सोमवार की सुबह भी आम दिनों की तरह ही था. ऑफिस का मर्निग शिफ्ट चल रहा था. मैं करीब सुबह सात बजे आया था, कुछ सहयोगी आ चुके थे, कुछ आ रहे थे. इन सब के बीच बाहर से शोरगुल की आवाज आई. मैंने बालकनी से देखा तो होटल से धुएं के गुब्बार निकल रहे थे. करीब बीस मिनट बाद पुलिस (डायल 112) की टीम आयी. फिर फायर ब्रिगेड वाले आए. तब तक अफरातफरी का माहौल बन चुका था. रेस्क्यू कर जब लोगों को निकाला जा रहा तब उनमें कुछ दर्द से कराह रहे थे तो कुछ बेसुध पड़े थे.
ऐसी चीख पुकार मैंने पहले कभी नहीं देखी थी. ऐसा कहना है होटल लेवाना के बगल वाले कॉम्प्लेक्स (Pc जैन बिल्डिंग) में कार्यरत मानी चंद्र का. उन्होंने बताया कि हम सब से भी जितना बन पाया, हमने आग बुझाने में मदद किया. गुलमोहर अपार्टमेंट के लोगों में भी पूरा सहयोग किया.
कम्प्लेक्स के गार्ड जगत पाल (56) करीब 22 सालों से यहीं रहते हैं. सुबह करीब पांच बजे ये हर रोज उठ जाते हैं. हादसे वाले दिन इन्होंने सबसे पहले होटल से धुआं निकलते देखा. ये बताते हैं कि शुरुआत में धुंआ धीरे- धीरे निकल रहा था, फिर धुंआ ज्यादा निकलने लगा. करीब आठ घंटे से होटल से धुंआ निकलता ही रहा.
दरवाजा खोला तो बाहर धुआं ही धुआं ही था
लेवाना होटल के कमरा नम्बर 211 में ठहरे अंकित सिंह मंगलवार को अपना लगेज (समान) लेने आए थे. अंकित पेशे से डॉक्टर हैं जो मीटिंग के सिलसिले में लखनऊ आए थे. अंकित रांची, झारखंड के रहने वाले है. होटल के बाहर अपने समान के साथ अंकित जब मिले तो डर उनके चेहरे पर साफ झलक रहा था, पसीना पोछते हुए अंकित बताते हैं कि
मैं ख़ुशक़िस्मत हूं जो बच निकला. मैं शनिवार से होटल लेवाना में रुका हुआ था. सोमवार की सुबह मैं जल्दी उठ गया था, मेरा कमरा दूसरे फ़्लोर पर था. मेरे साथ मेरी दोस्त भी थी. हमने देखा कि होटल में आग लग चुकी है. दरवाजा खोला तो बाहर धुआं ही धुआं ही था. कोई फ़ायर एग्ज़िट नहीं है लेकिन लिफ़्ट चल रही है. ऐसे में बिना देरी किए हम दोनों अपना समान छोड़ भाग निकले.
अंकित ने आगे बताया, मैंने अपने आँखों के सामने लोगों को रोते बिलखते देखा. ये मंज़र मैं जीवन भर नहीं भूल पाऊँगा, बस इतना कहते हुए अंकित अपनी कैब में बैठ निकल गए.
होटल स्टाफ ने नहीं दी कोई जानकारी
होटल पर आरोप लगाते हुए उन्होंने बताया कि न ही होटल का फायर अलार्म बजा, न ही होटल स्टॉफ की तरफ से गेट लॉक ही किया गया और न ही स्टाफ की तरफ की से कोई फोन किया गया.
होटल लेवाना के बग़ल में एक चाय की टपरी ( चाय की दुकान) है. जोकि साधु सेवक बीसों साल से लगा रहे है. वो बताते हैं कि यह होटल क़रीब पाँच साल पहले बना. इससे पहले यहाँ BSNL का ऑफ़िस हुआ करता था. साधु सेवक बताते है कि होटल में लोहे की ग्रिल नहीं लगी होती तो मौत नहीं होती. आग लगने के क़रीब घंटे भर बाद रेस्क्यू शुरू हुआ.
इसी चाय की दुकान पर हमें जोखन लाल चौहान मिले. जो आग बुझाने के लिए होटल के तीसरे तल तक पहुंचे थे. उन्होंने बताया कि एक लड़की पूरी तरह जल रही थी. यह सब कुछ मेरे आँखों के सामने हो रहा था. लोहे की ग्रिल की वजह से रेस्क्यू टीम भी अंदर नहीं जा पाई. आगे बताते हैं कि बांस की सीढ़ी की मदद से कुछ लोगों को हम लोग बचाने में सफल ज़रूर हुए.
दिखाने के लिए लगाए गई थी लोहे की सीढ़ियां
लखनऊ विकास प्राधिकरण ने मई महीने से अब तक चार बार लेवाना होटल के मालिकानों को नोटिस भेज चुका है. बीते अगस्त महीने में जब एलडीए की तरफ से नोटिस दिया गया कि होटल में कोई इमरजेंसी गेट नहीं है या एग्जिट नहीं है तो होटल के मालिकान ने धूल झोंकने का काम किया. होटल के सामने ही लोहे की सीढ़ियां लगा दी गईं.
चारों मृतकों की हुई पहचान
होटल में हुए अग्नि हादसे में चारों मृतकों की पहचान हो गई है. साहिबा कौर और गुरनूर आनंद दोनों मंगेतर थे जो कि गणेशगंज के सरायफाटक के रहने वाले थे. नवंबर में दोनों शादी के बंधन में बंधने वाले थे. साथ ही इंदिरा नगर में रहने वाले अमान गाजी और श्रीविका सिंह का नाम भी मृतकों में शामिल हैं।
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