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अच्छी मजदूरी लेकिन काम के खराब हालात, जानें कुवैत में भारतीयों की समस्याएं और हालात?

Kuwait Fire: कुवैत में 21% और कुल कार्यबल में 30% भारतीय हैं. फिर भी कई लोग खराब परिस्थितियों में रहते हैं.

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12 जून को कुवैत के एक अपार्टमेंट में आग (Kuwait Fire) लगने से 49 लोगों की मौत हो गई थी. इसमें 45 भारतीय थे. गौरतलब है कि सात मंजिला इमारत में कुवैत शहर के दक्षिण में मंगफ एरिया में बने इस सात मंजिला इमारत में लगभग 200 लोग रहते थे, यहां प्रवासी श्रमिकों की भारी आबादी रहती है. उनमें से अधिकांश ने एनबीटीसी ग्रुप (NBTC) नाम की एक निजी निर्माण फर्म के लिए इंजीनियरों और तकनीशियनों के रूप में काम किया, इस फर्म के मैनेजिंग डायरेक्टर केजी अब्राहम, केरल के एक व्यवसायी हैं.

20 से 50 साल की आयु के ये अधिकांश मृतक केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और उत्तर प्रदेश के थे. केरल सरकार ने गुरुवार, 13 जून को पुष्टि की कि मृतकों में से 24 उनके राज्य से थे.

कुवैत में बेहद असुरक्षित परिस्थितियों में बड़ी संख्या में विदेशी मजदूरों को रखने के लिए कानूनों का उल्लंघन करने वाले रियल एस्टेट और कंपनी मालिकों के खिलाफ कार्रवाई की मांग के साथ ही, इसने एक मुख्य पहलू पर ध्यान खींचा है, वो है बड़ी संख्या में भारतीयों का पश्चिम एशियाई देशों में कार्यबल का हिस्सा होना यानी इन देशों में काम करने वाले भारतीयों की संख्या अधिक है.

सवाल है कि रोजगार की तलाश में भारतीय कामगार कुवैत क्यों जाते हैं? वे वहां कौन से काम या नौकरी करते हैं और वहां उनकी रहने की स्थितियां कैसी हैं? चलिए क्विंट आपको इसके बारे में विस्तार से बता रहा है...

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डॉक्टर से लेकर घरेलू सहायक तक: भारतीयों पर निर्भर कुवैत

डॉक्टर, इंजीनियर और चार्टर्ड अकाउंटेंट से लेकर ड्राइवर, बढ़ई, राजमिस्त्री, घरेलू कामगार और डिलीवरी एक्जीक्यूटिव तक, कुवैत भारतीय श्रमबल पर काफी हद तक निर्भर है.

कुवैत के सार्वजनिक सूचना प्राधिकरण (PACI) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2023 तक पश्चिम एशियाई देश की जनसंख्या 4.85 मिलियन थी.

इसमें से, मजदूर और श्रमिकों की कुल आबादी 61 फीसदी (लगभग 30 लाख) और देश की कुल प्रवासी आबादी का 75 फीसदी शामिल है.

दस लाख की आबादी वाले कुवैत में सबसे बड़े प्रवासी समुदाय के रूप में, भारतीय कुल जनसंख्या का 21 प्रतिशत और कुल कार्यबल का 30 प्रतिशत है.

कुवैत में भारतीय दूतावास की वेबसाइट के अनुसार, अपने तेल भंडार के लिए मशहूर इस देश में 1970-80 के दशक में भारतीय प्रवासी आबादी में तेजी से वृद्धि देखी गई, जिनमें से सभी ने इसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

खाड़ी क्षेत्र में श्रमिकों के माइग्रेशन पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के 2016 के एक स्टडी से संकेत मिलता है, "श्रमिक, यहां तक ​​​​कि जिन श्रमिकों के पास कम स्किल है, वो भी अधिक कमाते हैं, यदि उनके पास घरेलू श्रम मार्केट से संबंधित अनुभव है.

केरल स्थित प्रवासी अधिकार के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट रेजिमोन कुट्टप्पन ने द क्विंट को बताया कि कई लोग न केवल अकुशल श्रमिकों की उच्च मांग के कारण खाड़ी देशों को चुनते हैं बल्कि इसलिए भी क्योंकि उनकी मजदूरी भारत की तुलना में काफी अधिक है.

कुट्टप्पन द क्विंट को इसे विस्तार से समझाते हुए बताते हैं

"उत्तर प्रदेश और बिहार से कई श्रमिक कंस्ट्रक्शन के काम के लिए ब्लू-कॉलर श्रमिकों के रूप में खाड़ी देशों में जाते हैं. बड़े पैमाने पर माइग्रेशन यानी श्रमिकों का प्रवास बेरोजगारी के कारण होता है. साथ ही, विदेशों में श्रमिकों को भारत की तुलना में बहुत अधिक बचत करने और घर वापस भेजने का मौका मिलता है. मान लीजिए कि किसी कर्मचारी को प्रति माह 20,000-25,000 रुपये मिलते हैं तो वह अधिकतम 8,000 रुपये ही भेजेगा लेकिन वे श्रमिक शिविरों यानी लेबर कैंप और खराब कामकाजी हालत में रहते हैं..."

दिसंबर 2023 में जारी, भारत और खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के बीच सहयोग पर विदेश मंत्रालय की स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि यह क्षेत्र भारत के लिए इनवार्ड रेमिटेंस का एक महत्वपूर्ण स्रोत है यानी आसान भाषा में कहे तो खाड़ी देश, प्रवासी श्रमिक द्वारा भारत को मिलने वाली धनराशि का महत्वपूर्ण श्रोत है.

"प्रवासी भारतीयों और पूरे भारतीयों द्वारा विदेशों से भेजे गए धन का हालिया आंकड़ा 120 अरब डॉलर से अधिक रहा है, जो एक महत्वपूर्ण आंकड़ा है. यह $87 बिलियन के पिछले आंकड़े यानी 2021 से बढ़ोतरी है. 2022 में, हमने $115 बिलियन से अधिक राशि प्राप्त की."
विदेश मंत्रालय की स्थायी समिति

द अरब टाइम्स के अनुसार, कुवैत में काम करने वाले भारतीयों ने 2023 में लगभग 6.67 बिलियन डॉलर अपने घर भेजा.

एक गैर-लाभकारी संगठन, फेयरस्क्वेयर के रिसर्च कंसलटेंट और प्रवासी अधिकारों के वकील उस्मान जावेद ने द क्विंट को बताया:

"यह समझने के लिए कि बड़ी संख्या में लोग खाड़ी देशों में क्यों जाते हैं, इसके लिए भारत और वहां के श्रम बाजार को समझना होगा. प्रवासियों के मूल देशों में, अल्प रोजगार और बेरोजगारी की समस्या है. जब लोग बाहर जाते हैं, तो वे वहां के जोखिम को जानते हैं, वे उसे आत्मसात और स्वीकार कर लेते हैं. ये ऐसा इसलिए होता है कि उनके पास लौट आने के लिए कुछ नहीं होता है और आप जहां लौटेंगे, वहां स्थिति बदत्तर होती है."

2022-2023 में कुवैत में 1,400 भारतीयों की मौत: विदेश मंत्रालय

भारत सरकार, उन राज्यों के साथ मिलकर काम कर रही है, जहां से प्रवासी श्रमिक बाहर जाते हैं (केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश),  ILO नियमों के अनुसार, कुवैत में प्रवासी श्रमिकों के लिए न्यूनतम रेफरल मजदूरी (MRW) तय की गई है.


कुवैत के भारतीय दूतावास के अनुसार, 2022 तक, 64 श्रेणियों के काम के लिए न्यूनतम मजदूरी $300 और $1,350 के बीच थी.

दिसंबर 2022 में संसद में एक प्रश्न के जवाब में, तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने कहा था "खाड़ी में हमारे रोजगार की रक्षा के लिए" खाड़ी देशों में रोजगार के लिए न्यूनतम रेफरल मजदूरी को कोविड के कारण कम किया गया है. हालांकि, 2022 तक यह उसी स्तर पर वापस आ गया, जैसा कि 2019-20 में था.

समय-समय पर श्रमिकों को श्रम और श्रमिकों के अधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ता है क्योंकि वे शोषणकारी नियोक्ता-कर्मचारी (employer-employee) लेबर कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम का पालन करते हैं.

ये श्रमिक अक्सर मंगफ जैसे श्रमिक शिविरों या अर्ध-निर्मित इमारतों के तंग कमरों में बेहद खराब हालत में रहते हैं.

"हालांकि सैलरी सुनिश्चित की जाती है लेकिन आने-जाने की स्वतंत्रता और अन्य अधिकारों से अक्सर समझौता करना पड़ता है."
रेजीमोन कुट्टप्पन

इंडियास्पेंड द्वारा दायर सूचना के अधिकार (RTI) से पता चला है कि खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों में भारतीय प्रवासी श्रमिक एक कठिन स्थिति में हैं, वे विभिन्न श्रम और मानवाधिकार के उल्लंघनों के शिकार हो रहे हैं.

RTI से पता चलता है कि जून 2019 और 2023 के बीच, कुवैत में श्रमिकों द्वारा 23,020 शिकायतें दर्ज की गई हैं, जो सभी खाड़ी देशों में सबसे अधिक है. कुवैत में भारतीय दूतावास ने वेतन का भुगतान न करने, अनुचित कामकाजी परिस्थितियों और उत्पीड़न को भारतीय प्रवासी श्रमिकों की सबसे आम शिकायतों के रूप में लिस्ट किया है.

इसके अलावा, 2 फरवरी को विदेश मंत्रालय ने संसद में कहा कि 2022 और 2023 के बीच कुवैत में कुल 1,439 भारतीयों, जिनमें से ज्यादातर प्रवासी श्रमिक थे, उनकी मृत्यु हो गई.

सरकारी समाचार एजेंसी KUNA की रिपोर्ट के अनुसार, 13 जून को कुवैत के फायर फोर्स ने बताया कि आग बिजली के शॉर्ट सर्किट के कारण लगी थी. बिल्डिंग के मालिक पर नियमों के उल्लंघन के भी आरोप लगे हैं.

उस्मान जावेद ने द क्विंट को बताया, "इस घटना को एक दुर्घटना के रूप में रिपोर्ट किया गया है... ऐसी दुर्घटनाएं स्वत: नहीं होती हैं और इन्हें टाला जा सकता है, और कुछ को नहीं. इस घटना को टाला जाता सकता था, ये मौतें जानबूझकर की गईं. यह किसी एक व्यक्ति पर ऊंगली उठाना या दोष देना नहीं है, बल्कि उस सिस्टम को दोष देना है, जिसके माध्यम से श्रमिकों का न केवल आर्थिक रूप से शोषण किया जाता है बल्कि उनके कुछ बुनियादी नागरिक और राजनीतिक अधिकारों का भी उल्लंघन किया जाता है."
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कुवैत अग्निकांड ने इमिग्रेशन बिल पर फिर ध्यान खींचा है

घटना के एक दिन बाद विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह घायलों से मिलने और उनका हालचाल जानने कुवैत पहुंचे. लोकल रिपोर्ट्स में कहा गया है कि इसके अलावा, कुवैत के उप प्रधानमंत्री ने कुवैती मकान मालिक और बिल्डिंग के मिस्र के गार्ड की गिरफ्तारी का आदेश दिया और अधिकारियों को उनकी अनुमति के बिना उन्हें रिहा नहीं करने की चेतावनी दी.

हालांकि, जैसे ही कुवैत त्रासदी की खबर फैली, कई राजनेताओं और विशेषज्ञों ने सरकार से भारतीय प्रवासी श्रमिकों के लिए काम की अच्छी स्थिति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इमिग्रेशन एक्ट, 1983 में संशोधन करने का आह्वान किया.

तीन बार के सांसद थरूर ने कहा कि यह घटना "भारतीय प्रवासी श्रमिकों को होने वाले भयानक बुनियादी सुविधाओं के अभाव" की याद दिलाती है.

खाड़ी देशों में जाने वाला प्रत्येक प्रवासी ई-माइग्रेट पोर्टल के माध्यम से मंजूरी प्राप्त करने के बाद वहां जाता है. इसके अलावा, इमिग्रेशन बिल 2021 का ड्राफ्ट, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य देखभाल को लेकर प्रवासियों के सामने आने वाले मुद्दों को लेकर उत्प्रवास अधिनियम, 1983 यानी इमिग्रेशन एक्ट में संशोधन करने को लेकर है.

रेजिमोन कुट्टपन ने कहा कि विदेश मंत्रालय को "श्रमिक मुद्दों को कुछ महत्व देना चाहिए. वर्तमान में वे व्यापार और अन्य मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं."

"आग की घटना एक कर्मचारी आवास में हुई, न कि किसी श्रमिक शिविर में... लेकिन खबरें कहती हैं कि इमारत में नियमों के उल्लंघन हुए हैं... भले ही ऐसी त्रासदी किराए की इमारत में हो सकती है, तो श्रमिक शिविरों की स्थिति की कल्पना करें? सबसे बड़ा प्रवासी भेजने और धन प्राप्त करने वाला देश होने के बावजूद, भारत 40 साल पुराने इमिग्रेशन एक्ट के साथ माइग्रेशन को नियंत्रित करता है..."
रेजीमोन कुट्टपन

कुट्टपन का मानना है कि अपडेटेट इमिग्रेशन एक्ट की कमी मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) न होने का कारण है, "जब यह स्थिति आती है, तो इसकी यानी (SOP) की आवश्यकता होती है, चाहे यह इस तरह की त्रासदी हो, या कुछ और."

उस्मान जावेद ने सहमति व्यक्त करते हुए कहा, "यह आदर्श होगा यदि हम यह सुनिश्चित कर सकें कि विशेष रूप से GCC देशों में प्रवास के लिए बीमा एक पूर्व शर्त हो. एक बीमा जो सभी स्थितियों को कवर करता है.

भारत कुवैत में सभी भारतीय प्रवासी श्रमिकों को आकस्मिक मृत्यु या स्थायी विकलांगता के मामले में 10 लाख रुपये की कवरेज के साथ प्रवासी भारतीय बीमा योजना (PBBY) बीमा पॉलिसी भी प्रदान करता है. यह विवादों की स्थिति में कानूनी खर्च भी उठाता है.

हालांकि, कुट्टप्पन ने कहा कि यह योजना केवल "कुछ देशों में प्रवास करने वालों के लिए लागू है, जिनके पास इमिग्रेशन चेक रिक्वायर्ड (ECR) पासपोर्ट है."

नोट: भारत सरकार पासपोर्ट धारकों को उनकी शैक्षणिक योग्यता और पेशेवर कौशल के आधार पर दो श्रेणियों में वर्गीकृत करती है. 

कुट्टप्पन ने कहा, "मरने वालों में से अधिकांश 'इमिग्रेशन जांच आवश्यक नहीं' (ECNR) श्रेणी और अच्छी तरह से शिक्षित व मिडिल क्लास से थे. पुराने कानून के कारण उन्हें बीमा पॉलिसी के तहत 10 लाख रुपये नहीं मिलेगा लेकिन यह कैसे उचित है? अगर हमने कानून को अपडेट किया होता, तो निश्चित रूप से उनके परिवारों को सहायता मिलती... हमें इमिग्रेशन एक्ट को अपडेट करने और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि दोनों पासपोर्ट कैटगरी में आनेवालों को समान सुरक्षा मिले."

घटना की समीक्षा करने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने पीड़ित परिवारों को पीएम राहत कोष से 2 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की. जावेद की राय में हालांकि, यह राशि बहुत कम है.

"घोषणा की गई अनुग्रह राशि इन पीड़ितों के 2-3 महीने के वेतन के बराबर हो सकती है. यह पर्याप्त नहीं है. साथ ही, यह जानने का कोई संकेत नहीं है कि इस पूरी स्थिति में व्यवस्थित रूप से कुछ गड़बड़ है... कोई भी सिस्टम की समस्या को स्वीकार नहीं कर रहा है ...यह '83 एक्ट को सुव्यवस्थित और तर्कसंगत बनाने की एक कवायद है. इस सिस्टम के इन 40 वर्षों के बारे में हमें जो भी जानकारी मिली है, उससे यह पता नहीं चलता है कि एक ऐसा अधिनियम तैयार करना महत्वपूर्ण है. यह आवश्यक है कि एक ऐसा एक्ट बनाया जाए, जो आपके श्रमिक की सुरक्षा करे. "
उस्मान जावेद ने क्विंट से कहा

जावेद ने अपनी राय रखते हुए द क्विंट को बताया "भारतीय श्रमिक जीसीसी देशों में कुल कार्यबल का एक तिहाई हिस्सा हैं. अगर यह हमारे देश के लिए अपने श्रमिकों की सुरक्षा करना लाभ नहीं है तो मुझे नहीं पता कि क्या है... हमारी जैसी सरकारों को एक सामान्य न्यूनतम समझ होनी चाहिए और श्रमिकों के लिए बातचीत कर बेहतर स्थिति तय करनी चाहिए. भारत को इसमें एक बड़ी भूमिका निभानी चाहिए और परीक्षा यही है कि क्या हम विदेश में अपने नागरिकों की रक्षा कर सकते हैं"

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