उत्तराखंड के जोशीमठ (Joshimath) में लगातार खराब हो रही स्थिति को ध्यान में रखते हुए सरकर ने लोगों को आर्थिक सहायता पहुंचाना शुरू कर दिया है. सरकार की तरफ से स्थानीय लोगों के लिए वैकल्पिक व्यवस्थाएं की जा रही हैं. लेकिन, दूसरी जगहों से आकर जोशीमठ जीनव यापन कर रहे प्रवासियों के लिए मुश्किल खड़ी हो गई है, जो छोटी-छोटी दुकानें चलाकर अपना भरण-पोषण कर रहे हैं. उनकी सुध सरकार की तरफ से भी नहीं ली जा रही है. वो किराए के घरों को छोड़कर जाने के लिए मजबूर हैं.
जोशीमठ में करीब 40-45 साल से दुकान चलाकर घर चलाने वाले शिशुपाल सिंह ने क्विंट हिंदी को बताया कि...
किराए के घर पर भारी दरारें आ गयी हैं, जिस कारण घर खाली करने का संकट आ गया है. शासन ने घर खाली करने के लिए किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं दी है. नगर में आयी आपदा के कारण व्यापार पर भी प्रभाव पड़ा है. कहीं वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो पा रही है कि हम अपना कारोबार कर सकें.शिशुपाल सिंह, दुकानदार
ऐसी ही दास्तान उर्मिला की भी है. उर्मिला मनोहर वार्ड में रहती हैं. वहां, वो अपना सिलाई का काम करती हैं, जिससे उनके परिवार का जीवन यापन होता है. उन्होंने क्विंट को बताया कि...
मैं यहां पर महिलाओं को कपड़े सिलाई का काम सिखाती हूं और मेरे पास दो शिफ्ट में 10-10 महिलाएं काम सीखती हैं, जिससे मेरी आमदानी 10 हजार रुपए मासिक हो जाती है. मैं यहां पिछले 15 साल से किराए पर रह रही हूं. मेरे पति ड्राइवर हैं. अब हमारे वार्ड में भी भवनों पर दरार आ गयी है. प्रशासन ने भवन खाली करवा दिए हैं, लेकिन हमें किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं दी गयी है.
जोशीमठ में सब्जी फल विक्रेता इजाज खान बताते हैं कि उनके पूर्वज कई साल से यहां पर किराए पर रह रहे हैं. मैं भी यहीं से पढ़ाई की है. मेरे दोस्त भी यहीं के हैं. अब नगर धंस रहा है. लोग घर छोड़ दिए हैं. प्रशासन ने उन्हें शिफ्ट कर दिया है. मेरा व्यापार भी नहीं चल रहा है. मुझे प्रशासन ने भी घर खाली करने को कह दिया है, लेकिन समस्या यह है कि अब मैं अपने वृद्ध माता पिता को कहां लेकर जाऊं.
जोशीमठ नगर में खाने की गुमटी चलाने वाले सतेन्द्र राणा कहते हैं कि "मैं कॉलेज करने के लिए फरकिया गांव से आया था. यह बात 1990 की है. लेकिन, अब यहीं का हो चला. मेरा गांव नीति मलारी मोटर मार्ग पर लगभग चालीस किलोमीटर दूर है. परिवार की स्थिति ठीक नहीं थी तो एक मित्र ने मुझे गुमटी खोलकर दी. परिवार भी चलने लगा. अब मेरा एक बेटा है जो अब कर्णप्रयाग में अपने नाना के पास रहकर ग्यारवीं में पढ़ रहा है. जोशीमठ धंस रहा है. काम धंधा नहीं है. अब हमने मन बना लिया है कि वर्षों से बंद पड़े घर की ओर चला जाए. वहीं, पर सब्जी उत्पादन कर आजीविका कमाई जाए. आखिर हमारी जड़ें गांव से ही हैं."
जोशीमठ में चाय की दुकान चलाने वाले रघुवीर कहते हैं कि...
इस महीने 26 जनवरी को बेटे की शादी है. हम सिंहधार वार्ड में रहते हैं, लेकिन जमीन धंसने के कारण अब शादी गांव से करनी पड़ रही है, जो जोशीमठ से लगभग तीस किलोमीटर दूर है.
शूरवीर सिंह कहते हैं कि जैसे कोरोना के बाद स्थिति हुई थी कि लोग शहरों को छोड़कर गांवों की तरफ लौट रहे थे ठीक वैसी ही स्थिति अब है. इस समय नगर में सैकड़ों परिवार ऐसे हैं, जो अपने रोजगार के लिए नजदीक के गांवों से यहां पर आए थे और सदा सदा के लिए यहीं के होकर रह गये. लेकिन, अब इनका रोजगार न के बराबर है. ऊपर से किराया भी देना है. ऐसे में ये अपने गांव की ओर लौट रहे हैं.
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