मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में 14 जुलाई को सूरज नाम के एक नर चीते की मौत हो गयी. कूनो में नामीबिया से आए चीतों को छोड़े जाने के बाद से यह आठवें चीते की मौत थी. सूरज चीते की मौत की वजह क्या है? एक तरफ मंत्रालय का कहना है कि चीतों की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई है, तो दूसरी ओर विशेषज्ञों द्वारा संदेह जताया जा रहा है कि मौत की वजह वह रेडियो कॉलर है, जो उनके गर्दन में बांधी गयी थी.
रेडियो कॉलर से हो रही चीतों की मौत?
राज्य के वन्यजीव विशेषज्ञों को संदेह है कि हाल ही में मरे दो नर चीतों - तेजस और सूरज की मौत अपने रेडियो कॉलर की वजह से कीड़ों के संक्रमण से पीड़ित थे.
यह भी दावा किया गया है कि कूनो पार्क में कम से कम तीन और चीतों के उनके रेडियो कॉलर के कारण पीड़ित होने का संदेह है और इस समस्या ने 'प्रोजेक्ट चीता' से जुड़े वन अधिकारियों को परेशान कर दिया है.
दूसरी तरफ केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का कहना है कि मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान (KNP) में पांच वयस्क चीतों की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई है.
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य प्रधान वन संरक्षक, वन्यजीव, आलोक कुमार का कहना है कि रेडियो कॉलर से होने वाली चोटें वन्यजीव और वन विभाग के लिए एक चुनौती के रूप में आईं, लेकिन यह पहली बार नहीं है.
उन्होंने कहा, रेडियो कॉलर कूदने, दौड़ने या आपसी लड़ाई के दौरान जानवरों को चोट पहुंचा सकते हैं और बाघों की तुलना में चीतों का शरीर नरम होता है.
चीता टास्क फोर्स समिति के सदस्य आलोक कुमार ने कहा कि
मैंने अपने सेवा काल के दौरान कम से कम दो ऐसे मामले देखे हैं, जब रेडियो कॉलर के कारण बाघों को चोटें आईं. विशेष रूप से बरसात के मौसम में रेडियो कॉलर के कारण चोट लगने की अधिक संभावना होती है. जानवर आमतौर पर अपने शरीर के अंगों पर लगी सामान्य चोटों को चाटकर साफ करते हैं, लेकिन जब चोट उनकी गर्दन पर होती है, तो वे ऐसा नहीं कर सकते. अगर इसका तुरंत इलाज नहीं किया जाता है, तो जानवर का वह विशेष हिस्सा सड़ने लगता है और कभी-कभी मौत का कारण भी बनता है.
विशेषज्ञों के मुताबिक हालांकि सिर्फ रेडियो कॉलर मौत का कारण नहीं हो सकता, लेकिन यह कई वजहों में से एक हो सकता है और इसका समाधान किया जाना चाहिए.
IANS के सूत्रों के मुताबिक अधिकारियों ने कूनो नेशनल पार्क में 11 फ्री रेंजिंग जोन चीतों से रेडियो कॉलर हटाने का फैसला किया है. स्थिति की जांच के लिए मंगलवार को अफ्रीकी वन्यजीव विशेषज्ञों की एक टीम भी कूनो पहुंची है.
हालांकि, कूनो के प्रभारी और भारतीय वन सेवा के अधिकारी उत्तम शर्मा ने बताया कि
यह अफ्रीकी वन्यजीव विशेषज्ञों की एक नियमित यात्रा है क्योंकि वे अपनी नियमित सहायता प्रदान करने के लिए परियोजना से जुड़े हुए हैं.
उन्होंने कहा कि कूनो में रेडियो कॉलर के कारण चीतों के घायल होने की कोई रिपोर्ट नहीं है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण अफ्रीका के पशुचिकित्सक और कुनो में चीतों को मैनेज करने वाले विशेषज्ञों की टीम के मेंबर डॉ. एड्रियन टॉर्डिफ पिछले सप्ताह रेडियो-कॉलर की वजह से चीतों को हुए घावों की पहचान करने वाले पहले व्यक्ति थे.
यह पूछे जाने पर कि क्या कॉलर ठीक से फिट किए गए थे, उन्होंने कहा: “ये चीते भारत में ड्राई पीरियड के दौरान कई महीनों से इन कॉलर को पहन रहे हैं. मानसून आने तक उन्हें (कॉलर को लेकर) कोई समस्या नहीं हुई.'
रिपोर्ट के अनुसार डॉ. टॉर्डिफ ने बताया कि अफ्रीकी परिस्थितियों में चीतों को कॉलर के नीचे सेकंडरी इन्फेक्शन नहीं होता है क्योंकि वहां बारिश के बीच त्वचा को पूरी तरह सूखने का मौका मिलता है. लेकिन भारत में ऐसा नहीं है.
'प्रोजेक्ट चीता' के तहत आए थे चीते
प्रधानमंत्री ने पिछले साल 17 सितंबर को अपने जन्मदिन पर केंद्र की एक महत्वाकांक्षी परियोजना 'प्रोजेक्ट चीता' के तहत नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को छोड़ा था. दूसरे चरण में इसी साल 18 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका से और 12 चीते लाए गए.
हालांकि, तब से कुनो में नामीबियाई मादा चीता सियाया के चार शावकों में से तीन सहित कुल आठ चीतों की मौत हो चुकी है. दो वयस्क अफ्रीकी चीतों- तेजस और सूरज की मौत ने जमीन पर प्रोटोकॉल के लागू होने पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
(इनपुट- आईएएनएस, इंडियन एक्सप्रेस)
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