवाब खोजने की कोशिश करते हैं.
क्या NICU में क्षमता से कहीं अधिक बच्चे एडमिट थे?
झांसी में सरकारी महारानी लक्ष्मी बाई मेडिकल कॉलेज के बच्चों के ICU वार्ड पर उसकी क्षमता से कहीं अधिक बोझ था. इसमें अभी केवल 18 नवजात शिशुओं को रखा जा सकता था, लेकिन शुक्रवार की रात लगी आग के समय इसमें 49 नवजात भर्ती थे. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इस मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. एनएस सेंगर ने बताया कि अन्य जगहों पर इलाज की महंगी होने के कारण दूर-दूर के क्षेत्रों से लोग इस हॉस्पिटल में आते हैं.
क्षमता से कहीं अधिक बोझ होने की वजह से यह बहुत हद तक संभव है कि NICU में लगे जीवनरक्षक उपकरण लगातार चल रहे थे. इसपर ओवरलोडिंग से स्पार्किंग हुई और आग लगी.
खास बात यह है कि इस हॉस्पिटल में एक नया 51-बेड वाला NICU वार्ड बनाया गया है लेकिन यह अभी चालू नहीं हुआ था. नए NICU वाली बिल्डिंग उस बिल्डिंग के ठीक बगल में स्थित है जहां आग लगी थी. रिपोर्ट के अनुसार अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. सचिन माहौर ने बताया कि इस नए वार्ड का निर्माण लगभग दो साल पहले शुरू हुआ था.
न्यूज18 ने इस साल जनवरी में एक रिपोर्ट छापी थी जिसमें बताया गया था कि महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में नया नीकू वार्ड बनाया जा रहा है. रिपोर्ट के अनुसार इस वार्ड का काम 70% से अधिक पूरा हो गया था और फरवरी के अंत तक यह कार्य पूरा हो जाने की संभावना जताई गई थी.
NICU वार्ड के नोडल अधिकारी और बाल रोग डिपार्टमेंट के हेड डॉ. ओम शंकर चौरसिया ने भी तब कहा था कि एक महीने में यह नया वार्ड शुरू हो जाएगा. लेकिन 10 महीने से अधिक गुजर जाने के बाद भी यह शुरू नहीं हो सका.
क्या NICU वार्ड में एक्सपायर हो चुके फायर एक्सटिंग्विशर लगे थे?
कई परिजनों ने आरोप लगाया है कि घटना के वक्त NICU वार्ड में मौजूद आग बुझाने वाले फायर एक्सटिंग्विशर काम नहीं कर रहे थे. क्विंट से बात करते हुए एक परिजन, विकास अरिवार ने दावा किया है कि वार्ड में आग लगने के बाद उन्होंने वहां मौजूद फायर एक्सटिंग्विशर का उपयोग करने की कोशिश की लेकिन वह खाली था. इसके बाद उन्हें बगल में मौजूद महिला वार्ड से फायर एक्सटिंग्विशर लाना पड़ा.
क्विंट हिंदी को घटनास्थल से मिले वीडियो में दिख रहा है कि कुछ फायर एक्सटिंग्विशर को आखिरी बार 2019 और 2022 में रिफिल किया गया था और ये 2023 में एक्सपायर हो चुके थे.
दूसरी तरफ मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ नरेंद्र सिंह सेंगर ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया है कि मौके पर फायर एक्सटिंग्विशर काम नहीं कर रहे थे. उन्होंने दावा किया कि आग को बुझाने के लिए "तीन फायर एक्सटिंग्विशर का उपयोग किया गया था जो पूरी तरह काम कर रहे थे. जून में 126 सिलेंडर रिफिल किया गया था. अक्टूबर में भी 20-30 सिलेंडर रिफिल किए गए थे. फायर एक्सटिंग्विशर के 6 सिलेंडर NICU वार्ड के लिए इश्यू कराए गए थे. इनमें से 2-3 सिलेंडर आग लगने के बाद इस्तेमाल हुए हैं. जांच की रिपोर्ट आने के बाद यह और स्पष्ट हो जाएगा."
एक्सपायर हो चुके सिलेंडर के बार में डॉ नरेंद्र सिंह सेंगर ने क्विंट हिंदी से कहा,
"NICU वार्ड में और भी कई चीजे होती है. सेंट्रल स्टोर रूम भी होता है, जहां पुराना सामान रखा होता है. खाली सिलेंडर फेंका थोड़ी जाएगा. उसे स्टोर में रखा जाता है. जब आग लगी और दरवाजे टूटे, तो कई पुराने फायर एक्सटिंग्विशर घटनास्थल पर गिर गए."
क्विंट हिंदी ने फायर वीडियो में दिख रहे एक्सटिंग्विशर रिफिल करने वाले दोनों ट्रेडर्स, रुद्राक्ष ट्रेडर्स और पितांबर फायर सर्विस से बात की. पितांबर फायर सर्विस की ओर से कहा गया उन्होंने आखिरी बार 2019-20 के लिए ही रिफिलिंग की थी और अब उन्होंने यह बिजनेस बंद कर दिया है. वहीं रुद्राक्ष ट्रेडर्स की ओर से दावा किया गया कि जून 2024 में ही उन्होंने फायर एक्सटिंग्विशर को रिफिल किया था और हो सकता है कि हॉस्पिटल स्टाफ से कुछ सिलेंडर छिपे रह गए हों जिसकी वजह से उन्हें रिफिल नहीं किया जा सका.
NICU वार्ड में ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर क्यों था? आपातकालीन स्थिति में बाहर निकलने के पर्याप्त रास्ते थे?
इस मेडिकल कॉलेज के NICU वार्ड की दो यूनिट हैं. एक यूनिट अंदर और दूसरी बाहर की तरफ है. सबसे पहले जो बच्चे बाहर की ओर थे, उनको बाहर निकाला गया. लेकिन अंदर की तरफ जो बच्चे थे, वो काफी झुलस गए. यहां भर्ती बच्चों को बचाया नहीं जा सका.
यहां ध्यान देने वाली बात है कि दोनों यूनिट में अंदर जाने और बाहर आने के लिए केवल एक दरवाजा था. क्विंट से बात करते हुए विकास अरिवार ने यह भी बताया कि वार्ड में जाने के लिए केवल एक दरवाजा था. उन्होंने अपने मुंह पर रूमाल बांधा और बच्चों को बचाने के लिए वार्ड में गए. उन्होंने कई बच्चों को बाहर निकाला. विकास अरिवार के अनुसार दमकल विभाग द्वारा आग बुझाए जाने के बाद ही वार्ड की खिड़की तोड़कर मृतक बच्चों को निकाला गया. हालांकि कॉलेज के प्रिंसिपल ने दूसरा दरवाजा होने की बात कही है लेकिन यह भी माना कि वह उस समय बंद था.
क्विंट हिंदी उस दूसरे दरवाजे के पास पहुंचा जो कॉलेज प्रिंसिपल के अनुसार गायनी वार्ड की तरफ खुलता है. हमें दिखा कि इसके एक पल्ले में लगा हैंडल काटा या तोड़ा हुआ है. इसके अलावा बेलन जिस कुंडी में लगती है, वो भी उखड़ा हुआ है. ऐसा लगता है कि घटना के वक्त अंदर पहुंचने के लिए इसे तोड़ा गया था. हालांकि क्विंट हिंदी इसकी पुष्टि नहीं कर सकता.
इसी से जुड़ा दूसरा बड़ा सवाल ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर को लेकर है. मुख्य चिकित्सा अधीक्षक सचिन माहोर के अनुसार ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के अंदर ही सबसे पहले आग लगी थी और आग बुझाने के प्रयास किए गए लेकिन चूंकि कमरे में अत्यधिक ऑक्सीजन थी, इसलिए आग तेजी से फैल गई. नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम ऑफ इंडिया ने यूनिसेफ इंडिया के सहयोग से अपने नवजात देखभाल प्रत्यायन कार्यक्रम में सेल्फ असेसमेंट टूलकिट जारी किया था. इसके अनुसार लेबर रूम से लेकर NICU वार्ड तक में सेंट्रलाइज ऑक्सीजन सप्लाई की व्यवस्था होनी चाहिए. यानी पाइप के द्वारा. इसे मेंडेटरी यानी अनिवार्य कैटेगरी में रखा गया है.
नाम न छापने की शर्त पर देश के जाने-माने बच्चों के एक डॉक्टर ने क्विंट हिंदी से कहा कि NICU वार्ड में कभी भी ऑक्सीजन कंसंट्रेटर नहीं होना चाहिए क्योंकि स्पार्किंग की स्थिति में यह आगजनी के लिए उत्प्रेरक का काम करता है. इसी लिए यूनिसेफ पाइप द्वारा ऑक्सीजन सप्लाई की बात करता है.
क्या जालसाजी के आरोप में पुलिस के हत्थे चढ़ चुका व्यक्ति ही मेडिकल कॉलेज का चीफ मेडिकल सुपरिटेंडेंट है?
इस दुखद घटना के बाद एक और बात निकलकर सामने आई है. हॉस्पिटल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक यानी चीफ मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ. सचिन माहौर को आज से 9 साल पहले MBBS एडमिशन में जालसाजी के आरोप में गुजरात पुलिस ने हिरासत में लिया था. उस समय डॉ माहौर महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के कैंसर विभाग के अध्यक्ष थे.
अमर उजाला में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार कैंसर विभागाध्यक्ष पर सरगना और छात्रों के बीच मध्यस्थता के आरोप लगने के बाद गुजरात पुलिस कॉलेज आई थी. पुलिस जालसाजी के मामले में गिरफ्तार एक व्यक्ति को लेकर वह मेडिकल कॉलेज की ओपीडी पहुंची. डॉक्टर के सामने पहुंचते ही गिरफ्तार व्यक्ति ने माहौर को अपने साथी के रूप में पहचान लिया. फिर उन्हें हिरासत में ले लिया गया. इस मामले में मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य प्रिंसिपल डॉ नरेंद्र सिंह सेंगर ने विभागीय जांच बैठाई थी.
हमने जब प्रिंसिपल डॉ सेंगर से जब इस मामले में सवाल किया तो उन्होंने कहा कि यूपी शासन ने डॉ. सचिन माहौर को कुछ दंड देकर बरी कर दिया है. दंड के रूप में उनके वेतन के तीन इंक्रिमेंट रोक दिए हैं. वर्तमान में शासन की तरफ से वो दोषी व्यक्ति नहीं हैं. वहीं खुद डॉ. सचिन माहौर ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा कि भले ही उनके खिलाफ मामला अभी भी कोर्ट में चल रहा है लेकिन हॉस्पिटल और प्रशासन की तरफ से जांच के बाद उन्हें क्लीनचीट मिल गयी थी.
मौजूदा अग्निकांड के बाद जांच के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा गठित टीम की अध्यक्ष किंजल सिंह से जब इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है.
क्या स्थानीय हॉस्पिटल प्रशासन ने इस दुखद घड़ी में भी संवेदनशीलता नहीं दिखाई?
जब इस दुखद घटना की खबर सुनकर पूरा देश सन्न था तब इस हॉस्पिटल में कुछ कर्मचारी सूबे के डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक के विजिट से पहले स्वागत के लिए रोड के बगल में चूना डाल रहे थे. खुद डिप्टी सीएम ने इसकी आलोचना करते हुए जिलाधिकारी को कार्रवाई के लिए कहा है.
विपक्ष यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ पर भी निशाना साध रहा है. समाजवादी पार्टी ने कहा है कि मुख्यमंत्री प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर ध्यान न देकर दूसरे राज्यों में बीजेपी के चुनावी प्रचार में व्यस्त हैं.
(इनपुट- आकाश राठौर)
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