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Justice Muralidhar: एक निडर शख्स, जो कई झटकों के बावजूद नहीं रुका

उड़ीसा हाई कोर्ट के जज के तौर पर उन्होंने 33,000 से ज्यादा मुकदमों में फैसला दिया, लेकिन यह तो उनके काम का एक छोटा सा हिस्सा भर है.

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“सही समय कब होगा? शहर जल रहा है. आपके पास भड़काऊ भाषणों की कई क्लिप हैं, तो आप किसका इंतजार कर रहे हैं?” डॉ. जस्टिस एस मुरलीधर (Dr Justice S Muralidhar) ने यह सवाल साल 2020 में दिल्ली पुलिस से पूछा था.

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, दंगों की आग में जल रही थी. भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कुछ बड़े नेताओं पर भड़काऊ टिप्पणियां करने का आरोप था और दिल्ली पुलिस, हाई कोर्ट को बता रही थी कि “सही समय” आने पर नेताओं के खिलाफ FIR दर्ज करने पर फैसला लेगी.

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तब पुलिस को 24 घंटे के अंदर FIR पर फैसला लेने और अदालत को बताने के लिए कहा गया. बताया जाता है कि आठ घंटे के भीतर जस्टिस मुरलीधर का पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट तबादला कर दिया गया.

वह 7 अगस्त को ओडिशा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के पद से रिटायर हो गए. कई कानूनी जानकारों का कहना है कि इस तथ्य से कि जस्टिस मुरलीधर सुप्रीम कोर्ट की बेंच में शामिल नहीं हो सके, कार्यपालिका की नाराजगी की गंध आती है. और कॉलेजियम से भी कोई मदद नहीं मिल पाई.

लाइव लॉ के मैनेजिंग एडिटर मनु सेबेस्टियन लिखते हैं, “अपनी तमाम खामियों के बावजूद कॉलेजियम सिस्टम को विभिन्न वर्गों का समर्थन हासिल है, क्योंकि इसे न्यायिक आजादी को खत्म करने की सरकार की तानाशाही के खिलाफ एक ढाल के रूप में देखा जाता है. लेकिन अगर कॉलेजियम भी सरकार के ही सुर में सुर मिला रहा है तो इसकी प्रासंगिकता क्या है?”

लेकिन जस्टिस मुरलीधर को कोई अफसोस नहीं है. बताया जाता है कि उड़ीसा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पद से अपने विदाई भाषण में उन्होंने कहा था कि...

“मैं खुद को बहुत किस्मत वाला मानता हूं कि मुझे इस शानदार राज्य ओडिशा में चीफ जस्टिस के रूप में भेजा गया.”

उड़ीसा हाई कोर्ट में दर्ज हैं कई कामयाबियां

जस्टिस मुरलीधर का उड़ीसा हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस के रूप में सफर 4 जनवरी 2021 से शुरू हुआ. जस्टिस मुरलीधर ने हाई कोर्ट के लिए कई कामयाबियां दर्ज कीं. जैसे...

  • रीजनल ज्यूडिशियल अकादमियों की शुरुआत

  • बड़े पैमाने पर रिकॉर्ड का डिजिटाइजेशन

  • राज्य के हर जिले में वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा शुरू करना

जस्टिस मुरलीधर ने इस हद तक टेक्नोलॉजिकल बदलाव किए कि भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़– जो विधिक और न्यायिक कामों के निर्बाध संचालन के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के हिमायती हैं– ने भी उनके काम की तारीफ की है.

जस्टिस मुरलीधर के कार्यकाल के अंतिम दिन भी उड़ीसा हाई कोर्ट में दो नए ई-इनिशिएटिव लॉन्च किए गए.

इसके अलावा जस्टिस मुरलीधर ने अपने विदाई भाषण में कहा कि उड़ीसा हाई कोर्ट में उनके कार्यकाल के दौरान उनकी बेंच ने 33,000 से ज्यादा मुकदमों का निपटारा किया.

लेकिन, ओडिशा में एक जज के तौर पर उनकी कामयाबी उनके द्वारा किए गए कामों के दूरगामी असर का एक छोटा अंश भर है.

उड़ीसा हाई कोर्ट से परेः असर और हमदर्दी

बार एंड बेंच में लिखे एक लेख में वरिष्ठ अधिवक्ता संजय घोष लिखते हैं, “उन्होंने (जस्टिस मुरलीधर) मौजूदा दौर में भारत के सबसे हिम्मती जजों में से एक के रूप में इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया है.”

2020 के दंगों में जब दिल्ली जल रही थी तो जस्टिस मुरलीधर ने खामोश बैठने और हालात से आंख फेर लेने का रास्ता नहीं चुना.

वह राजनेताओं और पुलिस से जवाबदेही मांगने में जुटे थे– यह ऐसा कदम था जिसके चलते उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट में अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी और बाद में सुप्रीम कोर्ट में जाने का मौका भी गंवाया– मगर उन्होंने यह पक्का किया कि उन लोगों को मदद मिले, जिन्हें इसकी जरूरत थी.

फरवरी की वह एक बेहद सर्द रात थी जब अपने तबादले से कुछ वक्त पहले, जस्टिस मुरलीधर के घर पर आधी रात को सुनवाई हुई. दंगों के बीच हालात का आकलन किया गया, डॉक्टर को मोबाइल पर कॉल की गई और जस्टिस मुरलीधर और जस्टिस अनूप जे भंबानी की बेंच ने पुलिस को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिए कि गंभीर रूप से घायल 22 दंगा-पीड़ितों को सुरक्षित रूप से फौरन अस्पतालों में पहुंचाया जाए, जहां उनके इलाज की सुविधा हो.

घोष उस रात को याद करते हुए लिखते हैं, “जैसे ही हाई कोर्ट के दखल की खबर फैली, दंगे शांत हो गए… उस रात हाई कोर्ट के एक और प्रतिष्ठित जज के साथ मिलकर उठाए गए उनके इस कदम ने अनगिनत लोगों की जान बचाई.”

जस्टिस मुरलीधर का तबादला उनके फरवरी 2020 के फैसले के बाद के दिनों में हुआ. हालांकि जस्टिस मुरलीधर का ठोस और दमदार नजरिया उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से पहले से नजर आता है...

साल 2018 में जस्टिस मुरलीधर और जस्टिस विनोद गोयल की डिवीजन बेंच ने 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को बरी करने के फैसले को पलट दिया था. बेंच ने अपने आदेश में कहा:

“सामूहिक अपराधों के लिए जिम्मेदार अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण हासिल है और वे मुकदमे और सजा से बचने में कामयाब रहे हैं. ऐसे अपराधियों को इंसाफ के दायरे में लाना हमारे लीगल सिस्टम के लिए एक गंभीर चुनौती है.”

जस्टिस मुरलीधर साल 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट की उस बेंच का हिस्सा थे जिसने सबसे पहले समलैंगिकता को अपराध (First Decriminalised Homosexuality) की श्रेणी से बाहर किया था.

“हम घोषित करते हैं कि IPC की धारा 377, जहां तक यह वयस्कों की आपसी सहमति से यौन कृत्यों को अपराध मानती है, संविधान के अनुच्छेद 21 [जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा का अधिकार], अनुच्छेद 14 [कानून के सामने समानता का अधिकार] और अनुच्छेद 15 [धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध] का उल्लंघन है.”

जस्टिस मुरलीधर ने 2019 में एक आदेश पारित किया जिसमें कहा गया कि सही पुनर्वास योजनाओं के बिना झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों को बिना सूचना दिए जबरन बेदखल करना कानून के खिलाफ है.

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जस्टिस मुरलीधर और जस्टिस विभू बाखरू की बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले बहुत से लोग “सेवाएं मुहैया कराने के लिए शहर पहुंचने को लंबा सफर तय करते हैं, और कई लोग बदहाल हालात में रहते हैं, तिरस्कार सहते हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बाकी आबादी आरामदेह जिंदगी जी सके.”

फैसले में आगे कहा गया है:

“आवास का अधिकार अधिकारों का एक समूह है जो किसी के सिर्फ घर तक सीमित नहीं है. इसमें आजीविका का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और भोजन का अधिकार शामिल है, जिसमें पीने का साफ पानी, सीवरेज और परिवहन सुविधा का अधिकार भी शामिल है.”

लेकिन दूसरों के दर्द को अपना दर्द समझने और उनका साथ देने की उनकी खासियत सिर्फ उनके न्यायिक फैसलों तक ही सीमित नहीं थी.

जैसा कि घोष ने लिखा है, जज और उनकी पत्नी ने “निःस्वार्थ प्यार और संवेदनशीलता के साथ” बुढ़ापे में प्रोफेसर लतिका सरकार की देखभाल की, और बदले में जब उम्र के अंतिम पड़ाव में प्रोफेसर ने अपनी वसीयत में उनका नाम डालना चाहा तो इस इरादे का “पुरजोर विरोध किया.”

उड़ीसा हाई कोर्ट में अपने विदाई भाषण में निवर्तमान चीफ जस्टिस ने कहा:

“जो लोग ओडिशा के बारे में ज्यादा नहीं जानते... वे ओडिशा की समृद्धि, ओडिशा के लोगों की इंसानियत, संस्कृति, परंपराओं, ओडिशा के लोगों के जज्बे को देख हैरान रह जाते हैं.”

लेकिन क्या यही बात जस्टिस मुरलीधर के बारे में भी नहीं कही जा सकती?

(ओरिजिनल स्टोरी द क्विंट पर छपी है. यहां उसका हिंदी अनुवाद दिया गया है.)

(Livelaw, Bar and Bench, इंडियन एक्सप्रेस और The Print के इनपुट के साथ)

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