15 अगस्त, 2021 को भारत अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा होगा. मतलब भारत को आजाद हुए 74 साल पूरे हो चुके होंगे.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज के भारत की जो तस्वीर है, वह 15 अगस्त, 1947 की तस्वीर से थोड़ी सी अलग है. कैसे?
दरअसल कई ऐसे राज्य थे, पहले राजे-रजवाड़े हुआ करते थे और भारत की स्वतंत्रता के वक्त साथ में नहीं थे. धीरे-धीरे इन्हें साथ मिलाया गया. हम यहां कुछ ऐसे ही क्षेत्रों के बारे में जानेंगे, जो 15 अगस्त, 1947 को भारत के साथ आजाद नहीं हुए थे.
गोवा
जहां ज्यादातर भारत अंग्रेजों के सीधे कब्जे में था या रजवाड़ों ने अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार कर रखी थी, वहीं गोवा 15वीं शताब्दी से ही पुर्तगालियों के कब्जे में था. 1947 में भारत के आजाद होने के बाद लगातार भारत पुर्तगाल से गोवा को लौटाने की मांग करता रहा, जिससे पुर्तगाल इंकार करता रहा.
राम मनोहर लोहिया ने गोवा की आजादी के लिए राज्य में नागरिक अवज्ञा आंदोलन भी चलाया. लेकिन इस आंदोलन को दबा दिया गया. पर यहां से गोवा भी अपनी आजादी के लिए छटपटाने लगा था. बाद में गोवा में आजाद गोमांतक दल की स्थापना हुई, जिसने दूसरे भारतीय संगठनों के साथ मिलकर गोवा की आजादी के लिए संघर्ष किया.
लंबे संघर्ष के बाद 19 दिसंबर 1961 को गोवा को आजादी मिला और गोवा भारत का हिस्सा बन गया.
हैदराबाद
हैदराबाद पर ब्रिटिश हुकूमत के दौरान निजाम का शासन था. भारत और पाकिस्तान के वक्त हैदराबाद के निजाम ने दोनों ही देश की संविधान सभा में हिस्सा लेने से इंकार कर दिया. लगातार विनय के बावजूद हैदराबाद भारत में आने से इंकार करता रहा, जबकि वहां की जनता भारत के साथ जाना चाहती थी.
मजबूरन भारत को हैदराबाद पर पुलिस कार्रवाई करनी पड़ी. 13 सितंबर, 1948 को ऑपरेशन पोलो के नाम से भारत ने हैदराबाद पर चढ़ाई की और विजय हासिल की. इस तरह भारत के आजाद होने के एक साल से ज्यादा समय तक हैदराबाद स्वतंत्र राज्य था.
भोपाल राज्य
भोपाल राज्य भी उन कुछ अंतिम राज्यों में शामिल था, जिन्होंने भारत के साथ इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर सबसे आखिर में हस्ताक्षर किए. भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खां आजादी के बाद पाकिस्तान चले गए. हमीदुल्ला खां की मोहम्मद अली जिन्ना से नजदीकी और चेंबर ऑफ प्रिंसेस में उनके प्रभाव के चलते भोपाल 15 अगस्त, 1947 के बहुत बाद में 1 मई, 1949 को भारत का हिस्सा बना.
त्रावणकोर राज्य
त्रावणकोर मतलब आज के केरल का ज्यादातर हिस्सा. समुद्री सीमा पर स्थित होने के चलते त्रावणकोर भी हैदराबाद की तरह आजाद रहने के मंसूबे पाल रहा था. लेकिन भारत के लगातार दबाव के बाद त्रावणकोर ने 1 जुलाई, 1949 को इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर कर दिए.
जूनागढ़
गुजरात के जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान में जाने के मंसूबे पाल बैठा था. लेकिन यहां की ज्यादातर जनता भारत में विलय की आकांक्षी थी. 26 अक्टूबर को जूनागढ़ के नवाब ने जूनागढ़ छोड़ दिया और पाकिस्तान चला गया. बाद में फरवरी, 1948 में एक जनमत संग्रह हुआ, जिसमें जनता ने भारत में रहने की आकांक्षा जताई और इस तरह जूनागढ़ भारत का हिस्सा बना.
जम्मू-कश्मीर
भारत की आजादी के दौरान जम्मू और कश्मीर पर महाराजा हरि सिंह का शासन था. राज्य मुस्लिम बहुल था, लेकिन हरिसिंह भारत या पाकिस्तान के साथ जाने के बजाए स्वतंत्र रहना चाहते थे.
उन्होंने पाकिस्तान के साथ मौजूदा स्थिति बनाए रखने के लिए स्टेंडस्टिल एग्रीमेंट भी साइन कर लिया था. लेकिन उनके शासन को शेख अब्दुल्ला चुनौती दे रहे थे, जो भारत समर्थक नेता थे.
लेकिन पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में गिल्गित बाल्टिस्तान के कबीलाई लड़ाकों के साथ मिलकर कश्मीर घाटी पर हमला कर दिया. ऐसी स्थिति में हरि सिंह, जवाहर लाल नेहरू से मदद मांगने पहुंचे. जवाब में भारत ने राजा से इंस्ट्रमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर मांगा और शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में अंतरिम सरकार के गठन की शर्त रखी. महाराजा ने शर्त मान लीं और एक युद्ध के बीच कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया.
सिक्किम
सिक्किम में चोग्याल वंश का शासन हुआ करता था. सिक्किम भारत का एक प्रोटेक्टोरेट स्टेट हुआ करता था. मतलब भारत सिक्किम की रक्षा की जिम्मेदारी लेता था. लेकिन 1975 में वहां के राजनीतिक हालात बिगड़ते गए. राजा ने मनमानी शुरू कर दी. जवाब में वहां के प्रधानमंत्री के आह्वान पर भारतीय सेना ने अप्रैल 1975 में राजा की सैन्यकर्मियों को बंधक बना लिया.
इसके बाद एक जनमत संग्रह हुआ, जिसमें ज्यादातर लोगों ने राजशाही को खत्म करने और भारत के साथ मिलने पर वोट दिया. 16 मई, 1975 को सिक्कमि भारत का हिस्सा बन गया.
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