कारगिल विजय दिवस के मौके पर हम आपको इस युद्ध की 6 ऐसी कहानियां सुना रहे हैं, जिनमें भारतीय सेना की जांबाजी की झलक दिखती है. पिछले तीन पार्ट में हमने आपको बताया था कि कैसे कैप्टन सौरभ कालिया और कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपनी जांबाजी से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ा था. वहीं आपको एयरफोर्स के ऑपरेशन सफेद सागर की कहानी भी बताई थी. अब आपको एक ऐसे ही जांबाज कैप्टन मनोज पांडे की कहानी बताते हैं. जिन्होंने पाकिस्तान के बंकर्स पर धावा बोला और चोटी पर तिरंगा फहराने का काम किया.
कई युवाओं के रोल मॉडल बने कैप्टन पांडे
कारगिल में युद्ध शुरू हुए कई दिन बीत चुके थे, भारतीय सेना लगातार अलग-अलग टुकड़ियों में ऊपर चढ़ाई कर रही थी और अहम प्वाइंट्स पर कब्जा कर रही थी. हर कंपनी का अपना अलग मिशन था, उन्हें बताया जा रहा था कि किस चोटी को उन्हें कैप्चर करना होगा. कैप्टन मनोज पांडे की कंपनी को भी एक ऐसा ही टारगेट मिला.
मनोज कुमार पांडे का नाम लखनऊ में आज भी बड़े सम्मान से लिया जाता है. कई युवाओं के लिए पांडे ने रोल मॉडल का भी काम किया. उनका जन्म 25 जून 1975 में हुआ था. पांडे भी हर खेल में चैंपियन थे. बॉक्सिंग का भी उन्हें काफी शौक था. बचपन से ही उनमें देशभक्ति का जज्बा था. जिसके बाद आखिरकार उन्होंने इंडियन आर्मी को ज्वाइन किया था.
अब कारगिल युद्ध के बीच मनोज कुमार पांडे की कंपनी को आदेश दिया गया कि उन्हें कारगिल की अहम चोटी बटालिक सेक्टर को कैप्चर करना है. 11 जून 1999 को कैप्टन पांडे की टीम को ये टारगेट दिया गया था. पूरी टीम ने चढ़ाई की तैयारी कर ली, लेकिन फिर से वही दिक्कत थी कि दुश्मन की सीधी नजर नीचे थी. किसी तरह छिपते हुए उनकी पूरी टीम ऊपर चढ़ने लगी, लेकिन लगातार गोलियों की भी बारिश हो रही थी. इसके बावजूद मनोज कुमार पांडे लीड करते हुए अपनी कंपनी को ऊपर तक ले गए.
दुश्मनों को खत्म करते-करते हुए शहीद
सबसे बड़ी दिक्कत तब आई जब ऊपर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों को पता चल गया कि नीचे से भारतीय सेना की टुकड़ी आ रही है. उन्होंने फिर टारगेट लेते हुए फायर शुरू कर दिया. इसी बीच कैप्टन मनोज पांडे की टीम ने भारत माता की जय का नारा लगाते हुए ऊपर चढ़ाई की.
ऊपर पहुंचते ही मनोज कुमार पांडे ने पाकिस्तानी बंकर पर हमला बोला और हाथों से घुसपैठियों के साथ लड़ाई की. इस लड़ाई में कैप्टन पांडे पाकिस्तानियों पर काफी भारी पड़े. उन्होंने कई पाकिस्तानी जवानों को वहीं ढेर कर दिया. बंकर में भारतीय जवान इसलिए अटैक कर रहे थे, क्योंकि वहां से राइफल लगाकर पाकिस्तान सैनिक लगातार नीचे की तरफ फायर झोंक रहे थे. कैप्टन पांडे ने तुरंत पहले बंकर को अपने कब्जे में ले लिया.
इसी तरह बटालिक सेक्टर पर बने कई बंकरों को कैप्टन पांडे ने एक एक कर कैप्चर कर लिया. इन बंकर्स में कई पाकिस्तानी घुसपैठिए मौजूद थे. इन सभी से लड़ाई में कैप्टन पांडे घायल हो चुके थे. लेकिन वो आखिरी बंकर की तरफ भी तेजी से बढ़े. जिसके बाद वहां लड़ते-लड़ते वो शहीद हो गए.
लेकिन शहीद होने से पहले कैप्टन पांडे ने इस चोटी के सभी बंकर तबाह कर दिए थे. बताया जाता है कि यहां पर इस लड़ाई में करीब सभी जवान शहीद हो चुके थे. लेकिन जब भारतीय सेना की दूसरी टुकड़ी ऊपर पहुंची तो वहां भारत का तिरंगा शान से लहरा रहा था. जितने भी जवान जब ऊपर पहुंचे तो अपने साथी जवानों की जांबाजी देखकर उन्होंने उनकी हिम्मत की दाद दी. इसी तरह भारतीय सेना के इस योद्धा को सभी ने सलाम किया. उन्होंने शहीद होते हुए अपने आखिरी शब्दों में कहा- ना छोडनू, यानी उन्हें मत छोड़ना कहा था. कहा जाता है कि अगर इस एरिया को कैप्चर नहीं किया गया होता तो शायद कारगिल पाकिस्तान के कब्जे में होता.
कैप्टन मनोज पांडे के इस जज्बे और जांबाजी के लिए उन्हें सर्वोच्च गैलेंट्री अवॉर्ड परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. वहीं सेना में आज भी इस वीर जवान की कहानियां सुनाई जाती हैं.
अब कारगिल युद्ध की इस सीरीज में 25 जुलाई को आपको एक ऐसे ही जांबाज सूबेदार योगेंद्र यादव की कहानी सुनाएंगे. जिन्होंने 15 गोलियां लगने के बाद भी हार नहीं मानी और पाकिस्तानी घुसपैठियों के परखच्चे उड़ाकर जिंदा वापस लौटे. इन्हें भी परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.
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