ADVERTISEMENTREMOVE AD

'माफिया राज', TMC के करीबी: कोलकाता के हॉस्पिटल में रेप-मर्डर, पूर्व प्रिंसिपल पर गंभीर सवाल

पिछले साल, डॉ. संदीप घोष का दो बार तबादला किया गया था लेकिन जल्द ही उन्हें बहाल भी कर दिया गया.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

"संदीप घोष हमारी तरह डॉक्टर कहलाने के लायक नहीं हैं. मुख्यमंत्री (ममता बनर्जी) को उन्हें बर्खास्त कर देना चाहिए - और ना ही उन्हें किसी दूसरे हॉस्पिटल में ट्रांसफर करना चाहिए और न उनका इस्तीफा स्वीकार करना चाहिए. सभी हॉस्पिटल्स और मेडिकल कॉलेजों को ऐसे इंसान के लिए अपने दरवाजे बंद कर देने चाहिए."

पश्चिम बंगाल (West Bengal) के कोलकाता में मेडिका कैंसर प्रोजेक्ट्स के डायरेक्टर डॉ. सौरव दत्ता ने द क्विंट से यह बात कही.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कोलकाता के आरजी कर हॉस्पिटल (Kolkata's RG Kar Hospital) में पोस्ट-ग्रेजुएट ट्रेनी डॉक्टर के कथित जघन्य रेप और हत्या को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहा है. ऐसे में एक नाम जो उभर कर सामने आया है, वह है डॉ. संदीप घोष का. सोमवार, 12 अगस्त को, डॉ. घोष ने "नैतिक जिम्मेदारी" का हवाला देते हुए इस सरकारी हॉस्पिटल के प्रिंसिपल पद से इस्तीफा दे दिया.

“राज्य के लोगों की एकमात्र मांग यह थी कि मैं इस्तीफा दूं. इसलिए, मैं अपनी मर्जी से इस्तीफा दे रहा हूं, किसी दबाव में नहीं... मुझे पद से हटाने की साजिश की जा रही है. मैंने कभी नहीं पूछा कि डॉक्टर सेमिनार हॉल में क्या कर रहे थे. इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर गंदी राजनीति की जा रही है. एक पैरेंट के तौर पर मैं इस्तीफा दे रहा हूं.”
मीडिया से डॉ. संदीप घोष

हालांकि, उनके इस्तीफे के कुछ ही घंटों के अंदर, पश्चिम बंगाल सरकार ने न केवल उनके इस्तीफे को नकार दिया, बल्कि उन्हें प्रिंसिपल के रूप में सेवा देने के लिए शहर के नेशनल मेडिकल कॉलेज में ट्रांसफर कर दिया.

लेकिन ऐसा नहीं है कि इस तरह का फैसला पहली बार लिया गया है. पिछले साल एक मामले में, डॉ घोष को हटाने के सरकारी आदेश के 48 घंटे के भीतर उन्हें बहाल कर दिया गया था.

'सत्ता में बैठी टीएमसी के साथ करीबी रिश्ते'

मध्य कोलकाता के बेलेघाटा के निवासी, दो बच्चों के पिता और आर्थोपेडिक प्रोफेसर, डॉ घोष को 2021 के मध्य में कोलकाता में आरजी कर कॉलेज और हॉस्पिटल के प्रिंसिपल के रूप में नियुक्त किया गया था. इस कार्यकाल से पहले, डॉ घोष ने CNMCH (कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज) के मेडिकल सुपरिटेंडेंट सह वाइस-प्रिंसिपल (MSVP) के रूप में काम किया था.

CNMCH में डॉ घोष का कार्यकाल विवादों से मुक्त था. हालांकि, आरजी कर मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल में उनके कार्यकाल के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है.

डॉ. सौरव दत्ता ने बताया, "हमने आरजी कर मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के छात्रों से सुना है कि उनके ऑफिस के बाहर चार स्तर की सुरक्षा व्यवस्था थी. अगर सारी सुरक्षा अकेले उनकी सुरक्षा में तैनात की जाएगी, तो ऐसा व्यक्ति हॉस्पिटल में दूसरों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करेगा. उसके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू होनी चाहिए."

क्विंट ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के जिन दो छात्रों से बात की, उन्होंने पुष्टि की कि डॉ घोष का ऑफिस वास्तव में "पूरी तरह किलेबंद" था.

इसके अलावा, आरजी कर हॉस्पिटल में उनका तीन साल का कार्यकाल कथित घोटालों और अनियमितताओं के लिए कुख्यात रहा है.

मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के डिप्टी सुपरिटेंडेंट और आरजी कर हॉस्पिटल के पूर्व डिप्टी सुपरिटेंडेंट अख्तर अली ने द क्विंट को बताया कि डॉ घोष ने हॉस्पिटल में माफिया राज चलाया.

अख्तर ने द क्विंट से बात करते हुए आरोप लगाया, “डॉ घोष तमाम तरह के भ्रष्टाचार में शामिल थे. उनका दबदबा इतना था कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी उनके घर आते थे और ट्रांसफर किए जाने वाले डॉक्टरों की लिस्ट बनाते थे.''

नाम न छापने की शर्त पर आरजी कर मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के एक पूर्व वरिष्ठ फैकल्टी मेंबर ने द क्विंट को बताया, "उनका दबदबा और पावर राज्य सरकार की स्वास्थ्य प्रशासन में 'समानांतर' प्रणाली का परिणाम है. उन्हें राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी - तृणमूल कांग्रेस (TMC) के साथ उनके करीबी संबंधों के लिए जाना जाता है."

हालांकि, TMC के प्रवक्ता मोहम्मद तौसीफ रहमान ने इन आरोपों से इनकार किया कि पार्टी डॉ. घोष को बचा रही है. उन्होंने द क्विंट को बताया, "यह कहना बिल्कुल अनुचित है कि हमारे पास इस प्रिंसिपल के संबंध में कुछ भी छिपाने के लिए है. डॉ घोष राज्य सरकार के एक कर्मचारी हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह व्यक्ति हमारी पार्टी की ओर झुका हुआ है."
ADVERTISEMENTREMOVE AD

डॉ घोष की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. यह कथित तौर पर इस साल 4 जून को ली गई थी, जिस दिन लोकसभा के लिए चुनाव परिणाम घोषित हुए थे और TMC ने पश्चिम बंगाल में बंपर जीत हासिल की थी. इसमें डॉ घोष हरे अबीर से ढके हुए विक्ट्री साइन बनाते हुए दिख रहे हैं. फोटो ने TMC के साथ उनकी निकटता और समर्थन के बारे में अटकलों को और हवा दे दी है.

दो तबादले और तुरंत बहाली

पिछले साल, डॉ घोष को राज्य स्वास्थ्य विभाग द्वारा पिछले साल दो बार ट्रांसफर किया गया था, लेकिन दोनों बार उन्हें तुरंत बहाल कर दिया गया था.

3 जून 2023 को, द स्टेट्समैन अखबार ने रिपोर्ट किया राज्य स्वास्थ्य विभाग ने 24 घंटे के भीतर डॉ. घोष का ट्रांसफर ऑर्डर रद्द कर दिया. रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्हें मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल (MMCH) में ट्रांसफर कर दिया गया था, लेकिन डॉ घोष ने आरजी कर अस्पताल में प्रिंसिपल के कमरे को बाहर से बंद कर दिया, जिससे उनका ट्रांसफर रोक दिया गया.

सितंबर 2023 में, लड़कों के हॉस्टल में रैगिंग से जुड़ी घटना के बाद उन्हें फिर से MMCH में ट्रांसफर कर दिया गया. हालांकि, टीएमसी के करीबी छात्रों ने कथित तौर पर नए प्रिंसिपल डॉ. मानस कुमार बंद्योपाध्याय को पांच दिनों तक कार्यभार संभालने से रोक दिया. और इस बार, डॉ घोष 21 दिनों के भीतर आरजी कर हॉस्पिटल के प्रिंसिपल पद पर वापस आ गए.

हॉस्पिटल के एक सूत्र ने द क्विंट को बताया, "डॉ घोष का हॉस्पिटल के साथ-साथ पश्चिम बंगाल सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग पर बहुत प्रभाव है. यही वजह है कि दो बार तबादले और आरोप लगने के बावजूद, वह प्रिंसिपल के रूप में बेदाग होकर कॉलेज में वापसी करने में सफल रहे.''

ADVERTISEMENTREMOVE AD

फंड के दुरुपयोग का आरोप

डॉ. घोष पर फंड के दुरुपयोग से लेकर बायो वेस्ट को दोबारा इस्तेमाल के लिए अवैध व्यापारियों को बेचने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं.

कई स्थानीय न्यूज रिपोर्टों में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि कैसे सालों से आरजी कर मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के खिलाफ घोर अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए थे.

जुलाई 2023 में, आनंदबाजार पत्रिका ने रिपोर्ट किया कि 2022 में, हॉस्पिटल ने अकेले काउंसलिंग प्रक्रिया पर लगभग 14.15 लाख रुपये खर्च किए, जो चार चरणों में केवल 20 दिनों तक चली. दस्तावेजों पर आधारित रिपोर्ट में कुछ खर्चों का ब्यौरा देते हुए कहा गया है कि अस्पताल ने सीसीटीवी कैमरे किराए पर लेने पर 3 लाख रुपये, लैपटॉप, प्रिंटर और पेन ड्राइव किराए पर लेने पर 7.64 लाख रुपये और वाईफाई पर 97,000 रुपये खर्च किए.

आरजी कर हॉस्पिटल में धन के दुरुपयोग से संबंधित कई लिखित शिकायतों के बाद, हॉस्पिटल ने पिछले साल एक तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया, जिसमें अख्तर अली और हॉस्पिटल के दो अन्य वरिष्ठ डॉक्टर शामिल थे. राज्य के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को अपनी रिपोर्ट सौंपने के बाद तीनों का तबादला कर दिया गया.

भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट में, (जिसकी एक कॉपी द क्विंट के पास है) कहा:

  • अकेले 10 मई 2022 को, हॉस्पिटल ने टूथपेस्ट, साबुन, टी बैग और तौलिये को "खरीदने" के लिए 94,00 रुपये खर्च किए.

  • 20 जून 2022 को हॉस्पिटल ने वाईफाई कनेक्शन पर 99,790 रुपये खर्च किए.

  • अकेले 25 जून 2022 को, हॉस्पिटल ने चाय, कॉफी और फूलों की सजावट पर 1 लाख रुपये से अधिक खर्च किए.

  • 29 अप्रैल 2022 से 26 जून 2022 के बीच आरजी कर के एकेडमिक फंड (जिस तक प्रिंसिपल की पहुंच है) से 10.23 लाख रुपये की वस्तुएं खरीदी गईं.

आनंदबाजार पत्रिका की रिपोर्ट में कहा गया है कि एक ही फर्म (मां तारा ट्रेडर्स) ने इन सभी चीजों की सप्लाई की और साथ ही बाद में वाईफाई कनेक्शन भी प्रोवाइड किया, उन्होंने आरजी कर के स्किल लैब को 2.5 करोड़ रुपये के उपकरण भी स्पलाई किए. इन आरोपों पर मां तारा ट्रेडर्स से पूछे गए सवालों का जवाब हमें नहीं मिला है. जब भी उनका जवाब आएगा, इस स्टोरी को उसके साथ अपडेट किया जाएगा.

पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने भी द क्विंट के सवालों का जवाब नहीं दिया कि क्या जांच पैनल की रिपोर्ट के बाद डॉ. घोष के खिलाफ कोई कार्रवाई शुरू की गई थी या नहीं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

'हॉस्पिटल से बायोमेडिकल वेस्ट की तस्करी पर आवाज उठाई थी'

अख्तर अली ने द क्विंट से बातचित में आरोप लगाया कि उन्हें मार्च 2023 में आरजी कर हॉस्पिटल से इसलिए ट्रांसफर कर दिया गया था क्योंकि वह "उनके भ्रष्टाचार के रास्ते में कांटा" बन रहे थे.

"बहुत सारे पैसे के बदले हॉस्पिटल से बांग्लादेश में मेडिकल वेस्ट की तस्करी हो रही थी और इस बात को मैंने फ्लैग किया. मैंने पश्चिम बंगाल के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग को एक लिखित रिपोर्ट सौंपी, जिसमें बताया कि एक गिरोह हॉस्पिटल में इस्तेमाल की गई सलाइन बोतलों, तारों, सीरिंजों और दस्तानों की तस्करी कर रहा था. मुझे तुरंत हॉस्पिटल से बाहर कर दिया गया क्योंकि मैंने मधुमक्खी के छत्ते पर पत्थर मार दिया था."
अख्तर अली

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि हॉस्पिटल ने एक स्किल लैब बनाने में 2.97 करोड़ रुपये खर्च किए, जबकि अन्य सरकारी अस्पताल केवल 60 लाख रुपये में एक लैब बनाने में सक्षम थे (उन्होंने उदाहरण के तौर पर डायमंड हार्बर सरकारी मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल का जिक्र किया).

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ​​​COVID-19 के दौरान, डॉ घोष ने बाजार कीमतों के बजाय बढ़ी हुई दरों पर हाई फ्लो नेजल ऑक्सीजनेशन (HFNO) मशीन खरीदी. उन्होंने कहा कि मशीन "अन्य हॉस्पिटल्स की तुलना में लगभग 2 से 3 गुना अधिक कीमत पर" खरीदी गई थी.

अपने पत्र में, उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि प्रिंसिपल ने स्टॉल चलाने के लिए आरजी कर हॉस्पिटल के कई स्थानों को अलग-अलग व्यक्तियों को किराए पर दे दिया था. अख्तर ने आरोप लगाया कि इनमें से कुछ स्टॉल मालिकों के पास ट्रेड लाइसेंस, जीएसटी रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट, FSSAI सर्टिफिकेट नहीं था.

द क्विंट ने डॉ घोष को उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों पर उनका पक्ष जानने के लिए ईमेल, मैसेज और कॉल किया गया है. अब तक कोई जवाब नहीं मिला है. जब भी उनका जवाब आएगा, स्टोरी अपडेट कर दी जाएगी.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×