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Shakti Scheme: क्यों, कर्नाटक की शक्ति योजना सिर्फ एक 'फ्रीबी' से ज्यादा है?

कर्नाटक सरकार ने महिलाओं के लिए फ्री बस सेवा शुरू की है, जिसका कई जगहों पर विरोध देखने को भी मिल रहा है.

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कर्नाटक की नई कांग्रेस सरकार की शक्ती योजना के तहत औरतों को मिलने वाली फ्री बस सेवा ने इन दिनों सोशल मीडिया पर काफी हंगामा मचा रखा है. शक्ति योजना के तहत 11 जून से राज्य में महिलाओं के लिए सरकारी बसों (आरटीसी) की गैर-प्रीमियम सेवाओं में सफर करना मुफ्त हो गया है. सभी उमर की महिलाएं इस स्कीम का फायदा उठा रहीं हैं. पर कुछ ट्विटर यूजर ये बताने में लगे हैं कि क्यों 'फ्री बस सेवा टेक्स पेयर के पैसे की बर्बादी है.'कैसे सरकार की मुफ्त स्कीम इकॉनमी को बर्बाद कर रहीं हैं और क्यों ऐसी स्कीमें इंकम पर आधारित होनी चाहिए.

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लोकिन, क्या यह स्कीम सच में टैक्स पेयर के पैसे की बर्बादी है? क्या ये मुफ्त स्कीम बस एक इलेक्शन घोषणा है, जो औरतों के वोट लेने के लिए इस्तेमाल हो रही है. पर ऐसा नहीं है. ये आपको समझना पड़ेगा कि ये योजना औरतों के लिए कितनी जरूरी है - खासकर हाशिए पर जिंदगी गुजारने वाली महिलाओं के लिए.

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महिलाओं के लिए ये स्कीम क्यों जरूरी है?

महिलाओं के चुनावी प्रतिनिधित्व को बेहतर बनाने की दिशा में काम करने वाली संस्था पॉलिटिकल शक्ति की को-फाउंडर तारा कृष्णास्वामी ने द क्विंट से बात करते हुए कहा "फ्री बस सेवा महिलाओं की पढ़ाई, सुरक्षा और जीवन को बेहतर बनाने की क्षमता रखती है."

"भारत में महिलाओ के कहीं आने जाने पर हमेशा से संस्कृतिक पाबंदी रही है. आज भी भारत के कई हिस्सों में महिलाएं अकेले सफर नहीं कर सकती हैं. कई बार लड़कियों को कॉलेज जाने से सिर्फ इसलिए रोक दिया जाता है, क्योकि कॉलेज का सफर लंबा है या कॉलेज दूर है. अगर आप मगइग्रेशन के पैटर्न को देखेंगे तो पाएंगे की महिलाएं काम के लिए बहुत कम और शादी के लिए ज्यादा माइग्रेट करती हैं. "

ऐसे में फ्री बस सेवा औरतों को ज्यादा सफर करने के लिए सक्षम करेगा. उन्होनें आगे कहा कि "पब्लिक प्लेस पर जितनी ज्यादा महिलाओं की मौजूदगी बढ़ेगी उतनी ही ज्यादा महिलाएं सुरक्षित होंगी."

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इकोनॉमिस्ट विभूति पटेल ने द क्विंट से बताया कि "महिलाओं की कम मोबेलिटी इस बात पर डिपेंड करती कि उनका अपने पैसे पर बहुत कम कंट्रोल होता है. और कही न कहीं यह औरतों को काम करने से रोकता है, जिसकी वजह से उनकी फाइनेंशियल ग्रोथ नहीं हो पाती है."

पटेल आगे कहती हैं कि "सिर्फ 19% महिलाएं ही वर्किंग हैं बाकी 92 % महिलाएं इन्फॉर्मल सेक्टर में अपने घर की जरूरतों के लिए बेहद कम सैलरी पर काम करती हैं और अपनी नौकरी के लिए लंबा सफर तय करती हैं. फ्री बस सेवा उनके लिए फाएदेमंद होगी. इसलिए फ्री बस सेवा इकॉनमी के लिए बेहतर साबित होगी, क्योंकि जो काम महिलाएं ज्यादा किराय की वजह से नहीं कर पाती थी वो भी करेंगी."

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इन सबके बावजूद ट्विटर पर जिन महिलाओं ने फ्री टिकट की तस्वीरें शेयर की उनको कुछ पुरुषों के भद्दे कमेंट्स का सामना भी करना पड़ा.

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कृष्णास्वामी ने तर्क दिया कि "अगर इस सुविधा का इस्तेमाल वो महिलाएं भी करती हैं जो अपनी निजी कार या स्कूटी इस्तेमाल करती हैं तो यह बड़ी सफलता होगी."

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बेंगलुरु में भीड़भाड़ की बड़ी समस्या है. प्रदूषण की भी समस्या है. अगर ये स्कीम पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देती है और निजी वाहन कम करती है, तो हमारी ट्रैफिक की भी समस्या कम हो सकती है.
- तारा कृष्णास्वामी

कृष्णस्वामी कहती हैं कि "हम कोई नई चीज नहीं कर रहें. इस दुनिया में कई उदाहरण हैं जहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देने के बाद प्रदूषण कम हुआ है और अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है."

हालांकि, शक्ती योजना ऐसी नहीं है, जिसमें कोई कमी ना हो इसका इस्तमाल सिर्फ वही महिलाएं कर सकती हैं, जिनके पास डॉमिसाइल सार्टिफिकेट है. इस स्कीम में ये कमी नहीं की यह फ्री है पर इसका वह महिलाएं लाभ नहीं उठा पाएंगी, जिनके पास डॉमिसाइल सार्टिफिकेट नहीं है.

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'फ्रीबी' की इकोनॉमी

पटेल ने द क्विंट से कहा कि "जब गरीबों और हाशिए पर खड़े लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की बात हो और उन्हें 'मुफ्त उपहार' कह दिया जाए वह इसका कड़ा विरोध करती हैं."

समाज में मैक्रो इकोनॉमिक नीतियों की वजह से हो रहे नुकसान जिनकी वजह से गरीबों और महिलाओं का शोषण होता है उनकी की बजाय हम गरीब लोगों को फायदा पहुंचाने वाली स्कीमों को फ्रीबी बोल देतें है और उसका विरोध करतें हैं.
विभूति पटेल

कृष्णस्वामी कहती हैं कि "ऐसी प्रतिक्रियाएं उन लोगों की ओर से आ रही हैं, जो इस बात को मानने में भी असमर्थ हैं कि हमारे देश में लोकतंत्र और शासन भी क्यों है? हमारे देश में ऐसी स्कीम पूराने समय से चलाई जाती रही हैं."

वो आगे कहती हैं कि "जब तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन 'फ्री मिड डे मील' स्कीम लेकर आए थे तब भी बहुत हंगामा हुआ था."

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उन्होनें आगे कहा कि तब मीडिया और नेताओं ने तर्क दिया था कि "तमिलनाडु सरकार को सरकारी स्कूलों में सभी को नहीं खिलाना चाहिए और केवल उन लोगों को खाना खिलाना चाहिए जो कमजोर हैं पर यही स्कीम अब पूरे देश में लागू की जा रही है, क्योंकि यह इकोनॉमी में योगदान करती है."

शहर के फ्लाईऑवर का उदहारण देते हुए उन्होने कहा कि "सच में फ्रीबी फ्लाईओवर हैं. क्योंकि फ्लाईओवर बनाने के लिए टैक्स का पैसा सबसे लिया जाता है. हाशिएं के तबकों से लेकर सभी से लिया जाता है. लेकिन ज्यादातर कार और बाइक यूजर्स ही इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. तो यह किसकी मदद करता है? केवल वे जिनके पास निजी परिवहन हैं."

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जब ट्विटर पर महिलाओं ने इसका जबाव दिया

इन सबके बावजूद कुछ महिलाओं ने स्कीम का सोशल मीडिया पर सपोर्ट किया और विरोध जाताने वालों को रिप्लाई दिए. कुछ ट्विट आप यहा देख सकते हैं.

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