उडुपी जिले के कुंदापुर (Kundapur) का गर्वमेंट प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज मंगलवार 8 फरवरी को बिल्कुल शांत नजर आया. क्लासेज चल रही और प्रिंसिपल बीजी रामकृष्णा भी दिन में ज्यादातर समय स्टाफरूम में रहे. यहां उनके साथ दर्जनों शिक्षक थे. सबकुछ सही लग रहा था, सिर्फ एक चीज को छोड़कर और वो यह कि कॉलेज की 28 मुस्लिम महिला स्टूडेंट्स में से 27 क्लास में मौजूद नहीं थीं. वहीं एक मुस्लिम महिला स्टूडेंट जो क्लास में नजर आई, उसने भी हिजाब नहीं पहना था.
कुंदापुर में आसपास में ही 6 कॉलेज हैं और इन सबकी दूरी एक दूसरे से दो किलोमीटर के करीब होगी. मंगलवार को इन सभी कॉलेजों में ज्यादातर मुस्लिम महिला स्टूडेंट्स अनुपस्थित रहीं, लेकिन डर की वजह से वो अपना विरोध नहीं जता सकीं.
इसका मतलब साफ है कि जिस तरह हिंदू छात्रों ने कर्नाटक के शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने के खिलाफ भगवा शॉल ओढ़कर विरोध प्रदर्शन किया उसका परिणाम यह होगा कि वो मुस्लिम महिलाएं अब शिक्षा हासिल नहीं कर सकेंगी, जो हिजाब पहनना चाहती हैं.
18 साल की तहरीन बेगम एक स्टूडेंट हैं. वो कहती हैं, हम इस बात को लेकर पूरी तरह निश्चित थे कि हमें अंदर नहीं जाने दिया जाएगा. हम कितनी देर तक कॉलेज गेट के बाहर खड़े रह सकते थे?
एमजीएम कॉलेज में छात्रों ने भगवा स्कार्फ के साथ जय श्री राम के नारे लगाकर विरोध प्रदर्शन किया था
मुस्लिम महिलाओं के कॉलेज न जाने और उनकी जबरन चुप्पी पर उडुपी वैसे शांत नजर आया, लेकिन इस बीच कर्नाटक के शिमोगा, दावणगेरे और रायचूर के सरकारी और प्राइवेट संस्थानों के कैम्पस में महौल तनावपूर्ण था. यहां भी कैम्पस में भगवा स्कार्फ लेकर छात्रों ने प्रदर्शन किया. पिछले एक हफ्ते में ऐसे प्रदर्शन हासन, मांड्या और चिकमंगलुरु में भी हुए हैं.
शिक्षा या हिजाब में से किसे चुनें?
द क्विंट से बात करते हुए तहरीन बेगम ने कहा कि उन्होंने कुंदापुर के गर्वमेंट पीयू कॉलेज में बड़ी उम्मीद के साथ एडमिशन लिया था. उन्होंने कहा, मेरे परिवार के लोगों की कॉलेज के बारे में अच्छी राय थी. मेरी मां भी यहीं पढ़ी हैं. उस वक्त हिजाब पहनने पर किसी तरह की पाबंदी नहीं थी.
18 साल की तहरीन के पिता दिहाड़ी मजदूरी करते हैं. जब हमने उनसे पूछा कि उन्होंने गर्वमेंट कॉलेज को क्यों चुना तो उन्होंने साफ कहा कि हमारे साथ आर्थिक समस्याएं थीं और गर्वमेंट कॉलेज में पढ़ाई का खर्च बहुत कम आता है.
शाहीन ने भी बताया कि उनके पिता दिहाड़ी पर अलग अलग तरह के काम करते हैं. वो एमबीए करना चाहती है.
1 फरवरी की घटना को याद करते हुए तहरीन कहती हैं कि हमसे अचानक क्लास से बाहर जाने के लिए कहा गया. कॉलेज मैनेजमेंट ने कुछ मुस्लिम महिला स्टूडेंट्स को चुना और उन्हें एक अलग कमरे में भेज दिया. इसके बाद स्टूडेंट्स से कहा गया कि वो अपने पैरेंट्स को कॉलेज लेकर आएं. स्टूडेंट्स का कहना है कि अब स्थिति ये है कि उनके पैरेंट्स मजबूर हो गए हैं कि शिक्षा या हिजाब में से किसे चुनें?
तहरीन बेगम कहती हैं कि हिजाब हमारा मौलिक अधिकार हैं और शिक्षा हासिल करना भी. हालांकि इन दोनों लड़कियों के लिए शिक्षा हासिल करना आसान नहीं है.
हिजाब में पढ़ने का संघर्ष
उडुपी जिले से 150 किलोमीटर दूर शिमोगा के गर्वमेंट फर्स्ट ग्रेड कॉलेज में कुछ मुट्टीभर स्टूडेंट्स ने भगवा स्कार्फ ओढ़कर प्रदर्शन किया और कैम्पस में भगवा झंडा भी फहरा दिया.
जब तहरीन और शाहीन ने ये खबर सुनी उस वक्त वो बहुत ध्यान से कर्नाटक हाई कोर्ट की प्रोसिडिंग्स को पढ़ रही थीं, जहां हिजाब पर बैन को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की गई है.
इससे पहले कर्नाटक सरकार ने कॉलेज मैनेजमेंट से कहा था कि वो कॉलेज डेवलपमेंट कमेटियों की यूनिफॉर्म गाइडलाइंस का ही पालन करें.
इसके तहत जो पहनावा पब्लिक ऑर्डर में बाधा डालता है, उसे कैम्पस में नहीं पहना जाना चाहिए और स्टूडेंट्स को बस यूनिफॉर्म में ही कॉलेज आने की इजाजत होनी चाहिए.
तहरीन बेगम और शाहीन का कहना है कि कुंदापुर के गर्वमेंट पीयू कॉलेज की स्थापना साल 1971 में हुई थी और पिछले 29 सालों से मुस्लिम महिलाएं कॉलेज में हिजाब पहनकर आती रही हैं.
शाहीन और तहरीन दोनों के लिए कॉलेज जाना एक संघर्ष की तरह है. तहरीन कहती हैं कि हमें अपने घर से मेन रोड तक जाने के लिए एक किलोमीटर तक चलना पड़ता है. इसके बाद आधे घंटे कॉलेज तक जाने में लगते हैं.
यहां ये जानना जरूरी है कि जिस दिन इन स्टूडेंट्स को कॉलेज से बाहर रखा गया, उस दिन भी इनके पास किताबें और बैग था. जब इन्हें कॉलेज जाने से रोका गया था तब कुछ मुस्लिम महिला स्टूडेंट्स ने पढ़ाई को जारी रखने के लिए सरकारी अधिकारियों से बातचीत भी की थी.
'सरकार की ओर से सख्त निर्देश'
तहरीन बेगम ने कहा, एक जिला अधिकारी जो डिप्टी डायरेक्टर ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शन थे, उन्होंने हमसे कहा कि अगर हमें पढ़ना है तो हिजाब को छोड़ना पड़ेगा. हमने उनसे पूछा कि क्या वो अपने बच्चों को शिक्षा पाने से ऐसे वंचित रख सकते हैं?
द क्विंट ने इसे लेकर प्रिंसिपल बीजी बालकृष्णा से भी बात की. उन्होंने कहा, हमें सरकार की तरफ से सख्त निर्देश मिले हैं कि हिजाब पहनकर आने वाली स्टूडेंट्स को कॉलेज में प्रवेश की इजाजत न दी जाए.
हालांकि, 7 फरवरी को लड़कियों को कैम्पस में प्रवेश की इजाजत दी गई थी. उन्हें बैठने के लिए एक अलग कमरा दिया गया था, लेकिन शाहीन का कहना है कि हमें कुछ पढ़ाया नहीं गया. कोई टीचर हमारे पास नहीं आए.
शांत प्रदर्शन के खिलाफ हेट कैम्पेन
महिलाओं को सबसे ज्यादा जिस बात ने प्रभावित किया है, वो है उनके शांत प्रदर्शन के खिलाफ चलाया गया हेट कैम्पेन.
मुस्लिम महिला स्टूडेंट्स 5 दिनों तक अपने कॉलेज कैम्पस के बाहर बैठी रहीं और स्थानीय मीडिया ने उन्हें बदनाम करने के लिए कई तरह की खबरें चलाईं. उनका आरोप है कि वो आर्थिक रूप से कमजोर घरों से आती हैं, लेकिन ऐसा कहा गया कि वो संपन्न घरों से हैं क्योंकि, उडुपी की एक स्टूडेंट ने कोर्ट में हाल में हुई घटना के खिलाफ याचिका दी थी. तहरीन बेगम ने कहा कि मुस्लिम स्टूडेंट्स से ये पूछा गया कि अगर वो गरीब घरों से आती हैं, तो वकील का खर्च कैसे उठा सकती हैं?
इतना ही नहीं जब लड़कियां विरोध जताते हुए कॉलेज के बाहर सड़क पर बैठी थीं तो ये भी कहा गया कि वो पुलाव खा रही हैं. इस हेट कैम्पेन का शिकार शाहीन कहती हैं कि हमें कैम्पस के अंदर वॉशरूम जाने की भी इजाजत नहीं थी, किसी ने हमें खाना दिया तो हमने थोड़ा सा खाया था.
यहां बता दें कि मुस्लिम महिला स्टूडेंट्स को 2 फरवरी से कॉलेज में प्रवेश की इजाजत नहीं है. मंगलवार को कुंदापुर के एमजीएम कॉलेज के छात्रों ने भगवा स्कार्फ और पगड़ियों के साथ प्रदर्शन किया था.
जब स्टूडेंट्स से ये पूछा गया कि क्या मुस्लिम महिलाएं बदले हुए शैक्षणिक माहौल से डरी हुई हैं? इसके जवाब में शाहीन कहती हैं कि नहीं, ऐसा नहीं है. लेकिन हमारी उम्र सिर्फ 18 साल है. क्या हम डर नहीं सकते? शाहीन अपनी क्लास में एकमात्र मुस्लिम महिला स्टूडेंट हैं.
कितने दिन कॉलेज से दूर रहेंगे?
कर्नाटक सरकार ने मंगलवार को राज्य के सभी कॉलेजों के लिए तीन दिन की छुट्टी की घोषणा कर दी थी, लेकिन अगर कॉलेजों के खुलने के बाद भी भगवा लामबंदी जारी रहती है तो क्या मुस्लिम स्टूडेंट्स इससे दूर रहेंगे?
इस पर तहरीन बेगम कहती हैं कि हमें उनके भगवा शॉल ओढ़ने से कोई आपत्ति नहीं है. इस बात को लेकर हम कॉलेज से दूर नहीं रह सकते और पढ़ाई नहीं छोड़ सकते. बस हमें हिजाब पहनने की इजाजत दे दें. हमारी बस यही मांग है.
हालांकि इन सबके बीच इन स्टूडेंट्स को उम्मीद भी है कि स्थितियां बेहतर होंगी. अपनी कुछ हिंदू दोस्तों को याद करते हुए आयशा शाहीन कहती हैं कि उनमें से कुछ मुझसे अपने नोट्स शेयर करती थीं. वो हमारी सलामती के लिए दुआ करती हैं और ये भी कि हमें हिजाब पहनने से रोका न जाए.
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