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कर्नाटक में ना हो गोवा-मणिपुर जैसा हाल, कांग्रेस का ये है प्लान B

कर्नाटक के रण में आज कौन मारेगा बाजी? 

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भारत
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कर्नाटक के रण में आज कौन मारेगा बाजी? इस सवाल का जवाब आज शाम तक मिल जाएगा ,लेकिन कांग्रेस ने इस सवाल के जवाब से पहले इस चुनाव में रनर नहीं बल्कि विनर बनने के लिए मोर्चाबंदी शुरू कर दी है.

गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव नतीजों से सबक लेते हुए कांग्रेस कर्नाटक में जोखिम मोल लेने के मूड में नहीं है और शायद यही वजह है कि उसने ‘प्लान बी' के तहत अपने दो सीनियर लीडर अशोक गहलोत और गुलाम नबी आजाद को पहले ही बेंगलुरू भेज दिया है.

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ज्यादातर एग्जिट पोल त्रिशंकु विधानसभा की ओर इशारा कर रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि एग्जिट पोल में कर्नाटक विधानसभा चुनाव नतीजों की जो तस्वीर सामने आई है उसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी गोवा और मणिपुर जैसी स्थिति से निपटने के लिए पहले से तैयारी रखना चाहते हैं.

क्या हुआ था गोवा और मणिपुर में?

पिछले साल गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी. लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस सरकार बनाने से नाकाम रही थी. और इन दोनों राज्यों में बीजेपी दूसरी पार्टियों की मदद से सरकार बनाने में सफल रही थी.

जेडीएस पर सबकी नजर

ऐसे तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही सरकार बनाने का दावा कर रही है लेकिन एग्जिट पोल में किसी भी पार्टी को पूर्ण जनादेश मिलता नहीं दिख रहा है. जिसके बाद से पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस पर सबकी नजर है. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगर त्रिशंकु विधानसभा रहा तो जेडीएस किंग मेकर का काम करेगी. मतलब जिसे भी जेडीएस का साथ मिलेगा वो कर्नाटक की सत्ता पर काबिज होगा.

ये भी पढ़ें- तो क्या जिस तरफ झुकेंगे देवगौड़ा, उसी तरफ बनेगी सरकार?

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कांग्रेस का जेडीएस कार्ड

बता दें कि वोटिंग के बाद रविवार को कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने दलित को सीएम बनाए जाने को लेकर एक बड़ा बयान दिया था. उन्होंने किसी दलित उम्मीदवार के लिए सीएम पद छोड़ने की बात कही. जिसके बाद से ये अटकलें लगनी शुरू हो गई कि कांग्रेस को भी बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुंचने में मुश्किल दिख रही है. जानकारों के मुताबिक कांग्रेस ने जेडीएस को अपने पाले में लाने के लिए ऐसे बयान दिए हैं. हालांकि बीजेपी ने इसे कांग्रेस की हार बताई है.

कर्नाटक के रण में आज कौन मारेगा बाजी? 
सिद्धारमैया पार्टी के पुराने नेताओं की निगाह में “बाहरी” थे.
(फोटो: The Quint)

क्यों JD(S)-कांग्रेस साथ आ सकते हैं?

अगर त्रिशंकु विधानसभा होता है तो कांग्रेस और जेडीएस का साथ आना कोई नई बात नहीं होगी.

साल 2004 में बीजेपी कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी बन कर सामने आई थी. बीजेपी ने 79 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं कांग्रेस को 65 और जेडीएस को 58 सीटें मिली थी. सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद भी बीजेपी सरकार नहीं बना पाई थी. कांग्रेस और जेडीएस के बीच गठबंधन हुई और कांग्रेस के दिग्गज धर्म सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी.

देवगौड़ा ने भी नहीं खोले सारे पत्ते

कुछ दिन पहले तक देवगौड़ा ने हिंदुस्तान टाइम्स को दिए अपने लंबे-चौड़े इंटरव्यू में कहा था कि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में वो न तो बीजेपी के साथ जाएंगे और न ही कांग्रेस के.

इस इंटरव्यू में वो प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, दोनों पर बराबर नाराज दिखे. लेकिन, अब दिल कुछ पसीजता सा दिखता है. देवगौड़ा ने वोटिंग के बाद रविवार को कहा है कि वो फिलहाल किसी भी चीज को मानने या खारिज करने को तैयार नहीं हैं. वो 15 मई यानी वोटों की गिनती के इंतजार की बात कह रहे हैं. इसका मतलब एग्जिट पोल के बाद देवगौड़ा भी अपनी अहमियत समझ रहे हैं.

कर्नाटक के रण में आज कौन मारेगा बाजी? 
देवगौड़ा के पास हो सकती है कर्नाटक सरकार की चाबी
(फोटो: द क्विंट)

क्या 33 साल बाद इतिहास दोहराएगा?

पिछले 33 सालों में किसी भी पार्टी ने लगातार दो बार कर्नाटक की सत्ता में वापसी नहीं की है. ऐसे में अगर कांग्रेस के पक्ष में साफ जनादेश जाता है तो 1985 के बाद ये पहली बार होगा जब कोई पार्टी लगातार दूसरी बार सरकार बनाएगी. 1985 में तत्कालीन जनता दल ने रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व में लगातार दूसरी बार सरकार बनाई थी. बता दें कि राज्य की 224 सदस्यीय विधानसभा की 222 सीटों पर 12 मई को मतदान हुआ था.

ये भी पढ़ें-कर्नाटक चुनाव: काउंटिंग से पहले बयानवीरों का ‘त्रिकोणीय मुकाबला’

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